Hindi News

indianarrative

बागी नौसैनिक मुंबई-कराची की गलियों में गा रहे थे ‘कौमी तराना’, दिल्ली में जिन्ना और इन नेताओं ने बुना धोखे का तानाबाना

नेता जी की मूर्ति का अनावरण दिल्ली में और हलचल इस्लामाबाद में!

भारत के गणतंत्र दिवस समारोह 24 जनवरी के बजाय 23 जनवरी से मनाने, भारत की धरती पर पहली आज़ाद सरकार बनाने वाले की मूर्ति स्थापित करने और लालकिले में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) के स्मारक बनाने के प्रयास से देश में एक नई क्रांति और देश के सही इतिहास को जानने का मौका मिलेगा। आजादी के 76 साल बाद देश के पहले अधिनायक को मिला उसका समुचित स्थान और सम्मान 1968 तक जहां अंग्रेज शोषक-शासक जॉर्ज पंचम की मूर्ति थी अब वहां नेता जी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गई है।

भले ही यह होलोग्राम प्रतिमा है लेकिन कुछ दिन बाद यहां ब्लैक ग्रेनाइट की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। कांग्रेस पर हमला किया कि देश की आजादी से जुड़े महानायकों के योगदान को भुलाने का षडयंत्र किया गया। देश अब डंके की चोट पर उन गलतियों को सुधार रहा है। बिरसा मुंडा, बाबा साहेब अम्बेडकर और नेता जी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने से हिंदुस्तान की नई पीढी में फिर से सिहरन महसूस की जा सकती है।  

नेता जी की जयंती पर ब्रिगेडियर (रि) डीडी बख्शी की किताब- ‘बोस या गांधी किसने दिलाई भारत को आजादी’एक बार फिऱ चर्चा में आगई है इस किताब में लिखा है कि अंग्रेजों के खिलाफ मुंबई और कराची की गलियों में थे जय हिंद के नारे गूंज रहे थे। डीडी बख्शी की किताब मूलतः18 फरवरी 1946 को नौसेना ने विद्रोह पर आधारित है। इस विद्रोह से अंग्रेज इतना डर गए कि भारत की आजादी की तारीख जिस ब्रिटिश पार्लियामेंट ने मई 1948 तय की थी, उसी ब्रिटिश पार्लियामेंट ने बिना किसी तैयारी के पंद्रह अगस्त को देश को आजाद कर दिया।

आखिर वो क्या कारण थे कि अंग्रेजों ने इतनी जल्दबाजी की? इसका महज एक कारण था मुंबई और कराची में इंडियन नैवी का विद्रोह। हालांकि जिन्ना, गांधी और नेहरू जैसे नेताओं के छल-बल से नौसेनिकों के विद्रोह को कुचल दिया गया, लेकिन अंग्रेजों को अहसास हुआ कि अगर हिंदुस्तान को जल्दी आजाद नही किया गया तो 21 लाख हिंदुस्तानी सेना किसी भी समय इंडियन नेवी की तरह बगावत कर सकते हैं। उस वक्त अंग्रेजों को शर्मसारी झेलते हुए भारत को आजाद नहीं बल्कि बागियों (क्रांतिकारियों) के सामने सत्ता का समर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।

अगर जिन्ना, गांधी और नेहरू ने फरवरी 1946 के नौसेनिक विद्रोह की खिलाफत न की होती तो भारत के तीन टुकड़े भी न होते। हालांकि यह सिर्फ कल्पना ही है क्या होता या क्या न होता, लेकिन इतना जरूर है कि भारत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सपनों का हिंदुस्तान होता। यह तो यह भी हो सकता कि जिन लोगों ने क्रांतिकारियों के योगदान की खिलाफत की उनका नाम गद्दारों की फेहरिश्त में शामिल होता और नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं की प्रतिमाएँ और नाम देश के प्रतिष्ठानों और मार्गों पर अंकित होता।

दिल्ली के राजपथ पर 23 जनवरी 2022 को नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा के उदय के विहंगम दृश्य ने पाकिस्तान में रह रहे उन लोगों के दिलों को झकझोर दिया होगा जिनके पूर्वजों ने इंडियन नेवी के 1946 के विद्रोह में हिस्सा लेकर हिंदुस्तान की आजादी यज्ञ में अपने जीवन की आहूति दी होगी। कसक तो उनके मन में उठ रही होगी कि बंटबारा न होता, जबरन देश को मजहब के नाम पर तोड़ा न होता तो आज वो भी इस समारोह का जश्न मना रहे होते। इंडियन नेवी के 1946 के विद्रोह को नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इसलिए सीधा जोड़ा जा रहा है क्यों कि अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल फूंकने वाले नेवी मुंबई और कराची की सड़कों पर जब आजाद हिंद फौज के तराने कदम-कदम मिलाए जा और जय हिंद के नारे को बुलंद कर रहे थे तब हजारों-हजार हिंदुस्तानी (हिंदु- मुसलमान सभी) उनके पीछे निकल पड़े थे।

इंडियन नेवी में आजादी की अलख जागने से आग बबूला एडमिरल गॉडफ्रे ने जब इंडियन नेवी को पर बमबारी कर ध्वस्त करने की धमकी दी तो लाखों लोगों की भीड़ अंग्रेजों की गोलियों की परवाह किए बगैर विद्रोही नौसेनिकों को भोजन और रसद लेकर दौड़ पड़ी थी। जिन्ना और गांधी ने विश्वासघात और इस विद्रोह को हिंदू-मुसलमान नौसेनिकों का अपवित्र गठबंधन करार न दिया होता तो आज देश की शक्ल और सूरत दूसरी होती।

बहरहाल, भारत ने पुरानी सरकारों की गल्तियों को सुधारने का जो सिलसिला शुरू किया है उससे देश के जनमानस पर असर हो रहा है। भारत को ही नहीं बल्कि पाकिस्तानियों को भी असली इतिहास का ज्ञान हो रहा है। ऐसी कोशिशों से भारत-पाकिस्तान भले ही फिर से एक न हो पाएं लेकिन इस नई पीढ़ी को पाकिस्तान बनाने वालों की करतूतों पर अफसोस तो होगा ही साथ हिंदुस्तान के साथ शायद भारत के साथ दुश्मनी भावना में कमी जरूर आएगी। कुछ इतिहासकारों का एक मत यह भी है कि भारत की आजादी के नायकों में से सुभाष चंद्र बोस वो एक मात्र नाम है जिसे पाकिस्तान के भी आम शहरी से लेकर पुराने सैनिक तक दिल से सलाम करते हैं, भले ही जुबान पर से कुछ न कहपाते हों!