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Russia-Ukraine जंग के बीच TRP तलाशते खबरिया TV चैनलों ने देश की इज्जत को रखा ताक पर, देखें क्या-क्या बेच रहे हैं

Russia-Ukraine जंग में TRP तलाश रहे खबरिया TV चैनल

'युद्ध किसी के बीच हो उसके नतीजे भयावह होते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि रूस और यूक्रेन के बीच जंग में भारत और भारतीय मीडिया को क्या करना चाहिए। क्या भारत को उस उक्रेन का साथ देना चाहिए जो भारत के खिलाफ पाकिस्तान को भारी असलह-टैंक और तोप देता रहा है। भारत-पाक विवाद में उक्रेन का पलड़ा हमेशा पाकिस्तान की ओर झुका हुआ नजर आया। जबकि रूस ने हमेशा ब्लाइंडली भारत के पक्ष में दुनिया से पंगा लिया है। भारत के पक्ष में वीटो किया है। 1962 का युद्ध अपवाद है जिसमें रूस ने चीन के खिलाफ कार्रवाई से इंकार कर दिया था। लेकिन 1971 का वो समय जब अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा भारत पर हमले के लिए रवाना कर दिया था तब रूस ने बिना समय गंवाए अपने युद्धपोत अमेरिकी नेवी के सामने खड़े कर दिए थे। सबमरींस को मोर्चे पर झोंक दिया था।

यह सही है कि इस समय वर्ल्ड ऑर्डर चेंज हो रहा है। इमरान खान क्रेमलिन की परिक्रमा कर लौटे भी हैं, तो क्या यह उचित होगा कि खबरिया चैनल मौजूदा जंग में रूस को 'विलेन' साबित कर दें! वो भी सिर्फ TRP के लिए…'

रूस और यूक्रेन के बीच हो रही जंग के बीच इंडियन टेलीविजन मीडिया टीआरपी बटोरने के लालच में नेशनल नैरेटिव यानी संयुक्त राष्ट्र में भारत सरकार के रुख के खिलाफ ही खबरें परोसने पर आमादा है। एक तरफ रूस से शांति वार्ता की गुहार लगाने वाले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन से 40 मिनट तक बालहठ करते हैं कि अब भी उन्हें नाटो का मेम्बर घोषित कर दिया जाए। बदले में बाइडन अमेरिकी फौज भेजने के बजाए कीव छोड़कर भागने की सलाह देते हैं। जेलेंसकी, रूस से बार-बार शांति वार्ता और युद्ध रोकने कातर पुकार भी लगा रहे हैं और जैसे ही पता चलता है कि पोलैण्ड हथियार पहुंचानेवाला है तो जेलेंसकी सीन से गायब हो जाते हैं। इधर कीव युद्ध की विभीषिका में राख हो रहा है तो उधर जेलेंसकी नाटो के सदस्य देशों से बार-बार फौज भेजने और नाटो की सदस्यता दिलाने की के लिए गुहार लगा रहे हैं। भारतीय खबरिया चैनलों को न यह दिखाई पड़ रहा है, न सुनाई दे रहा है और न समझ आ रहा है।

भारत के बड़बोले मीडिया और टीआरपी के लालची खबरिया चैनल, दो मुंहे यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंसकी को हीरो की तरह पेश कर रहे हैं। रूस को बर्बर-अत्याचारी आक्रमणकारी के तौर पर पेश किया जा रहा है। भारत के इन निजी खबरिया चैनलों के मालिक और संपादक यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि अगर पुतिन चाहते तो परमाणु हथियारों का प्रयोग किये बगैर भी यूक्रेन को राख के ढेर में तब्दील कर सकते थे। अगर रूसी फौज नागरिक क्षेत्रों में संयम नहीं बरतती तो यूक्रेन के शहरों में लाशों के अम्बार लग जाते।

रूसी फौज, आगे बढ़ने से पहले आम नागरिकों के साथ यूक्रेनी बॉर्डर गार्ड्स से भी हथियार डाल कर घर वापस जाने की अपील कर रही है। रूसी फौज जमीन पर आगे बढ़ने से पहले चेतावनी जारी कर रही है। हालांकि, हर नागरिक को अपने देश हित के लिए सर्वस्व अर्पण से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता। अगर यूक्रेनी नागरिक भी बंदूक उठाकर, या पेट्रोल बॉम्ब से रूसी सेना की राह में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं और बलिदान दे रहे हैं तो वो उनका राष्ट्र के प्रति निष्ठा-सम्मान और आस्था के लिए बलिदान है। उनके लिए सैल्यूट करना तो बनता है। लेकिन क्या सिविलियन कॉलोनियों से हो रही गोलियों की बौछार का जवाब देना रूसी सेना का अधिकार नहीं हैं (भले ही वो आक्रमणकारी क्यों न हों)।

भारत के निजी खबरिया चैनल जेलेंसकी को हीरो और पुतिन को विलैन की तरह पेश कर रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम का मीडिया कर रहा है। पश्चिम का मीडिया रूस के खिलाफ प्रोपेगण्डा न्यूज स्प्रेड कर रहा है, उसी के पिछलग्गू की तरह ये भारत के खबरिया चैनल ब्रेकिंग न्यूज, बड़ी खबर, एक्सक्लूसिव खबर बना कर दिखा रहे हैं। भारत के कुछ खबरिया चैनलों ने अपने संवाददाताओं को भी यूक्रेन भेजा है। जहां से पल-पल की खबरें दिखाने और बताने की कोशिश की जा रही है। एक ओर तो वो कहते हैं कि रूस ने यूक्रेन को जल-थल और नभ तीनों ओर से घेर कर हमला किया है। यूक्रेन के मिलिटरी बेस और एयर बेस ध्वस्त कर दिए हैं वहीं प्रोपेगण्डा वीडियो दिखाते हैं कि यूक्रेनी फाइटर ने रूस के मिग एसयू 24 को डॉग फाइट में मार गिराया। अगर इन खबरचियों के पास डॉग फाइट की फुटेज आ गई तो यह भी तो पता चला होगा कि यूक्रेन के फाइटर जेट उड़ान कहां से भर रहे हैं। इसके अलावा रूसी जहाज-चौपर गिराने, रूसी फौजियों को युद्धबंदी बनाने को सैकड़ों को मार गिराने की खबरें भी चल रही हैं। जो मार गिराए गए हैं उनके बॉडी बैग्स हैं कहीं?

भारत की प्रेस परिषद, भारत के ‘महान’एडिटर गिल्ड और (So Called) स्वंयभू स्वअनुशासित टेलीविजन मीडिया की नियंत्रक संस्था नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन को अभी तक दिखाई नहीं दे रहा कि निजी खबरिया चैनल टीआरपी की भेड़चाल में भारत सरकार के रुख की खिलाफत ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों के खिलाफ खबरें दिखा रहे हैं।

भारत के निजी खबरिया चैनल, पश्चिमी मीडिया की तरह एक ही राग अलाप रहे हैं कि यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता था, बस इतनी सी ही छोटी बात पर यूक्रेन को बर्बाद कर दिया। जिस तरह पश्चिमी मीडिया पुतिन को अत्याचारी-अंहकारी बताने पर जुटा है, ठीक वैसा ही ये खबरिया चैनल भी कर रहे हैं। युद्ध से विध्वंस होता है। गरीबी और बेरोजगारी आती है। बीमारियां और विकलांगता युद्ध की विभीषिका के नतीजे होते हैं। युद्ध अनंतिम कदम होना चाहिए। लेकिन क्या पश्चिमी या भारतीय खबरिया चैनलों ने यह जानने की कोशिश की है कि पुराना सोवियत शासन लाना ही पुतिन का मकसद है या पश्चिमी देशों का कोई और गहरा षडयंत्र है जिसकी जानकारी पुतिन को मिल चुकी है।

सोचने वाली बात यह भी है कि 5 सितंबर 2014 को हुए मिंस्क एग्रीमेंट की शर्तों (जो बर्बल तय हुई थीं) को लागू नहीं किया जाना चाहिए? डोनावास तो आठ सालों से आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है? पश्चिमी देशों को क्यों दिखाई नहीं दिया? नाटो रूस से अलग हुए देशों को अपने सुरक्षा घेरे में क्यों लेना चाहता है? अगर ऐसा करने से नाटो देशों के हित साधे जा रहे हैं तो रूस अपने हितों की रक्षा क्यों न करे? क्या किसी खबरची के पास ऐसी खबर है कि पश्चिमी देश सोवियत संघ विघटन के बाद अस्तित्व में आए देशों में से कुछ को अपनी ‘प्रयोगशाला’बना चुके हैं, और उन प्रयोगशालाओं में क्या-क्या प्रयोग किए जा रहे हैं?

इन सारे तर्कों और बहस को एक तरफ रख दीजिए, धूल डाल दीजिए सारे तथ्यों-प्रमाणों पर, लेकिन क्या ये खबरिया चैनलों का इंट्रेस्ट, ‘नेशनल इंट्रेस्ट’  से ऊपर हो गया है क्या? भारत ने अभी तक किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर रूस को विलैन की पेश नहीं किया है। न ही यूक्रेन की बुरा-भला कहा है। भारत सरकार ने संतुलित रवैया अपनाया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर तो खबरिया चैनलों का रवैया नेशनल इंट्रेस्ट को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं होना चाहिए! नकलचियों को कम से कम पश्चिमी मीडिया से इतनी सीख तो ले ही लेनी थी।