क्या भारत में सूचना प्रसारण मंत्रालय नाम की कोई संस्था है? क्या भारत में कोई ऐसी व्यवस्था है जो न्यूज टीवी चैनलों पर परोसी जा रहे कंटेंट की मॉनीटरिंग कर सकता है? सोशल और डिजिटल मीडिया की मॉनिटरिंग की बात करना तो बेईमानी ही है, क्यों कि भारत में प्रिंट और टीवी मीडिया का रेग्युलेशन तो है मगर अभी तक डिजिटल-सोशल मीडिया का रेग्युलेशन ही नहीं है। रूस-यूक्रेन क्राइसिस के बारे में आम आदमी ही नहीं बल्कि सरकारी महकमों के अहलकार भी उसी सरकार के खिलाफ पोस्ट और फोटो शेयर कर रहे हैं जिसका वो नमक खा रहे हैं? यानी अपना और अपने परिवार का पेट पालने वाली सरकार के खिलाफ धड़ल्ले से पोस्ट शेयर रहे हैं। लेकिन कहीं कोई प्रभावी रोक नहीं है।
हिंदी में एक कहावत है कि गली का कुत्ता भी जहां बैठता उस जगह को अपनी पूछं से साफ कर देता है, लेकिन कुछ हिंदुस्तानी सो कॉल्ड सेक्युलर सरकारीजीव हैं, जो गली के कुत्तों से भी बदतर हरकतें कर रहे हैं। बहरहाल, पहले बात उन खबरिया चैनलों की जो रूस-यूक्रेन जंग से पहले जंग का लाइव टेलिकास्ट कर रहे हैं, उन्होंने तो मीडिया की मर्यादा को तार-तार कर दिया है। इन चैनलों ने जंग के दूसरे दिन में ही ऐलान कर दिया ही कीव नहीं गिरा तो पुतिन हार गए।
साढ़े चार सौ घण्टों से लगातार वॉर जोन से लाइव रिपोर्टिंग का दावा करने वाले एक चैनल ने तो झापोरिज्झिया पॉवर प्लांट पर हमले के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन को ‘ब्लैकमेलर’ साबित कर दिया। शायद इस चैनल के एंकर और संपादक ये भूल गए कि जिस पुतिन को ‘ब्लैकमेलर’बता रहे हैं, उन्हीं पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध क्षेत्र में फंसे भारतीयों को निकालने की रणनीति बनाई है।
मान भी लो कि भारत का सूचना प्रसारण मंत्रालय कामचोर हो गया है, मंत्री-अफसर सो रहे हैं, लेकिन खबरिया चैनल पर निगाह रखने वाली संस्था क्या कर रही हैं? नैतिकता-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झण्डा बुलंद करने वाली संस्थाएं और और उनके अलम्बरदार भी सो गए हैं क्या? एडिटर्स गिल्ड और एनबीए कहां चले गए हैं। समय खबरिया चैनलों की उच्छश्रंखलता और गैर जिम्मेदाराना हरकत पर नियंत्रण कौन करेगा?
खास बात यह कि पश्चिमी मीडिया के प्रोपेगण्डा वीडियोज को दिन-रात दिखाने-चलाने वाले चैनलों ने एक बहुत महत्वपूर्ण स्टोरी को पासिंग न्यूज की तरह दिखाया और इतिश्री कर ली। यह महत्वपूर्ण खबर रूसी खेमे से आई थी। खबर थी कि यूक्रेन की लैब्स में पश्चिमी देश केमिकल वेपन बनाए जा रहे हैं। पुतिन को यह पता चल गया और उन्होंने केमिकल वेपंस बनाने वाली लैब्स को खत्म करने लिए इनवेजन किया।
खबर तो यह भी है कि पश्चिमी देश यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी को किसी भी तरह बाहर निकाल कर अपनी कस्टडी में रखना चाहते हैं। क्यों कि जेलेंसकी अगर रूस के हाथों पड़ गया तो बहुत बड़ा राज फाश हो जाएगा। यूक्रेन को लगातार घातक हथियार दिए जा रहे हैं कि वो रूस से लड़-लड़ कर ही खत्म हो जाए और वो सारी लैब भी नष्ट हो जाएं जिनमें संदिग्ध रसायनिक हथियार बनाए जा रहे हैं। रूस के हाथ कोई सुराग हाथ न लगे। कहने वाले लोग इसको प्रोपेगण्डा स्टोरी कह सकते हैं, तो सवाल यह उठता है कि जब पश्चिमी मीडिया की प्रोपेगण्डा स्टोरीज को घण्टों-घण्टों तक दिखाया और चलाया जा सकता है तो फिर रूस के हित प्रोपेगण्डा पर चर्चा क्यों नहीं हो रही, क्यों नहीं इस प्रोपेगण्डा की आलोचना की जा रही है। क्यों नहीं इस प्रोपेगण्डा पर एक्सपर्ट से सवाल किए जा रहे हैं?
यहां पर वार जोन से लाइव रिपोर्टिंग कर रहे राजेश पंवार का जिक्र करना जरूरी है। राजेश पंवार ने शुक्रवार की सुबह लाइव टेलिकास्ट के दौरान स्टूडियो में मौजूद एंकर को बताया कि कीव पर या यूक्रेन में ऐसा नुकसान नहीं हुआ है, जैसा की वीडियोज में दिखाया जा रहा है। राजेश पंवार ने स्टूडियो में एंकर को बताया कि यूक्रेन की सरकार ने 45 देशों की मीडिया को युद्धग्रस्त इलाकों का दौरा करवाया है। इस दौरान उन्हें कहीं भी ऐसे निशान नहीं मिले जैसे चैनल की स्क्रीन पर दिखाए जा रहे हैं। राजेश पंवार ने अपने स्टूडियो में बैठे एंकर को यह भी हिदायत दी कि वेस्टर्न मीडिया और यूक्रेनी मीडिया ने रूस के खिलाफ प्रोपेगण्डा वीडियोज और न्यूज वॉर छेड़ रखा है। भारतीय मीडिया को इस प्रोपेगण्डा में नहीं फंसना चाहिए।
हालांकि राजेश पंवार अकेले संवाददाता नहीं हैं जिन्होंने बल्कि एक्चुअल रिपोर्टिंग की है, मगर स्टूडियो में बैठे एंकर और संपादक एक्सपर्ट के मुंह में शब्दों को ऐसे ठूंस रहे हैं जैसे उन्हें रूस विरोधी नैरेटिव स्थापित करने का ठेका दिया गया है। यहां अभिप्राय यह नहीं कि पश्चिमी देशों या यूरोपीय देशों के खिलाफ भी नैरेटिव स्थापित किया जाए। मीडिया तो वॉच डॉग है। रूस-यूक्रेन क्राइसिस की खबरों को प्रसारित करने से पहले नैतिकता और मर्यादा का ध्यान कौन रखेगा।
जब इतनी बातें हुई हैं तो तीन बिंदुओं पर भी कुछ चर्चा हो जाए। पहला बिंदू- इंडिया के खबरिया चैनलों ने रूसी फौजों को दूसरे दिन ही कीव के पांच किलोमीटर नजदीक पहुंचा दिया। भला हो अमेरिकन मीडिया का जिसने सैटेलाइट इमेज दिखाकर कहा कि रूसी फौज कीव से 27 किलोमीटर दूर है। जंग के नवें दिन भी रूसी फौज कीव के फ्रीडम स्क्वायर से 27 किलोमीटर दूर ही थीं। यह प्रमाण लाइव रिपोर्टिंग में राजेश पंवार ने दिया।
दूसरा बिंदू, भारतीयों को यूक्रेन में बंधक बनाने वाला है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पता नहीं किस रणनीति के तहत इस खबर से कन्नी काटी, लेकिन गुरुवार की शाम रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने फिर कहा कि यूक्रेन की फौज ने इंडियन स्टूडेंट्स बंधक बना लिया है। यूक्रेन की फौज उन्हें बाहर निकलने नहीं दे रही। जबकि रूसी फौज जंग रोक कर भारतीयों को बाहर निकाल रही है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन की बात की पुष्टि उन वीडियोज से भी होती है जिनमें भारतीय छात्र यूक्रेनी फौजियों की यातनाओं की दारुण व्यथा सुना रहे हैं।
तीसरा और ताजा बिंदू यह कि, शुक्रवार की सुबह जबलोग जागे तो टीवी पर एंकर चिल्ला रहे थे कि रूस ने यूक्रेन के न्यूक्लियर पॉवर प्लांट पर हमला कर दिया है। हमले से प्लांट में आग लग गई है। किसी भी समय परमाणु विस्फोट हो सकता है। अगर प्लांट में विस्फोट हो गया तो हीरोशिमा-नागासाकी से बुरा हाल हो जाएगा। यूक्रेन और यूरोप में अंधेरा छा जाएगा। दुनिया बर्बाद हो जाएगी। एकबार फिर कीव के फ्रीडम स्क्वायर से लाइव रिपोर्टिंग कर रहे राजेश पंवार ने भारत के खबरिया चैनलों को बताया कि झापोरिज्झिया पावर प्लांट के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पर हमला किया गया था। ताकि प्लांट पर रूसी फौज कब्जा कर सके। रूसी फौज एटॉमिक पॉवर प्लांट्स पर इसलिए कब्जा कर रही है ताकि यूक्रेन न्यूक्लिर हथियार न बना सके।