शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के समरकंद समिट (Samarkand Summit 2022) के साइड लाइन भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की मीटिंग में बहुत कुछ अनापेक्षित और अप्रत्याशित रहा। इस मीटिंग पर दुनिया भर के देशों की निगाह लगी हुई थी। समरकंद समिट (Samarkand Summit 2022) में मोदी और पुतिन की इस मीटिंग से दुनिया को राहत मिली है। हालांकि अभी बहुत कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन पुतिन का यह कहना कि रूस जंग को बहुत जल्द रोकना चाहता है लेकिन यूक्रेन है कि मानने को तैयार नहीं है। समरकंद समिट (Samarkand Summit 2022) के साइड लाइन मीटिंग में पुतिन का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है।
रूस कम नाटो और यूरोपीय देश ज्यादा झेल रहे आर्थिक तंगी
रूसी सेनाओं ने यूक्रेन का लगभग 30 फीसदी हिस्सा कब्जा लिया था, अचानक रूस तोपें बारूद उगलना बंद कर देती हैं और अघोषित रिट्रीट शुरू हो जाती है। यूक्रेन और पश्चिमी देश पुतिन के इस कदम को रूस की हार मानकर चल रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी ने तो रूसी सेनाओं के पीछे हटने पर जश्न भी मना लिया है। दुनियाभर के प्रतिबंधों के चलते रूस की आर्थिक स्थिति पर असर तो पड़ा ही है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता। मगर यह भी सच है कि रूस के कदमों से नाटो और यूरोप के देश भी घुटनों पर आ गए हैं।
यूक्रेन के बहाने रूस से लड़ रहे अमेरिका सहित ये 32 देश
यूक्रेन के बहाने कम से कम नाटो के 32 देश और अमेरिका रूस से अप्रत्यक्ष जंग में जूझ रहे हैं। मतलब यह कि इस समय अकेला रूस 32 देशों से जूझ रहा है। रूस को आर्थिक तौर पर कमजोर करने निकले अमेरिका और यूरोपीय देशों को दाल-आटे का भाव याद आ गया है। गैस और तैल आपूर्ति पर ऐसा असर पड़ा है कि इन देशों में मंहगाई आसमान छू रही है। यूक्रेन जंग से रूस जितना झुलस रहा है उससे कहीं ज्यादा अमेरिका, नाटो और यूरोपीय देश झुसल रहे हैं। इनका कसूर यह है कि इन लोगों ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को हथियार (और भाड़े की फौज) भी मुहैया करवाई है। नाटो और अमेरिका यूक्रेन को एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करने भले ही कामयाब हो चुके हैं लेकिन इसकी कीमत इन देशों की आने वाली नस्लों को उठानी पड़ेगी।
रूस खत्म करना चाहता है यूक्रेन जंग
समरकंद समिट (Samarkand Summit 2022) में मोदी से पुतिन ने सबसे अप्रत्याशित बात यह कही कि ‘रूस तो जंग खत्म करना चाहता है।’ यह वाक्य ऐसा है जिसे सुनने के लिए दुनिया तरस रही थी। पुतिन चाहते तो यह ऐलान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई वार्ता में भी कर सकते थे। लेकिन उन्होंने मोदी को ही क्यों चुना, इसके कई गूढ़ रहस्य हैं। जो समय के साथ सामने आएंगे। पुतिन ने ऐलान तो कर दिया कि रूस जंग खत्म करने के लिए तैयार है, लेकिन क्या अब यूक्रेन बातचीत की टेबल पर आएगा, या आने से पहले अपनी शर्तें रखेगा, क्या उन शर्तों को रूस मानेगा, या नाटो और अमेरिका यूक्रेन को रूस के साथ किसी भी तरह की बातचीत से रोकेगा। यूक्रेन को पीछे हटती सेनाओं पर हमले के लिए उकसाएगा। अभी कुछ दिन पहले नाटो के सेक्रेटरी जनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा था कि अगर यूक्रेन ने रूसी सेनाओं पर हमले नहीं किए तो आने वाली सर्दियों में यूक्रेन का नामों निशान मिट सकता है।
यूक्रेन न माना तो कीव पर बरसेगा एटम बम!
मोदी के साथ मीटिंग के दौरान पुतिन की जंग रोकने की बात कहने का मकसद कहीं यह तो नहीं कि पुतिन दुनिया को बताना चाहते हैं कि वो शांति के सभी प्रयास कर चुके। अपनी फौजों को एक निश्चित सीमा तक वापस भी बुला चुके लेकिन यूक्रेन नहीं माना और जंग को तुरंत खत्म करने के लिए रूस के पास आखिरी उपाय छोटे एटम बम का इस्तेमाल ही शेष है।
एक अप्रत्याशित बात और…
समरकंद समिट (Samarkand Summit 2022) की साइड लाइन मीटिंग में मोदी और पुतिन की मीटिंग की एक और अप्रत्याशित बात यह है कि पुतिन ने मोदी को रूस आने का निमंत्रण तो दिया लेकिन मोदी ने उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सामान्यतः होता यह है कि जब एक राष्ट्राध्यक्ष दूसरे राष्ट्राध्यक्ष को निमंत्रण देता है तो वो उसको निमन्त्रण के आभार व्यक्त करते हैं। इसके बाद यात्रा की तारीखें राजनयिक स्तर के अधिकारी तय करते हैं। पुतिन के निमंत्रण पर मोदी की चुप्पी महज एक संयोग है या रणनीति या राजनयिक स्तर पर सब कुछ तय है। लेकिन कुछ अटपटा तो है।
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