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CSE रिपोर्ट: भारत में दिख रहा जलवायु परिवर्तन का भयाभह असर, जल जीवन मिशन सही दिशा में उठाया गया सटीक क़दम

लोगों के जीवन में बड़े बदलाव लाने के लिए तैयार जलवायु परिवर्तन (फ़ोटो: राहुल कुमार)

अरुण आनंद

जलवायु परिवर्तन आपके दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है। यह अब आपका अगला पड़ोसी है और यह जल्द जाने वाला भी नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने भारत को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करना शुरू कर दिया है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की वार्षिक रिपोर्ट,‘State of India’s Environment, 2023’ के साथ ही खतरे की घंटी बजनी शुरू हो जानी चाहिए, क्योंकि यह इस बात का पड़ताल करती है कि जलवायु परिवर्तन भारत को किस तरह अब स्पष्ट तौर पर प्रभावित कर रहा है।

पहला दिखायी देने वाला प्रभाव ‘चरम मौसम’ का है। सीएसई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 1 जनवरी से 31 अक्टूबर, 2022 तक 304 दिनों में से 271 पर चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया है। इन घटनाओं ने 2952 लोगों की जान ले ली है और 1.8 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) फ़सल क्षेत्र को नुक़सान पहुंचा है।

 

सर्दी

सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक़, “21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 59 दिनों में से 38 दिनों में चरम मौसम की घटनायें देखी गयी हैं। उत्तर प्रदेश में 25 दिनों में ये चरम घटनायें देखी गयीं। इसके बाद मध्य प्रदेश (24 दिन) और पंजाब (15 दिन) का स्थान रहा। देश ने 1951 के बाद से अपनी तीसरी सबसे नम जनवरी का अनुभव किया। फिर भी, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के ज़्यादातर भागों में कम वर्षा दर्ज की गयी। यह आश्चर्यजनक इसलिए है, क्योंकि मध्य और दक्षिणी क्षेत्र सामान्य से अधिक आर्द्र थे। इन घटनाओं से प्रभावित फ़सल क्षेत्र 33,184 हेक्टेयर था और सर्दियों के दौरान मौसम की इन चरम घटनाओं के कारण 22 लोगों की जानें चली गयी थीं।

 

मानसून से पहले

मार्च और मई के बीच 92 दिनों में से 81 दिनों में चरम मौसम की घटनायें देखी गयीं, जो कि 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं। राजस्थान और असम में 36 दिनों तक चरम मौसम की घटनायें देखी गयीं, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश (प्रत्येक 32 दिन) का स्थान रहा। असामान्य रूप से गर्म मार्च और अप्रैल के कारण गर्मी की लहरें जल्दी शुरू हो गयीं। देश भर में 51 दिनों की हीटवेव की सूचनायें मिलती रहीं। जबकि मई, 2022 में तापमान सामान्य था, इसने असामान्य भारी वर्षा का अनुभव किया। प्री-मॉनसून सीज़न के दौरान  चरम मौसम की इन घटनाओं के कारण 302 लोगों की मौत हो गयी और 13.169 हेक्टेयर फ़सल क्षेत्र प्रभावित हुआ।

 

मानसून

2022 के दौरान जून और सितंबर के बीच सभी 122 दिनों में 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चरम मौसम की घटनायें देखी गयीं। असम ने 95 दिनों में सबसे अधिक इस तरह की घटनाओं का अनुभव किया, उसके बाद मध्य प्रदेश (85 दिन) और महाराष्ट्र (80 दिन) का स्थान रहा। जबकि समग्र मानसून सामान्य था, वर्षा पूरे मौसम में कमी और अधिकता के बीच घटती-बढ़ती रही। सीज़न के अंत में 188 ज़िलों (देश के 27% ज़िलों) में कम वर्षा हुई, जबकि सात ज़िलों में बहुत कम वर्षा हुई (सामान्य से 60-99% कम)। मानसून के दौरान इन चरम मौसम की घटनाओं के परिणामस्वरूप 2431 लोगों की मौतें हुईं और 1,797,190 हेक्टेयर फ़सल क्षेत्र प्रभावित हुआ।

 

मानसून के बाद

2022 के दौरान मानसून के बाद की अवधि में, अक्टूबर में 31 में से 30 दिनों में 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में चरम मौसम की घटनाएं देखी गईं। उत्तर प्रदेश ने 19 दिनों तक चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया, इसके बाद महाराष्ट्र (13 दिन) का स्थान रहा। उत्तर पश्चिमी क्षेत्र, जिसने सबसे अधिक चरम मौसम के दिनों को देखा, ने 1901 के बाद से अपने सातवें सबसे गर्म अक्टूबर का अनुभव किया। इस क्षेत्र में महीने के 21 दिनों में चरम मौसम की घटनाएं देखी गईं। इन घटनाओं से प्रभावित फसल क्षेत्र 45,388 हेक्टेयर था और 197 लोगों की जान चली गई थी।

 

जलवायु हॉटस्पॉट

यह रिपोर्ट इस तथ्य को सामने लाती है कि भारत का लगभग 45 प्रतिशत वन और वृक्षों का आवरण 2030 तक ‘जलवायु हॉटस्पॉट’ के रूप में उभरने के लिए तैयार है; 2050 तक 64 प्रतिशत वन और वृक्ष आच्छादन जलवायु परिवर्तन की ‘गंभीरता’ का सामना कर सकते हैं। क्षेत्रफल के संदर्भ में इसका मतलब क्रमशः लगभग 315, 667 वर्ग किमी और 448367 वर्ग किमी होगा।

‘जलवायु हॉटस्पॉट’ जलवायु परिवर्तन से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने वाला एक क्षेत्र होता है, जबकि ‘उच्च तीव्रता’ का अर्थ है कि हरित क्षेत्र में 1.5 और 2.1 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान में वृद्धि देखने की संभावना है। ये हॉटस्पॉट 20 से 26 प्रतिशत की वृद्धि या कमी के साथ वर्षा के पैटर्न में बदलाव भी देखेंगे। यह डेटा इंडियन स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट की रिपोर्ट 2021 के निष्कर्षों पर आधारित है। इस रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गयी है कि हिमालयी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश- लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड- तापमान में अधिकतम वृद्धि दर्ज करेंगे और साथ ही संभवतः वर्षा में कमी का अनुभव करें। हालांकि, उत्तर-पूर्व के राज्यों में अत्यधिक बारिश बढ़ सकती है।

 

जल जीवन मिशन: अतीत से प्रस्थान

सीएसई रिपोर्ट में मोदी सरकार के उस ‘जल जीवन मिशन’ कार्यक्रम की सराहना की गयी है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त, 2019 को लाल क़िले की प्राचीर से घोषित की गयी इस योजना ने उन कुछ प्रमुख मुद्दों का हल दिया है, जो कि पिछली सरकारों द्वारा पहले की गयी इस तरह की परेशानियों से ग्रस्त थे।

इस रिपोर्ट में कहा गया है, “इस कार्यक्रम में एक मज़बूत डैशबोर्ड है, जहां आम जनता के लिए योजना की केंद्रीकृत प्रगति को आगे बढ़ाया जाता है। यह बहुत ज़रूरी क़दम गांवों को यह समझने में मदद करता है कि दूसरे गांव कैसे प्रगति कर रहे हैं और गांवों को कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। यह डैशबोर्ड हर गांव को जल स्रोतों, जल उपचार संयंत्रों, शोधन संयंत्रों, भंडारण सुविधाओं, वितरण नेटवर्क और सामुदायिक स्वच्छता परिसर के साथ मैप करता है।

इसमें कहा गया है, “इस कार्यक्रम (जल जीवन मिशन) के दायरे में” प्राकृतिक आपदाओं या अप्रत्याशित चुनौतियों “के लिए तैयारी भी शामिल है, जो गांवों में थोक जल हस्तांतरण और उपचार संयंत्र और वितरण प्रणाली स्थापित करने के मामले के आधार पर मामले के आधार पर लागू होती है। यह जहां भी पानी की गुणवत्ता का मुद्दा है, सुरक्षित पानी की आपूर्ति के लिए तकनीकी हस्तक्षेप लाने और ग्रेवाटर प्रबंधन करने की बात करता है।

सीएसई की यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति को रेखांकित करती है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 को ‘ऊर्जा परिवर्तन की बात आने पर लाभ के विपरीत’ स्थिति के लिए जाना जायेगा। प्रमुख कारणों में से एक रूस-यूक्रेन युद्ध है, जिसने पश्चिम को यह एहसास करा दिया है कि यूरोप अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर है। और यह पश्चिम ही है, जो उन सभी बड़ी बातों के बीच दोषी भी है, जो कि जलवायु परिवर्तन के बारे में विकासशील दुनिया को यह सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें कैसे रहना और बढ़ना चाहिए। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने इस रिपोर्ट में अपनी शुरुआती टिप्पणी में इसे काफ़ी कटुता से रखा है, “इस साल, सभी बयानबाज़ी और बड़ी बातों के बावजूद पहले से ही विकसित दुनिया “ड्रिल बेबी ड्रिल” पर वापस चली गयी है।