जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने बेहद खौफनाक चेतावनी दी है। उन्होंने बताया है कि इस शताब्दी के अंत तक पृथ्वी पर मौजूद हर 10 में से एक प्रजाति विलुप्त हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत नए शोध में कहा गया है कि 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी अपनी प्रजातियों के दसवें से अधिक को खो सकती है। इस डरावनी हालात से निपटने के लिए दुनियाभर के 3000 वैज्ञानिकों ने अपने-अपने देश की सरकारों से तुरंत कार्रवाई की मांग की है। इस शोध में जैव विविधता पर द्वितीयक प्रभावों का अध्ययन भी किया गया है, जो दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहते हैं।
27 फीसदी तक प्रजातियां मर सकती हैं
शोधकर्ताओं ने रिसर्च के दौरान इस नतीजे को पाने के लिए एक सुपरकंप्यूटर की मदद से पृथ्वी का एक सिमुलेशन मॉडल बनाया। इस मॉडल को कृत्रिम प्रजातियों के साथ आभासी दुनिया में बदला गया। इसके बाद इन पर ग्लोबल वॉर्मिंग और जमीन के इस्तेमाल के प्रभाव को देखा गया। इस शोद में शामिल हेलसिंकी विश्वविद्यालय के डॉ. जियोवन्नी स्ट्रोना ने कहा कि हमने एक आभासी दुनिया को पृथ्वी पर मौजूद जीवों से आबाद किया है। यह देखने में बिलकुल धरती पर पाए जाने वाले पर्यावरण की तरह था। फिर हमने ग्लोबल वॉर्मिंग (global warming) और इंसानों के जमीन उपयोग करने के तरीकों को लागू किया।
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यही नहीं उन्होंने आगे बताया कि सिमुलेशन में हमने देखा कि सबसे ज्यादा खराब स्थिति में 27 फीसदी प्रजातियां मर सकती हैं। अगर प्रभाव मध्यम रहा तो 13 फीसदी जानवर और पौधे विलुप्त हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह एक अद्वितीय अध्ययन है, क्योंकि इसमें जैव विविधता पर द्वितीयक प्रभावों को ध्यान में रखा गया है, जब एक प्रजाति के विलुप्त होने पर दूसरी प्रजाति अपनेआप खत्म हो जाती है।
द्वितीयक उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा खतरा
ऑस्ट्रेलिया में फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोरी ब्रैडशॉ ने कहा कि आप किसी शिकारी प्रजाति के बारे में सोचें जो जलवायु परिवर्तन के कारण अपने शिकार को खो देती है। शिकार होने वाली प्रजाति का खत्म होना प्राथमिक विलोपन है, क्योंकि उसका अंधाधुंध शिकार किया गया। अब उसका शिकार करने वाली प्रजाति के पास भी खाने के लिए कुछ नहीं बचेगा। इससे शिकारी भी विलुप्त हो जाएंगे।
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