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दुनिया में मचेगी तबाही! भारत में बारिश का कहर, America-यूरोप में भीषण गर्मी, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

Global Warming: भारत के अधिकांश हिस्सों में जहां जून में जानलेवा गर्मी पड़ी और हीट वेव से लोग बेहाल रहे, वहीं जुलाई में देश के अधिकांश हिस्सों में आसमान पर बादलों का डेरा है। गरज चमक के साथ भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालत बन गए हैं। फिलहाल समूचे उत्तर पश्चिम भारत में अत्यधिक भारी बारिश अपना कहर बरपा रही है। लगातार बारिश के कारण पूरे हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ और भूस्खलन हुआ है, जबकि दिल्ली में पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई है। मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रह इसी तरह गर्म होता रहा तो समुद्री धाराओं की एक महत्वपूर्ण प्रणाली कुछ दशकों में ध्वस्त हो सकती है। यह दुनिया के मौसम के लिए विनाशकारी होगा और पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति इससे प्रभावित होगा। नेचर जर्नल में मंगलवार को प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया कि अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग करंट (AMOC) जिसका गल्फ स्ट्रीम एक हिस्सा है सदी के मध्य में या जल्द से जल्द 2025 की शुरुआत में ढह सकता है।

जलवायु संकट (Global Warming) के तेज होने के कारण वैज्ञानिक वर्षों से इसकी अस्थिरता की चेतावनी देते रहे हैं। इन धाराओं की ताकत तापमान और खारेपन पर निर्भर करती है, लेकिन संतुलन बिगड़ने से इन्हें खतरा होगा। जैसे-जैसे महासागर गर्म होते हैं और बर्फ पिघलती है, वैसे-वैसे साफ पानी समुद्र में मिलता है। इससे पानी का घनत्व कम हो जाता है, जिससे वह डूबने में कम सक्षम हो जाता है। जब पानी बहुत ताजा, बहुत गर्म या दोनों हो जाता है तो यह ‘कन्वेयर बेल्ट’ बंद हो जाता है।

भारत में बारिश का क़हर

भारत में मौसम की भयावह घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजॉय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की इस सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून के पैटर्न में बदलाव से फर्क पड़ा है। भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है। यह हालत सिर्फ़ भारत ही की नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया की कमोबेश यही स्थिति है।

अमेरिका-यूरोप में भीषण गर्मी

जहां 22 मिलियन की आबादी वाला चीन के बीजिंग का शहर तापमान जून में 40 डिग्री सेल्सियस (104 फ़ारेनहाइट) से ऊपर रहा है। वहीं अमरीका में हीट वेव ने लोगों को तड़पा दिया। सोने पे सुहागा यह है कि कैनेडियन इंटर एजेंसी फॉरेस्ट फायर सेंटर (सीआईएफएफसी) के अनुसार, कनाडा में इस साल अब तक 2,392 बार जंगल में आग लगी हैं और 4.4 मिलियन हेक्टेयर का इलाका जल चुका है, जो पिछले दशक के वार्षिक औसत से लगभग 15 गुना अधिक है। उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों का तापमान इस महीने मौसमी औसत से लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ऊपर था। जंगल की आग के धुएं ने कनाडा और अमेरिकी पूर्वी तट को खतरनाक धुंध में ढंक दिया, जिसमें रेकॉर्ड 160 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था। स्पेन, ईरान और वियतनाम में भी अत्यधिक गर्मी दर्ज की गई है, जिससे यह भय बढ़ गया है कि पिछले साल की जानलेवा गर्मी आम घटना बन सकती है। इसके लिए विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

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