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चंद्रयान-3 मिशन के लिए ISRO ने क्यों चुना 2.35 बजे का वक्त,क्या है इसके पीछे का गणित?

ISRO का Chandrayaan-3 लॉन्च के लिए तैयार

ISRO का चंद्रयान-3 चंद्रमा की यात्रा के लिए तैयार है तो वहीं, अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा भी आर्टेमिस मिशन पर काम कर रही है। धरती पर वैज्ञानिकों के लिए चंद्रमा इतना खास इसलिए है क्योंकि यह दूसरे ग्रहों पर इंसानों की पहुंच के दरवाजे खोल सकता है।

चंद्रमा इतना खास क्यों?

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) अपने तीसरे स्पेस मिशन, चंद्रयान-3, के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत,से लेकर अमेरिका औऱ चीन तक अंतरिक्ष की ओर बढ़ने वाला हर देश चन्द्रमा पर अपना पैर जमाना चाहता है।

चंद्रयान-3 की तैयारियों के बीच यह जानना बेहद ख़ास हो जाता है कि आखिर चंद्रमा पर खोज मानव जाति के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? चंद्रमा ने हमेशा मानव जाति के लिए जिज्ञासा को आकर्षित करता है और इसके रहस्यों की खोज से हमारे अपने अस्तित्व के बारे में कई अहम जानकारियां मिली हैं।

चंद्रयान-3 मिशन के लिए काउंटडाउन शुरु हो चुका है। देश के हर नागरिक को इस पल का बेसब्री से इंतजार है। भारतीय अनुसंधान संगठन यानी ISRO चन्द्रयान-3 को 14 जुलाई को 2.35 बजे लॉन्च करने जा रहा है।

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से जीएसएलवी मार्क 3 हेवी लिफ्ट लॉंच व्हीकल(LVM-3) के जरिए लॉंच किया जाएगा। चन्द्रयान-3 मिशन का उद्देश्य चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक लैंडर और रोवर स्थापित करना है।

चन्द्रयान-3 मिशन की सफलता न सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक पर निर्भर करता है,बल्कि लॉंच विंडो के सावधानीपूर्वक निर्धारण पर भी डिपेंड करती है,क्योंकि ये वो अहम वक्त होता है जब अंतरिक्ष यान अपनी खगोलीय यात्रा शुरु करता है।

अगर चन्द्रयान-3 अपने मिशन के लिए निकलता है तो चन्द्रमा पर उतरने की अनुमानित अवधि 23-24 अगस्त के आसपास की होगी। इस बात की जानकारी इसरो प्रमुख सोमनाथ ने खुद दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि इसरो का लक्ष्य है कि चन्द्रयान-3 पहले चन्द्र दिवस के दौरान लैंडिंग करे,जो कि अमावास्या चंद्रोदय के बीच की अवधि को चिन्हित करता है।

इसरो ने क्यों चुना 14 जुलाई को 2.35 बजे का समय?

किसी भी अंतरिक्ष यान के लॉन्च की तारीख और समय सबसे अहम होता है। स्पेश किड्ज की फाउंडर और CEO डॉक्टर श्रीमैशी केसन के मुताबिक प्रक्षेपण के दौरान आकाशीय पिंडों का समन्वयन उस मिशन की दक्षता और सटीकता को और अधिक बढ़ाता है।यही वजह है कि इसरो रणनीतिक रूप से चन्द्रमा और दूसरे ग्रहों के अलाइनमेंट को ध्यान में रखते हुए ये समय चुना है,ताकि मिशन को पूरी तरह सक्सेस बनाया जाय।

वहीं, केसन का कहना है कि पहले चन्द्र दिवस के दौरान चन्द्रमा की सतह औक पर्यावरण की स्थिति लैंडर और रोवर के लिए सबसे बेहतर कंडीशन में होगी। अगर लॉन्च विंडो की गणना इन मापदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो इसरो मिशन की सफलता को बनाए रखने के लिए अगले उपयुक्त मौके की प्रतीक्षा करेगा,जो संभवत: सितंबर में हो सकता है।

चन्दयान-3 की लैंडिंग पूरी तरह कंट्रोल रहने की उम्मीद

जब चन्द्रयान-3 प्रोपल्शन मॉड्यूल चन्द्रमा के आसपास पहुंच जाएगा,तो लैंडर से अलग होने के पहले 100 किमी गोलाकार ध्रुवीय चन्द्र कक्षा में प्रवेश करेगा। वहीं, एडवांस्ड सेंसर और लैंडिंग सिस्टम से लैस लैंडर दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में चन्द्रमा की सतह पर उतरेगा।

बैकअप रिले के तौर पर काम करेगा चंद्रयान-2

चंद्रयान-2 एक बैकअप रिले के रूप में काम करेगा, जो चंद्र सतह पर लैंडर और रोवर के साथ लगातार संपर्क को सुनिश्चित करेगा।

विशेष रूप से डिजाइन किया गया है लैंडर-रोवर

चन्द्रयान-3 मिशन के लिए लैंडर-रोवर को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। चन्द्रमा पर एक दिन की अवधि पृथ्वी के करीब 14 दिनों के बराबर है।वहीं,लैंडर और रोवर बड़े पैमाने पर रिसर्च करने और चन्द्रमा की सतह और पर्यावरण के बारे में जरूरी डेटा उपलब्ध कराने में मददगार साबित होंगे।

खुल सकते हैं मंगल के दरवाजे
दरअसल,चंद्रमा की खोज से नई व्यावसायिक संभावनाएं भी पैदा हो सकती है। चंद्रमा पर बेस का निर्माण अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चंद्रमा से इतर दूसरे ग्रहों, जैसे मंगल, के दरवाजे खोल सकता है। इससे हमारे सौर मंडल के भीतर अन्य ग्रहों और उनके चंद्रमाओं पर खोज का मंच तैयार हो सकता है।

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