रामकृष्ण उपाध्याय प्रकाशित
कर्नाटक में सत्ता में आने के एक महीने से भी कम समय में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पिछले सरकार द्वारा लाए गए “कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार अधिनियम” को रद्द करने का फ़ैसला करके लोगों पर अपना “हिंदू विरोधी एजेंडा” थोपना शुरू कर दिया है। भाजपा सरकार द्वारा राज्य में छात्रों को पहले ही वितरित की जा चुकी स्कूल पाठ्यपुस्तकों में कई बदलाव किये जा रहे हैं।
कांग्रेस सरकार ने “पांच मुफ़्त” चीज़ों के अपने चुनावी वादे को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रहने और इससे नाराज़ लोगों की प्रतिक्रिया का सामना करने के बाद सार्वजनिक मंचों पर बहस को भटकाने के लिहाज़ से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दों को उठाकर ध्यान भटकाने की रणनीति अपनायी है।
पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन
कैबिनेट की बैठक के बाद स्कूली शिक्षा और साक्षरता मिशन मंत्री मधु बंगारप्पा ने मीडिया को बताया कि नयी कांग्रेस सरकार ने कक्षा 6 से कक्षा 10 तक के लिए कन्नड़ और सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव करने का फ़ैसला किया है। उन्होंने कहा कि आरएसएस के संस्थापक हेगडेवार, राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर शामिल अध्यायों और हिंदुत्व विचारक चक्रवर्ती सुलिबेले द्वारा लिखे गए एक लेख को इन पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया जायेगा और उनकी जगह बीआर अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले पर आधारित पाठ को रखा जायेगा।
बंगरप्पा का कहना है कि यह पिछली बसवराज बोम्मई सरकार द्वारा की गयी “पाठ्यपुस्तकों के भगवाकरण को साफ़ करने” का एक प्रयास है,उनका दावा है कि चूंकि शैक्षणिक वर्ष शुरू हो गया है और करोड़ों बच्चों को पाठ्यपुस्तकें पहले ही वितरित की जा चुकी हैं, ऐसे में सरकार 15-पृष्ठ की पूरक पुस्तिका भेजेगी।इन पुस्तिकाओं में “अगले 15 दिनों में” शिक्षकों के पास इन परिवर्तनों को लेकर यह पुस्तिका भेजी जायेगी।
<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>Amnesty & Congress hand in glove against RSS<a href=”https://twitter.com/hashtag/Karnataka?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#Karnataka</a> dropped a chapter on <a href=”https://twitter.com/hashtag/RSS?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#RSS</a> founder Dr Keshav Baliram Hedgewar from state syllabus this year after a decision on education reforms heldby Chief Minister Siddaramaiah Education Minister Madhu Bangarappa. <a href=”https://twitter.com/hashtag/Amnestyinternational?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#Amnestyinternational</a> <a href=”https://t.co/cHeT41Q9N9″>pic.twitter.com/cHeT41Q9N9</a></p>— Centre for Integrated and Holistic Studies (@cihs_india) <a href=”https://twitter.com/cihs_india/status/1666771100317908992?ref_src=twsrc%5Etfw”>June 8, 2023</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>
उन्होंने घोषणा की है कि सरकार अगले पखवाड़े में “पाठ्य पुस्तकों के समग्र सुधार के लिए 5 सदस्यीय” विशेषज्ञ समिति “का गठन करेगी, जो अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू होगी।”
धर्मांतरण विरोधी क़ानून रद्द
सिद्धारमैया सरकार द्वारा जो एक अधिक कठोर निर्णय लिया गया है,वह सही मायने में स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यकों की लॉबी के आगे झुकना दिखाता है और वह है-कर्नाटक मे धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार अधिनियम (धर्मांतरण विरोधी क़ानून) को निरस्त करना, जिसे 2022 की शुरुआत में लागू किया गया था। दरअस्ल कर्नाटक ने कई अन्य राज्यों का अनुसरण किया था,जहां की सरकारों ने पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को समाप्त करने के लिए इसी तरह के क़ानून पारित किए थे। हालांकि, संविधान स्वयं जबरन धर्मांतरण या प्रलोभन की पेशकश पर रोक लगाता है, लेकिन कई ईसाई और मुस्लिम संगठन इन क़ानूनों में रह गयी खामियों का फ़ायदा उठाते हुए उत्पीड़ित वर्गों के बीच धर्मांतरण में शामिल रहे हैं।
कर्नाटक के इस क़ानून ने “धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और ग़लत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में ग़ैर-क़ानूनी रूपांतरण पर रोक लगाने” के संरक्षण के लिए प्रावधान बनाये,जिन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
लेकिन, “धर्मांतरण रैकेट चलाने वाले” अवैध धर्मांतरण को लेकर 3 से 5 साल की क़ैद और 5 लाख रुपये के जुर्माने जैसे दंडात्मक प्रावधानों से डरते थे। इस क़ानून में यह प्रावधान भी है कि जिन लोगों का अवैध रूप से धर्म परिवर्तन कराया गया था, उन्हें मुआवज़े के रूप में 5 लाख रुपये तक का भुगतान करना होगा और सामूहिक धर्मांतरण के संबंध में आरोपियों को 1 लाख रुपये के जुर्माने के साथ 3 से 10 साल की जेल की सज़ा का सामना करना पड़ेगा।
दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के इच्छुक व्यक्तियों को न्यायिक अदालत या जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष एक महीने पहले एक निर्धारित प्रपत्र में एक घोषणा करनी होती और किसी को आपत्ति दर्ज कराने के लिए इसे सार्वजनिक नोटिस में लाया जाता। इस क़ानून में कहा गया है, “शादी से पहले या बाद में जबरन धर्मांतरण को प्रभावित व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर पारिवारिक अदालत या अधिकार क्षेत्र वाले किसी भी न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जायेगा।” इस अधिनियम के तहत ये अपराध “ग़ैर-ज़मानती और संज्ञेय” थे।
लोगों को “पांच गारंटी” देकर सत्ता में आने और उन्हें आधे-अधूरे तरीक़े से लागू करने की कोशिश करने के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया धीरे-धीरे बहुसंख्यक हिंदुओं की क़ीमत पर अल्पसंख्यकों को ख़ुश करने के कांग्रेस के एजेंडे पर से धीरे-धीरे पर्दा उठा रहे हैं।
कई हलकों से विरोध के स्वर फूटने लगे हैं। भाजपा के पूर्व मंत्री बसवराज यतनाल ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “कांग्रेस अब नई मुस्लिम लीग है” और यह स्पष्ट है कि “सिद्धारमैया सरकार धर्मांतरण माफ़िया के प्रभाव में है।”
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