Categories: Uncategorized

‘लाल चौक की लड़ाई’ में आख़िरी जीत किसकी ?

Peace & Order In J&K: श्रीनगर का व्यापारिक केंद्र लाल चौक के बारे में यह माना जाता है कि यह संपूर्ण कश्मीर घाटी की स्थिति और राजनीतिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व भले ही नहीं करता हो, लेकिन इसके प्रतिष्ठित परिदृश्य और रूप-रेखा में यक़ीनन कश्मीर का सबसे अधिक प्रतिनिधिक राजनीतिक स्वरूप शामिल है। यही कारण है कि पिछले 100-विषम वर्षों में अलग-अलग तमाम पात्रों ने इस दृश्य पर हावी होने और अपनी कहानियों और विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए इसे अपने मंच के रूप में चुना है।

मंगलवार की शाम भारत के स्वतंत्रता दिवस पर सैकड़ों उत्साही कश्मीरी लाल चौक पर एकत्र हुए, एक फव्वारे और नवनिर्मित घंटाघर के चारों ओर नृत्य किया और हर तरफ़ से से तस्वीरें लीं। इससे पहले दिन में विभिन्न ग़ैर-सरकारी समूहों और व्यक्तियों ने बारी-बारी से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया और तस्वीरें और सेल्फ़ी लीं।

आज़ादी के दिन उत्सव मनाते कई लोग एक फव्वारे के ग्रेनाइट फ़र्श के चबूतरे पर नृत्य कर रहे थे,लेकिन वह चबूतरा उनके वजन नहीं सह सका और टूट गया। प्रतिभागियों में से एक को स्मारिका के लिए स्मारक ‘लालचौक’ का अक्षर ‘एल’ हटाते समय पकड़ा गया। आस-पास की सभी इमारतें चमक से जगमगा रही थीं। यह हाल तक लाल चौक पर मौजूद डर और निराशा के माहौल के बिल्कुल विपरीत था।

2009-10 में उमर अब्दुल्ला के नेशनल कॉन्फ़्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के पहले दो वर्षों के लिए और बाद में 2016-18 में महबूबा मुफ़्ती के पीडीपी-भाजपा शासन में यह लालचौक अक्सर अलगाववादियों का सिविल लाइन्स तक मार्च को रोकने के लिए लगे कंसर्टिना तार और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के लिए जाना जाता था। भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यूएनएमओजीआईपी) का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय उनके इस नाट्यकला के लिए उनका दूसरा सबसे पसंदीदा स्थान हुआ करता था।

पास के मैसुमा में रहने वाले जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक लाल चौक पर अक्सर प्रदर्शनकारी हुआ करते थे। प्रत्येक अलगाववादी-आतंकवादी प्रायोजित बंद, धरना या मार्च के आह्वान पर पुलिस और अर्धसैनिक बल की टुकड़ियां लालचौक को धारदार तारों और अन्य बैरिकेड्स से बंद कर देती थीं। पूरा सिविल लाइंस किसी भुतहा शहर जैसा दिखता था। किसी भी पैदल यात्री या नागरिक मोटर चालक को मौलाना आज़ाद रोड या रेजीडेंसी रोड से गुज़रने की अनुमति नहीं दी जाती थी।

महबूबा मुफ़्ती की सरकार गिरने के ठीक पांच साल बाद लाल चौक, साथ ही पूरी राजधानी और नौ ग्रामीण ज़िला मुख्यालय शांत और सामान्य हैं। सड़क पर झड़पों से लेकर पथराव करने वाली भीड़ के हमले, अलगाववादी प्रदर्शन और पाकिस्तानी झंडे, गोलियां, छर्रे और आंसूगैस, आगज़नी और मुठभेड़ तक सब कुछ ग़ायब हो चुका है।

अगस्त,2019 के संवैधानिक बदलावों के बाद लगभग पूरी अलगाववादी हिंसा ख़त्म हो चुकी है। अंतिम संस्कार के जुलूस और बंदूक की सलामी से लेकर मुठभेड़ों में मारे गये आतंकवादियों तक, सब कुछ ग़ायब हो गया है। स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और कोचिंग सेंटरों में शिक्षा बिना किसी व्यवधान के जारी है। व्यापार और पर्यटन फल-फूल रहा है। इस अकल्पनीय परिवर्तन के परिणामस्वरूप, श्रीनगर और अन्य जगहों पर, विशेषकर श्रीनगर सिविल लाइंस में व्यापारी उल्लेखनीय व्यवसाय कर रहे हैं। उनका दावा है कि 1988 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है।

1947 से पहले लाल चौक ने कश्मीर के लिए एक नया इतिहास लिखा था। बॉलीवुड द्वारा 1931 में अर्देशिर ईरानी की अपनी पहली आवाज़ से सजी फ़िल्म, ‘आलम आरा’ का निर्माण करने के एक साल बाद एक सिख भाई अनंत सिंह गौरी ने लाल चौक में कश्मीर का पहला सिनेमाघर, पैलेडियम टॉकीज़ खोला था। ‘आलम आरा’ की स्क्रीनिंग इसी पैलेडियम में की गयी थी। 1947 में इस पैलेडियम ने शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला के आपातकालीन प्रशासन और शांति ब्रिगेड के नेशनल मिलिशिया के मुख्यालय के रूप में कार्य किया था।

नेशनल मिलिशिया, जिसमें कश्मीर के पुरुष और महिलायें शामिल थीं, उन्होंने पहली बंदूकें उठायीं और “हमलावर ख़बरदार, हम कश्मीरी हैं तैयार” के लोकप्रिय नारे के साथ पाकिस्तानी हमलावरों के आक्रमण का विरोध करने और उन्हें विफल करने में भारतीय सेना का समर्थन किया था। बाद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख़ ने लाल चौक पर कश्मीरियों की एक विशाल सभा को संबोधित किया।

पिछले 50 वर्षों में लाल चौक राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह रहा है। फ़रवरी में शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला ने अपने ‘महाज़-ए-रायशुमारी’ को छोड़कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में मुख्यधारा की राजनीति में लौटने के बाद यहां अपने कश्मीरी अनुयायियों द्वारा एक उत्साही स्वागत किया। शेख़ ने अपने उग्र भाषण में कश्मीर को लूटने के लिए हमलावर भेजने, निर्दोष कश्मीरियों की हत्या करने और कश्मीर के प्रति पाखंडी होने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की।

1980 में जिस वर्ष बजाज बिजनेस ग्रुप ने लाल चौक पर पुराने क्लॉक टॉवर का निर्माण किया, शेख़ ने एक और ऐतिहासिक भाषण दिया। दो दिन पहले भी टैक्सी चालकों और जवानों के बीच झड़प हुई थी, जिसमें तत्कालीन एसएसपी श्रीनगर अली मोहम्मद वटाली भी घायल हो गए थे। शेख ने अशांति की आग को बुझाया था और नागरिकों को भारतीय सेना के साथ फिर से जोड़ा था।

1989 में मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने पैलेडियम के सामने आतंकवाद-पूर्व काल की अपनी आख़िरी रैली को संबोधित किया था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पाकिस्तान की बंदूक कश्मीर को नष्ट कर देगी और कश्मीरियों से बंदूक संस्कृति और अलगाव को अस्वीकार करने का आह्वान किया।

1 मार्च, 1990 को यूएनएमओजीआईपी के लिए कश्मीर का विशाल आज़ादी समर्थक जुलूस इसी लालचौक से होकर गुज़रा था। अगले कुछ वर्षों में पैलेडियम सहित लाल चौक के कई व्यापारिक केंद्र और होटल आतंकवादी हमलों और मुठभेड़ों में जलकर राख हो गये।

जनवरी 1992 में वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी कड़ी सुरक्षा और आतंकवादी संगठनों की गंभीर धमकियों के बीच श्रीनगर गए और लाल चौक पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया।

1994 में शीर्ष अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने लाल चौक पर अपने अनुयायियों की एक विशाल सभा को संबोधित किया। उन्होंने अलगाववादी समूहों की एकजुटता पर ज़ोर दिया और अपने दर्शकों को “माला के 100 मोतियों” को फिर से एकजुट करने का आश्वासन दिया। इसके बाद शाह स्वयं गुमनामी में चले गए।

2010 में जब मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ईद मण्डली को लाल चौक तक मार्च करने की अनुमति दी, तो भीड़ ने क्लॉक टॉवर को क्षतिग्रस्त कर दिया और उसके शीर्ष पर हरे पाकिस्तानी झंडे लहरा दिए। बाद में अनियंत्रित भीड़ ने प्रदर्शनी मैदान में जम्मू-कश्मीर पुलिस के अपराध शाखा मुख्यालय में आग लगा दी। 2016-18 में लाल चौक पर कई मौक़ों पर पाकिस्तानी झंडे लहराये गये। लाल चौक से कुछ ही दूरी पर आतंकवादियों ने पत्रकार शुजात बुखारी की गोली मारकर हत्या कर दी।

कई मौक़ों पर ग्रेनेड हमलों में निर्दोष नागरिक और निकटवर्ती टिंडेल बिस्को स्कूल के छात्र या तो मारे गये या घायल हो गये।

लाल चौक के इतिहास का यह काला दौर आख़िरकार जून 2018 में महबूबा मुफ़्ती की सरकार की बर्ख़ास्तगी के साथ समाप्त हुआ। अगस्त 2019 के बाद लाल चौक पर एक भी अलगाववादी प्रदर्शन, पाकिस्तानी झंडा फहराना या आतंकी हमला नहीं हुआ। 2022 में पुराने क्लॉक टॉवर को ध्वस्त कर दिया गया और श्रीनगर स्मार्ट सिटी मिशन के तहत एक नया ख़बबसूरत टावर खड़ा किया गया।

नई दिल्ली की 1999-2019 की उस नीति के बिल्कुल विपरीत,जब मुख्यधारा की पार्टियों में अलगाववादियों, उग्रवादियों और उनके प्रवर्तकों को ख़ुश किया गया था,उन्हें अब समायोजित किया गया और जगह दी गयी। प्रधानमंत्री मोदी की शांति और सामान्य स्थिति की बहाली की महत्वाकांक्षा स्पष्ट रूप से साफ़ है। लेकिन, कश्मीर के लोग, जिन्होंने 2018 के बाद पूरी तरह से हिंसा, अलगाववाद और आतंकवाद से मुंह मोड़ लिया है,उन्हें भी घाटी में शांति और फैल रहे अमन-चैन का श्रेय कम नहीं जाता।

इसे भी पढ़ें : Article 370 के हटने से पहले और बाद के 4 वर्षों में कश्मीर में बदलाव

Ahmed Ali Fayyaz

Recent Posts

खून से सना है चंद किमी लंबे गाजा पट्टी का इतिहास, जानिए 41 किमी लंबे ‘खूनी’ पथ का अतीत!

ऑटोमन साम्राज्य से लेकर इजरायल तक खून से सना है सिर्फ 41 किमी लंबे गजा…

1 year ago

Israel हमास की लड़ाई से Apple और Google जैसी कंपनियों की अटकी सांसे! भारत शिफ्ट हो सकती हैं ये कंपरनियां।

मौजूदा दौर में Israelको टेक्नोलॉजी का गढ़ माना जाता है, इस देश में 500 से…

1 year ago

हमास को कहाँ से मिले Israel किलर हथियार? हुआ खुलासा! जंग तेज

हमास और इजरायल के बीच जारी युद्ध और तेज हो गया है और इजरायली सेना…

1 year ago

Israel-हमास युद्ध में साथ आए दो दुश्‍मन, सऊदी प्रिंस ने ईरानी राष्‍ट्रपति से 45 मिनट तक की फोन पर बात

इजरायल (Israel) और फिलिस्‍तीन के आतंकी संगठन हमास, भू-राजनीति को बदलने वाला घटनाक्रम साबित हो…

1 year ago

इजरायल में भारत की इन 10 कंपनियों का बड़ा कारोबार, हमास के साथ युद्ध से व्यापार पर बुरा असर

Israel और हमास के बीच चल रही लड़ाई के कारण हिन्दुस्तान की कई कंपनियों का…

1 year ago