प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी कैबिनेट ने देश के दक्षिण-पश्चिम प्रांत में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के मद्देनज़र बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना की तैनाती को मंज़ूरी दे दी है। यह पहली बार है जब पाकिस्तान ने पाकिस्तान से आज़ादी की मांग करने वाले युद्धग्रस्त इस प्रांत में सेना की तैनाती को औपचारिक रूप से मंज़ूरी दे दी है।
कैबिनेट ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को अवैध रूप से गिरफ़्तार करने वाले अर्धसैनिक बल रेंजर्स को महत्वपूर्ण पंजाब प्रांत भेजने को भी मंज़ूरी दे दी है।
बलूचिस्तान में सशस्त्र बलों की होने जा रही यह तैनाती ने एक पूर्ण संघर्ष की पीड़ा से गुज़र रहे आंदोलन, पाकिस्तानी सेना की निगरानी में मानवाधिकारों के दुरुपयोग और “जबरन ग़ायब होने” के मामले में वृद्धि को लेकर ग़रीबी से पीड़ित इसस समुदाय के बीच भय पैदा कर दिया है। एक बलूच विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया कि इस तरह की भारी सैन्य तैनाती से संकेत मिलता है कि जातीय बलूच समुदाय के नरसंहार में तेज़ी आयेगी।
बलूच पहले से ही संयुक्त राष्ट्र सहित वैश्विक समुदाय से उन्हें “आने वाले हमले” से बचाने के लिए अपील करना शुरू कर चुके हैं।
भू-राजनीतिक विश्लेषक मार्क किनरा कहते हैं: “बलूचिस्तान में हमेशा सेना के ऑपरेशन देखे गये हैं, लेकिन सेना के आधिकारिक रूप से आने का मतलब है कि सुरक्षा की स्थिति वास्तव में बिगड़ गयी है। मुझे लगता है कि सेना की तैनाती में वृद्धि का एक प्रमुख कारण पाकिस्तानी सेना के प्रतिष्ठानों पर हमला है।”
बलूच विश्लेषक ने कहा कि सेना को सार्वजनिक रूप से तैनात करने के इस फ़ैसले की जड़ें पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की हाल ही में चीन की यात्रा में हो सकती हैं, जहां बीजिंग चीनी अधिकारियों और रणनीतिक चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को अधिकतम सुरक्षा प्रदान करने पर ज़ोर दे रहा है। । बलूच विश्लेषक कहते हैं, “ख़राब वित्तीय स्थिति के साथ इस्लामाबाद को धन की सख़्त ज़रूरत है और चीन से लंबे समय से लंबित सुरक्षा मांग को पूरा करने से पाकिस्तान को बहुत ज़रूरी धन मिल जायेगा।”
उन्होंने कहा, “पाकिस्तानी सेना 1948 से बलूचिस्तान में तैनात है, जब उसने कलात और उसके आस-पास के राज्यों, अब बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया था। हालांकि, यह पहली बार है कि इस क्षेत्र में सेना की मौजूदगी को लेकर आधिकारिक अधिसूचना जारी की जा रही है।
इस विश्लेषक का कहना है कि बलूचिस्तान में सेना को तैनात करने का एक और ज़रूरी कारण 12 मई को मुस्लिम बाग में अर्धसैनिक बल-फ्रंटियर कोर पर क्रूर हमला हो सकता है, जिसमें कम से कम छह पाकिस्तानी सैनिकों सहित एक दर्जन से अधिक लोग मारे गये थे। बलूचिस्तान अब दोनों पाकिस्तान तालिबान (तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान) और जातीय बलूच अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों पर भारी हमले देख रहा है।
पिछले साल बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने सात दशक पुराने संघर्ष की तीव्रता को उजागर करते हुए पाकिस्तानी सेना के दो हेलीकॉप्टरों को मार गिराने का दावा किया था। पाकिस्तानी सेना बलूच लोगों के ख़िलाफ़ अपने स्थल बलों के अलावा फ़ाइटर जेट्स, कोबरा हेलीकॉप्टरों और निगरानी ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है।
पाकिस्तानी सेना अब पूरे देश में फैली हुई है -वह उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान तालिबान, दक्षिण-पश्चिम में बलूच और सिंध में दक्षिण-पूर्व में एक छोटे पैमाने पर विद्रोह से लड़ रही है। यह भारत के ख़िलाफ़ अपनी पूर्वी सीमाओं पर भी तैनात रहती है, जहां यह जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के लिए ड्रोन के माध्यम से ड्रग्स और हथियार भेज रही है।
पाकिस्तानी सेना को अपनी सीमाओं के भीतर एक नया दुश्मन मिल गया है- इमरान ख़ान के उन्मादी समर्थक, जिन्होंने सैन्य स्टेशनों को आग के हवाले कर दिया और सेना के कमांडरों के आवासों में तोड़फोड़ की, जो 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के आत्मसमर्पण के बाद इस तरह की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
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