भारत और रूस के बीच दोस्ती काफी पुरानी है। दोनों देश काफी समय से एक दूसरे के साथ हर मुश्किल समय में साथ खड़े रहे हैं और इस वक्त जब रूस को जरूरत है तो भी भारत अपनी दोस्ती निभा रहा है। दरअसल, रूस ने जब से यूक्रेन में सैन्य अभियान की शुरूआत की है तभी से पश्चिमी देश हाथ धो कर पीछे पड़ गए हैं। पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं और रूस पर कड़े से कड़ा प्रतिबंध लगा कर उसकी अर्थव्यवस्था को तोड़ रहे हैं। रूसी तेल को पश्चिमी देशों ने खरीदना बंद कर दिया और साथ ही पाबंदी लगा दी। इतना ही नहीं पश्चिमी देशों ने दुनिया भर को धमकी देते हुए कहा कि, कोई भी रूस के साथ व्यापारिक रिश्ता रखा तो वो उसे बर्बाद कर देगा। इस बीच रूस ने जब भारत से मदद की मांग की तो वो कंधे से कंधा मिलाता हुआ उसके साथ खड़ा हो गया। पश्चिमी देशों की लाख कोशिशों के बाद भी भारत ने अपना स्टैंड साफ रखा। जिस रूसी तेल को पश्चिमी देशों ने पाबंदियां लगाई उसे भारत ने खरीदना शुरू कर दिया और रूस की अर्थव्यवस्था को बचा लिया। साथ ही अपनी दोस्ती की परीक्षा भी पास किया। अब एशिया में निर्यात किए जाने वाले रूस के प्रमुख कच्चे तेल ईएसपीओ ब्लेंड (ESPO Blend) की कीमत में एक बार फिर से उछाल देखने को मिल रहा है।
रूस के प्रमुख कच्चे तेल ईएसपीओ ब्लेंड की कीमत में फिर से उछाल आने को लेकर ट्रेडर्स का कहना है कि, भारत और चीन जैसे बड़े देश रूस के तेल के शीर्ष खरीदारों की ओर से मांग के चलते ये उछाल आया है। इससे पहले ईएसपीओ ब्लेंड तेल की कीमत अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी। रूस के लोडिंग पोर्ट कोजमिनो से निर्यात किए गए कच्चे तेल की कीमत में गिरावट देखी गई थी लेकिन मई में तेल पर 20 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की रिकॉर्ड छूट दी गई। रूस पर लगाए गए प्रतिबंधो के बाद यूरोपीय यूनियन ने पिछले महीने इसमें कुछ बदलाव किया है। जिसमें रूस सरकारी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और गैजप्रोमनेफ्ट (Gazpromneft) से तेल की खेपों के भुगतान पर लगे प्रतिबंधों में ढील दे दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि, इसके चलते पश्चिमी देशों में तेल के दाम रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गए थे। ऐसे में यहां भी वो अपना फायदा देखने लगे।
रिपोर्टों में कहा गया है कि, सितंबर के अंत से अक्टूबर की शुरुआत के बीच लोड की गई तेल की दो खेपों को मिडिल ईस्ट बेंचमार्क दुबई पर समान कीमत पर बेचा गया। भारतीय और चीन की स्वतंत्र तेल रिफाइनरीज को इन खेपों की कीमत मिडिल ईस्ट से मिलने वाले तेल की तुलना में अधिक सस्ती लगी। जबकि दोनों के तेल की गुणवत्ता एक जैसी ही थी। इसके विपरीत सितंबर में होने वाली लोडिंग के लिए अबू धाबी का मुरबान क्रूड 12-13 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर बेचा गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि, एशिया की तेल रिफाइनरीज के बीच रूस का तेल काफी लोकप्रिय है। तेल की सस्ती सप्लाई ने एशिया की रिफाइनरीज के प्रॉफिट मार्जिन को बढ़ाने में मदद की है। कुल मिलाकर अब यूरोप में निर्यात होने वाले रूस के यूरल्स तेल की कीमतों में सुधार आना शुरू हो गया है।
जुलाई में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत, रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया। रिपोर्ट के मुताबकि, दुनिया में कच्चे तेल के तीसरे सबसे बड़े आयातक देश भारत ने 2.95 करोड़ बैरल तेल खरीदा। इशमें ईएसपीओ क्रूड 34 लाख बैरल रहा। ऐसे में रूसी तेल को खरीद कर भारत ने सबित कर दिया कि वो अपने दोस्त रूस का साथ छोड़ने वाला नहीं है। भारत के इस फैसले की दुनिया भी तारीफ कर चुकी है कि।