चीन (china) की यात्रा पर पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के सख्त रुख के बाद ड्रैगन ने ‘एशियाई नाटो’ कहे जाने वाले ग्लोबल सिक्यॉरिटी इनिशिएटिव या जीएसआई पर अपना रुख नरम कर लिया। नेपाली प्रधानमंत्री और चीन के प्रधानमंत्री के बीच मुलकात के बाद जारी बयान में जहां बेल्ट एंड रोड परियोजना का जिक्र है, जीएसआई का नाम नहीं है। इससे पहले चीन ने नेपाल पर दबाव डाला था कि वह जीएसआई में शामिल हो जाए जो वह क्वॉड के जवाब में बना रहा है। अब तक 80 देश जीएसआई में शामिल होने की मंजूरी दे चुके हैं। हालांकि नेपाली प्रधानमंत्री ने ताइवान को चीन का हिस्सा बताकर जिनपिंग सरकार को थोड़ी राहत दी।
नेपाली पीएम ने अपने पहले के वादे को दोहराते हुए कहा कि उनका देश ‘एक चीन’ नीति का समर्थन करता है। नेपाल ने कहा कि चीन की सरकार पूरे चीन की कानूनी सरकार है और ताइवान उसका अभिन्न अंग है। नेपाल ताइवान की स्वतंत्रता के खिलाफ है।’ नेपाली पक्ष ने जोर देकर कहा कि तिब्बत का मामला चीन का आंतरिक मामला है और वह चीन के खिलाफ नेपाल की धरती पर कोई भी अलगाववादी गतिविधि को अनुमति नहीं देगा। दोनों देशों ने एक-दूसरे की चिंताओं पर ध्यान देने का वादा किया।
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चीन ने नेपाल पर जीएसआई के लिए डाला था दबाव
चीन (China) ने कहा कि वह नेपाल की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का पूरा समर्थन करता है। नेपाल ने कहा कि चीन के जीडीआई योजना में शामिल होगा जो विकास को बढ़ावा देने के लिए है। चीन और नेपाल के बीच ऊर्जा और सीमापार ट्रांसमिशन लाइन पर सहमति बनी। चीन ने नेपाल के साथ सीमा व्यापार प्वाइंट को फिर से खोलने पर सहमति जताई। चीन ने नेपाल को रेलवे और हाइवे पर भी सहयोग का वादा किया। चीन अब नेपाल के पोखरा एयरपोर्ट पर उड़ानों के संचालन में मदद देगा।
चीन और नेपाल के बीच संयुक्त बयान में जीएसआई का शामिल न होना, नेपाल की बड़ी जीत माना जा रहा है। नेपाली मीडिया के मुताबिक चीन नेपाल के ऊपर दबाव डाल रहा था कि वह जीडीआई में शामिल हो। वहीं नेपाल ने साफ कर दिया कि वह किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगा। इस तरह से जहां ताइवान की आजादी का विरोध करके नेपाली पीएम ने चीन को खुश करने की कोशिश की, वहीं जीडीआई से दूरी बनाकर उन्होंने भारत और अमेरिका को भी साध लिया। भारत भी चीन (China) के जीडीआई को संदेह की दृष्टि से देखता है।
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