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China-Russia ने मिलाया हाथ! दुनिया के इस ख़ज़ाने पर है नज़र, 1 खरब रुपये से ज्यादा का बिछाएंगे जाल

चीन और रूस (Russia) ने एक साथ दक्षिण अमेरिकी देश बोलीविया के सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं. इस छोटे से अमेरिकी देश को अपने जाल में फंसाने के लिए दोनों (Russia) बड़ी ताकतों ने 1 खरब रुपये ($1.4 billion) से ज्यादा का भारी निवेश करने का फैसला किया है. बोलीविया की सरकार ने कहा कि चीन और रूस दक्षिण उनके देश में लिथियम  परियोजनाओं में 1 खरब रुपये से ज्यादा की रकम का निवेश करेंगे, जहां इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाने के लिए बनाई जाने वाली बैटरी के लिए महत्वपूर्ण धातु के विशाल भंडार हैं.

न्यूज एजेंसी एएफपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सरकार के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी सिटिक गुओन और इसी तरह रूसी (Russia) सरकार से जुड़ी यूरेनियम वन ग्रुप दो लिथियम कार्बोनेट संयंत्र बनाने के लिए यासिमिएंटोस डी लिटियो बोलिवियनोस (वाईएलबी) के साथ साझेदारी करेंगे. बोलिविया के राष्ट्रपति लुइस आर्से ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इसकी जानकारी दी है. गौरतलब है कि जैसे-जैसे दुनिया स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, वाहनों के लिए रिचार्जेबल लिथियम-आयन बैटरी और नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में इसके उपयोग के कारण लिथियम अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. इस समझौते पर हस्ताक्षर के समय तीनों कंपनियों के बोलिवियाई, चीनी और रूसी प्रतिनिधि उपस्थित थे.

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जनवरी में आर्से की सरकार ने दो लिथियम बैटरी संयंत्र बनाने के लिए चीनी कंसोर्टियम कैटल ब्रुनप एंड सीएमओसी (सीबीसी) के साथ एक और समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. सीबीसी ने कम से कम 1 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया. सरकार से दी गई जानकारी के मुताबक यूरेनियम वन ग्रुप पास्टोस ग्रांडेस साल्ट फ़्लैट्स में एक संयंत्र में $578 मिलियन का निवेश करेगा और चीन का सिटिक गुओन उयूनी साल्ट फ़्लैट्स में एक दूसरे संयंत्र में $857 मिलियन का निवेश करेगा. हाइड्रोकार्बन और ऊर्जा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ‘हर फैक्ट्री में सालाना 25,000 मीट्रिक टन तक उत्पादन करने की क्षमता होगी.’

अगले तीन महीने में प्लांट का निर्माण शुरू हो जाएगा. बोलीविया ने उयूनी नमक क्षेत्र में अपने लिथियम भंडार को 21 मिलियन टन बताया है और कहा जाता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार है. अपने विशाल भंडार के बावजूद बोलीविया को अपने लिथियम का दोहन करने के लिए संघर्ष करना पड़ा है. इसका कारण आंशिक रूप से भूगोल, राजनीतिक तनाव और तकनीकी जानकारी की कमी है.