इस समय पाकिस्तान (Pakistan) के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति हो गई है। गले तक कर्ज के बोझ में डूबा पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक संकट के साथ साथ राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। आलम यह है कि इन दिनों पड़ोसी देश में आम जनता के बीच काफी ज्यादा आक्रोश है। आटा चावल के दाम आसमान छू रहे हैं वहीं पेट्रोल की कीमतों में भी आग लगी हुई है। ऐसे में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आगे भीख का कटोरा लिए पीछे-पीछे घूम रहा है। लेकिन, अपनी शर्तों पर काबिज आईएमएफ उसे कर्ज देने में कोताही बरत रहा है। जी हाँ, आईएमएफ के लोन नहीं मिलने से पाकिस्तान बुरी तरह बौखलाया हुआ है और लगातार आईएमएफ के खिलाफ राजनीति करने का आरोप लगा रहा है। आखिर पाकिस्तान की ऐसी स्थिति क्यों हुई है? आइए जानते हैं।
1998 जैसी स्थिति बनी
पाकिस्तानी वित्त मंत्रालय के पाकिस्तान और आईएमएफ (IMF) के बीच लंबित समझौते की वजह पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक स्थिति है। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान 1998 जैसे अभूतपूर्व दबावों का सामना कर रहा है। मालूम हो, पाकिस्तान को परमाणु परीक्षण के बाद कई दबावों का सामना करना पड़ा था। अब उसके सामने वैसी ही स्थिति आ गई है।
पाकिस्तान के लिए मुसीबत बना चीन
दरअसल, पाकिस्तान लगातार आईएमएफ पर राजनीति करने का आरोप लगा रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि आईएमएफ उन मांगों को पाकिस्तान पर थोप रहा है, जो बातचीत का हिस्सा नहीं थीं। ये मांगें अमेरिका की तरफ से विभिन्न स्तरों पर बैठकों में की जा रही थीं। सूत्रों के अनुसार, चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते आर्थिक संबंध भी समझौते की कमी का कारण हैं।
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शहबाज के खर्चों से वकीफ हुआ IMF
सूत्रों का कहना है कि आईएमएफ पाकिस्तान से पूरी तरह गारंटी चाहता है कि कर्ज की रकम का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री डूबती अर्थव्यवस्था के बीच आवाम को चावल और आटे के रूप में खैरात बांट रहे हैं। ऐसे में आईएमएफ भी गारंटी चाहता है कि शहबाज शरीफ सरकार फिजूल खर्ची न करे। सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति भी कर्मचारी स्तर के समझौते में एक बाधा है, आईएमएफ बजट में ऐसे लक्ष्य चाहता है जिससे उसका पैसा सुरक्षित रहे।