ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन ने भारत में चिप मैन्युफैक्चरिंग से हाथ खींचने का ऐलान क्या किया। ऐसे में चीन (china) को तंज कसने का एक और बहाना मिल गया। इस बात से बेफिक्र कि कंपनी एक नई तरह से भारत में चिप मैन्युफैक्चरिंग की योजना बना रही है, चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी राय दे डाली है। अखबार ने लिखा है कि हाई-एंड मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत को एक बड़ा झटका लगा है। भारत में मैन्युफैक्चरिंग के लिए न केवल सरकार की महत्वाकांक्षा की जरूरत है, बल्कि औद्योगिक योजना की भी जरूरत है जो उसकी अपनी परिस्थितियों के अनुकूल हो। अगर उसके आर्टिकल में वह वजह भी सामने आ गई है जो भारत-अमेरिका के मजबूत होते रिश्तों की वजह से परेशानी से जुड़ी है।
भारत पर कसा तंज
ग्लोबल टाइम्स ने रॉयटर्स की रिपोर्ट के हवाले से लिखा गया है कि भारत सरकार की तरफ से मंजूरी में देरी की वजह से फॉक्सकॉन की चिंताएं बढ़ रही थीं। लेकिन इसने प्लांट से हाथ क्यों पीछे खींचे, ये वजहें स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन फिर भी यह नया घटनाक्रम घरेलू चिप निर्माण योजनाओं को आगे बढ़ाने में भारत के सामने मौजूद कठिनाइयों को सामने लाता है। अखबार ने लिखा है कि कई सालों की कोशिशों के बाद भारत की सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग की प्लानिंग अभी भी सिर्फ कागज पर ही हैं। जबकि अमेरिका स्थित माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने अभी घोषणा की है कि वह भारत में एक चिप पैकेजिंग प्लांट बनाएगी। इसके लिए 2.75 अरब डॉलर की लागत में 70 फीसदी सब्सिडी भी दी जाएगी।
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अखबार ने कहा बेशक ही भारत सरकार ने कहा हो कि साल 2020 में 15 अरब डॉलर वाला भारत का सेमीकंडक्टर बाजार साल 2026 तक 63 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा लेकिन उसकी यह महत्वाकांक्षा वास्तविकता से परे लगती है। ग्लोबल टाइम्स ने इसके पीछे विदेशी निवेश पर निर्भरता को बड़ी वजह बताया है। अखबार की मानें तो टेक्नोलॉजी से लेकर प्रतिभा और अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्रीयल सीरीज के मामले में भारत के पास चिप निर्माण में कोई आधार नहीं है। शायद भारत सरकार का मानना है कि विदेशी निवेश अपने आप चिप मैन्युफैक्चरिंग में मदद कर सकता है।
भारत अमेरिका रिश्तों से तिलमिलया चीन
ग्लोबल टाइम्स के इसी आर्टिकल में उसकी वह परेशानी भी सामने आ जाती है जो भारत-अमेरिका रिश्तों से जुड़ी है। आर्टिकल के मुताबिक चिप उत्पादन में भारत की महत्वाकांक्षी योजनाएं अमेरिका से जुड़ी हैं। अमेरिका, चीन की स्थिति को बदलने के लिए भारत को लुभा रहा है। लेकिन इस तरह की राजनीति से औद्योगिक विकास के रास्ते की हत्या हो जाएगी जिसकी वजह से मैन्युफैक्चरिंग पर व्यवहारिक नहीं, बल्कि अस्थायी असर पड़ेगा। बेहतर होगा भारत, अमेरिकी रणनीति को आंख मूंदकर मानने की बजाय अपनी परिस्थितियों के हिसाब से मैन्युफैक्चरिंग की नींव को मजबूत करे। इसकी शुरुआत निम्न स्तर की मैन्युफैक्चरिंग को विकसित कर, श्रम शक्ति को विकसित कर, कारोबारी माहौल में सुधार करने और चीन समेत प्रमुख भागीदारों के साथ सहयोग को मजबूत करने से हो सकती है।
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