जब काले कपड़े पहने कांग्रेस संसद परिसर से विजय चौक की ओर विपक्ष का नेतृत्व कर रही थी, तो यह रंग से जुड़े विरोधों के साथ एक अद्भुत समानता थी, जिसका उपयोग अन्य देशों में लोकतंत्र को बहाल करने के बहाने सरकारों को गिराने के लिए किया गया है।
इसके अलावे, तथाकथित रंग से जुड़ी इन क्रांतियों में ओपन सोसाइटी संस्थानों के वास्तुकार जॉर्ज सोरोस की उंगलियों के निशान हैं, जिन्होंने लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खाके पर संप्रभु सरकार को गिराने का काम किया है।
यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विपक्षी दलों ने सोमवार को “काले विरोध” को जारी रखने पर विचार किया। एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर चर्चा हुई, जिन्होंने नेताओं को रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया था। एजेंसी ने अपने सूत्रों के हवाले से बताया कि समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों की बैठक में फ़ैसला किया गया कि विपक्षी दलों का विरोध जारी रहेगा और मंगलवार को संसद में गांधी प्रतिमा के सामने काले कपड़े पहनकर सभी विपक्षियों के साथ प्रदर्शन किया जाएगा।
सोमवार को अधिकतम राष्ट्रीय प्रभाव डालने के लिए कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी काले कपड़े पहने।
संयोग से सोरोस के साथ कांग्रेस का गठबंधन पूरी तरह से बोधगम्य इसलिए है, क्योंकि रंग से जुड़ा इस विरोध के समर्थकों ने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी और ज़ोर-शोर से भारत में लोकतंत्र की बहाली का आह्वान किया था और अडानी की आलोचन की गयी थी।इन तीनों विषय को कांग्रेस के प्रदर्शनकारी प्रसारित कर रहे हैं।
पिछले महीने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में बोलते हुए अरबपति फ़ाइनेंसर सोरोस ने अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था।
सोरोस ने कहा था कि अडानी का संकट पीएम मोदी को कमज़ोर करेगा, क्योंकि दोनों “घनिष्ठ सहयोगी” हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस अडानी मामले में जेपीसी जांच की मांग कर रही है। सोरोस ने फिर ओवर-द-टॉप भविष्यवाणी कर दी कि इस डबल स्ट्राइक से “भारत में एक लोकतांत्रिक पुनरुद्धार” होगा।
ऐसा पहली बार नहीं था कि वैश्विकतावादियों की तरह बढ़ते संप्रभु राष्ट्रों का तिरस्कार करने वाले सोरोस ने व्यक्तिगत रूप से पीएम मोदी को निशाना बनाया है, हालांकि इस बार उसने अडानी के ज़रिए ऐसा किया है। दावोस में ही 2020 वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम में मोदी के नेतृत्व वाले भारत को गिराने का फ़ैसला स्पष्ट रूप से सामने आ गया था।
तब सोरोस ने उस मंच पर कहा था, “भारत में सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका लगा, जहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी एक हिंदू राष्ट्रवादी राज्य का निर्माण कर रहे हैं, एक अर्ध-स्वायत्त मुस्लिम क्षेत्र कश्मीर पर दंडात्मक कार्रवाई कर रहे हैं और लाखों मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की धमकी दे रहे हैं।”
यह संदेह करने के लिए पर्याप्त आधार देता है कि राहुल गांधी के सोरोस समूह के साथ सम्बन्ध हैं। यह भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी दिखायी दिया था, जब 31 अक्टूबर को सलिल शेट्टी नाम के एक सज्जन राहुल गांधी के साथ चले थे। यह घटना कर्नाटक के हरथिकोट में हुई थी।
शेट्टी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वह सोरोस ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन के वैश्विक उपाध्यक्ष रह चुका है।
भारत जोड़ो यात्रा पर अपने नियमित अपडेट में कांग्रेस ने लिखा था:
यात्रियों ने आज सुबह हार्थिकोटे से अपनी यात्रा शुरू की। श्री गांधी के साथ-साथ अन्य लोगों के साथ दो सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी चल रहे थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल के पूर्व महासचिव सलिल शेट्टी। इसके अलावा, ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ को लाने में मददगार संगठन मज़दूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे भी साथ थे।”
शेट्टी का सीएए विरोधी प्रदर्शनों सहित मोदी विरोधी आंदोलनों को सामने लाने और बुलहॉर्न करने का ट्रैक-रिकॉर्ड रहा है।
2020 में उसने शाहीन बाग़ स्थल पर प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया था, जहां सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने कई महीनों तक दिल्ली की एक प्रमुख सड़क को अवरुद्ध कर दिया था।
बाद में वह सिंघू बॉर्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ। दरअसल, 7 फ़रवरी को उसने सिंघू बॉर्डर पर अपनी शिरकत का एक वीडियो भी पोस्ट किया था।उसे “#Singu बॉर्डर, #India में #FarmersProtests के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए सम्मानित किया गया। वास्तव में किसानों के दृढ़ संकल्प और बलिदान से प्रेरित ऐसा वह अकेले नहीं है।
काले रंग को अपनाकर कांग्रेस सोरोस और सहयोगियों की कार्रवाई का अनुसरण कर रही है। ऐसा दुनिया के दूसरे हिस्से में भी देखा जा चुका है। सोरोस को यूगोस्लाविया में 2000 “बुलडोजर क्रांति” में भाग लेने के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें ओट्पोर आंदोलन का समर्थन किया गया था, जिसने राष्ट्रपति स्लोबोदान मिलोसेविच को सत्ता से हटा दिया था। उसकी अन्य “उपलब्धियों” में जॉर्जिया में “गुलाब क्रांति”, किर्गिस्तान में “ट्यूलिप क्रांति” और फिर “ऑरेंज क्रांति” और यूक्रेन में “यूरोमैडन” शामिल हैं।
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