अंतर्राष्ट्रीय

इंडो-पैसिफ़िक में चीन के बढ़ता प्रभाव और जर्मनी का ‘विश्वसनीय’ भारत के साथ बढ़ते सैन्य सम्बन्ध

New Era Of Germany-India Military Relations:जर्मन वायु सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इंगो गेरहार्ट्ज ने भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के साथ एक संयुक्त अभ्यास का प्रस्ताव दिया है,यह एक ऐसा क़दम है, जो आश्चर्यजनक इसलिए नहीं है, क्योंकि बर्लिन इंडो-पैसिफ़िक में अपने भविष्य के जुड़ाव पर फिर से ध्यान केंद्रित कर रहा है और फ्रांस की तरह, इसमें नई दिल्ली को अपनी समुद्री रणनीति के केंद्र के रूप में शामिल किया गया है। ।

वर्चस्व के लिए चीन की भू-रणनीतिक कोशिश, जो अन्य पड़ोसी देशों को चुनौती दे रही है, इससे चिंतित होकर दोनों देशों की नौसेनायें इस साल के अंत में जर्मन युद्धपोतों की इंडो-पैसिफ़िक तैनाती के दौरान एक संयुक्त अभ्यास भी आयोजित करने वाली हैं।

जैसे-जैसे वे द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को आगे बढ़ा रहे हैं और अधिक सैन्य अभ्यास में शामिल हो रहे हैं, वैस-वैसे दोनों देशों का मानना है कि एक ठोस सहयोग उस क्षेत्र में विश्वास को गहरा करता जायेगा, जो भविष्य की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार दे रहा है।

दोनों वायु सेना प्रमुखों के बीच बुधवार की बैठक के बाद जर्मन वायु सेना ने कहा, “भारत के पास दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वायु सेना है। नई दिल्ली की अपनी यात्रा के दौरान जनरल लेफ्टिनेंट इंगो गेरहार्ट्ज़ ने भारतीय एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी से संभावित सहयोग के बारे में बात की और अगले साल भारत में एक संयुक्त अभ्यास के विचार को बढ़ावा दिया।

पिछले तीन दिनों में गेरहार्ट्ज ने रक्षा सचिव गिरिधर अरामने, चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान, चीफ ऑफ़ नेवल द स्टाफ़ (सीएनएस) एडमिरल आर हरि कुमार के अलावा सीएएस एयर चीफ मार्शल चौधरी के साथ रक्षा संबंधों और संचालन प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने की दिशा में सहयोग के नये रास्तों पर चर्चा के लिए महत्वपूर्ण बातचीत की है। ।

जर्मन वायु सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इंगो गेरहार्ट्ज़ सीएएस एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी के साथ (छवि सौजन्य: ट्विटर/@Team_Luftwaffe)

गुरुवार को जर्मन वायु सेना प्रमुख ने ग्वालियर में भारतीय वायुसेना के रणनीति और वायु युद्ध विकास प्रतिष्ठान का दौरा किया, जहां उन्हें विभिन्न परिचालन और सामरिक प्रशिक्षण पहलुओं से परिचित कराया गया। उन्होंने जर्मनी के विभिन्न प्रशिक्षण पहलुओं पर भी अपने विचार साझा किये।

पिछले 12 महीनों में रक्षा संबंधों को भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमुख स्तंभ बनते देखा गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं के बीच बहुमुखी संबंधों के विकास के लिए अपनी पारस्परिक प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए कई बार मुलाक़ात की है।

जर्मनी इंडो-पैसिफ़िक में बढ़ती चीनी जुझारूपन से चिंतित है और मुक्त समुद्री मार्गों में उसकी रणनीतिक रुचि है, क्योंकि 20 प्रतिशत से अधिक जर्मन व्यापार इस क्षेत्र के देशों के साथ ही होता है।

जैसे ही बर्लिन ने बीजिंग को वैश्विक चुनौतियों में एक भागीदार, एक प्रतिस्पर्धी और “तेज़ी से एक प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी” के रूप में देखना शुरू किया है, उसने इस क्षेत्र के घटकों के साथ आदान-प्रदान बढ़ाया और चुनौतियों का अच्छा मूल्यांकन करने के लिए भारत को एक विश्वसनीय मित्र के रूप में देखना शुरू कर दिया है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जर्मन संघीय रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस के साथ (फ़ोटो: सौजन्य: twitter/@BMVg_Bundeswehr)

जून में बोरिस पिस्टोरियस 2015 के बाद भारत का दौरा करने वाले पहले जर्मन रक्षा मंत्री बने और उन्होंने नई दिल्ली को “रणनीतिक रूप से विश्वसनीय भागीदार” कहा, जिसे जर्मन हथियारों के निर्यात के मामले में ऑस्ट्रेलिया और जापान के बराबर माना जाना चाहिए।

यह उनकी उपस्थिति में था कि थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स – गैर-परमाणु पनडुब्बियों में एक जर्मन विश्व बाजार अगुवा कंपनी ने पारंपरिक, एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) पनडुब्बियों के निर्माण पर मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।

एमओयू ने छह अरब यूरो के सौदे में छह पनडुब्बियों की आपूर्ति के लिए भारतीय नौसेना की निविदा में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत के प्रमुख रक्षा शिपयार्ड के साथ जर्मन कंपनी के भविष्य के सहयोग की नींव रखी।

अपने जर्मन समकक्ष के साथ एक बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सुझाव दिया कि भारत और जर्मनी साझा लक्ष्यों और ताक़त की संपूरकता, अर्थात् भारत से कुशल कार्यबल और प्रतिस्पर्धी लागत और जर्मनी से उच्च प्रौद्योगिकियों और निवेश के आधार पर अधिक सहजीवी संबंध बना सकते हैं।

उन्होंने रक्षा उत्पादन क्षेत्र में खुले अवसरों का उल्लेख किया, जिसमें उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारों में जर्मन निवेश की संभावनायें भी शामिल हैं।

सिंह ने पश्चिमी नौसेना के मुख्यालय की यात्रा के बाद अपनी भारत यात्रा समाप्त करने वाले पिस्टोरियस से कहा, “भारतीय रक्षा उद्योग जर्मन रक्षा उद्योग की आपूर्ति श्रृंखलाओं में भाग ले सकता है और आपूर्ति श्रृंखला लचीलेपन में योगदान देने के अलावा पारिस्थितिकी तंत्र में मूल्य जोड़ सकता है।”

वहीं, रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच जर्मनी लगातार अपनी सैन्य ताक़त को पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ा रहा है।

जर्मन मीडिया ने शुक्रवार को गेरहार्ट्ज के हवाले से कहा कि देश जल्द ही 60 चिनूक हासिल कर लेगा, जिसके बाद वह संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद नाटो के दूसरे सबसे बड़े हेलीकॉप्टर बेड़े का मालिक होगा।

यह भी पढ़ें: Narrative Propaganda : भारत के ख़िलाफ़ चीन की साइबर जंग

अतीत शर्मा

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