तेल निर्यातक देशों ने कच्चे तेल के उत्पादन में काफी जबरदस्त कटौती कर दी है। जिसके बाद से यूरोप और अमेरिका (America) में खलबली मच गई है। दरअसल इस बार की सर्दी काफी भारी पड़ने वाली है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इस फिराक में बैठे हुए हैं कि उनका जुलाई में सऊदी अरब जाना काम कर जाएगा और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान तेल सप्लाई बढ़ाएंगे। लेकिन व्लादिमीर पुतिन और मोहम्मद बिन सलमान की दोस्ती ने नाटो का सारा खेल बिगाड़ कर रख दिया।
अमेरिका (America) को मची चीड़
अब हर दिन बीस लाख बैरल की सप्लाई रोकने के फैसले से अमेरिका बिलबिला रहा है। ऐसी कटौती मार्च, 2020 के बाद पहली बार हुई है। तब कोरोना माहमारी के कहर से वर्ल्ड इकॉनमी की रफ्तार थम गई थी। लिहाजा तेल की डिमांड थी ही नहीं। जब कोरोना से आगे निकली दुनिया तो रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। और ग्लोबल सप्लाई चेन बिगड़ गया। यूरोप-अमेरिका ने रूस को सबक सिखाने के लिए छह किस्तों में प्रितबंध का पैकेज पेश कर दिया। तेल के दाम उछल कर 122 बैरल प्रति डॉलर तक पहुंच गए। दुनिया में महंगाई चरम पर पहुंचने लगी। हमने भी 100 रुपए लीटर पेट्रोल लेना शुरू कर दिया।
भले पुतिन पर दबाव बना हो, आर्थिक तौर पर क्रेमलिन कमजोर नहीं पड़ सका। इसके उलट जिंदा रहने के लिए जरूरी गैस -तेल नाटो के देश ही रूस से लेते रहे। अमेरिका ने यूरोप को ताना देने के बदले भारत-चीन को धमकाना शुरू कर दिया तो हमने साफ बता दिया कि हमें खुद पेट्रोल-डीजल की चिंता है तो हम रूस से ही ज्यादा तेल खरीद लेंगे। मजबूरी में अमेरिका ने यूरोप को मनाया कि खुद ही खपत कम कर दो। बिजली कटौती कर लो, ऑफिस में जल्दी छुट्टी कर दो लेकिन रूस की कमाई पर रोक लगा दो।
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नाटो ने भारत के साथ इमोशनल कार्ड भी खेला। ये बताकर कि रूस से तेल लेने का मतलब है पुतिन के वॉर मशीन को चलाना क्योंकि रूस उन्हीं पैसों से जंग लड़ रहा है। ये देख कर भारत में दाल नहीं गल रही, नाटो ने तय किया था प्रतिबंधों की सातवीं किस्त नवंबर से लागू की जाए। इसके तहत रूस से तेल सप्लाई पर निर्भरता को कम करना था।
कौन खरीद रहा रूस का तेल
लेकिन सऊदी अरब और रूस ने खेल कर दिया। पहले ही ग्बोलल सप्लाई दो परसेंट गिरा दी। लिहाजा तेल के दाम अब फिर से ऊपर जा सकते हैं। फिर महंगाई कहां जाएगी, जरा सोच लीजिए। इंग्लैंड में ये 40 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। अमेरिका ने ओपेक से विनती की थी कि सप्लाई न घटाए। अब घटने के बाद जो बाइडन के प्रवक्ता ने से अदूरदर्शी फैसला बताया है। इंग्लैंड के पूर्व पीएम बोरिस जॉनसन ने भी सऊदी अरब से विनती की थी कि लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। हमें बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है।
तेल बाजार पर किसका दखल
फिलहाल दुनिया के कुल कच्चे तेल का 30 परसेंट ओपेक निकालता है। इसमें सबसे बड़ा उत्पादक सऊदी अरब है। यहां के कुएं हर दिन एक करोड़ बैरल कच्चा तेल उगलते हैं। 2016 में जब क्रूड ऑयल के दाम बहुत घट गए तब ओपेक प्लस का आइडिया सामने आया। जिन दस नए देशों को जोड़ा गया उनमें रूस भी सऊदी अरब के बराबर हर दिन एक करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करता है। ओपेक प्लस बनने से कार्टेल की ताकत बढ़ चुकी है।
अब दुनिया के 40 प्रतिशत तेल उत्पादन पर इनका कंट्रोल है। ये 23 देश अल्फ्रेड मार्शल के मांग-आपूर्ति सिद्धांत के मुताबिक दाम पर भी कंट्रोल करने में सक्षम हैं। ऐसा नहीं है कि अमेरिका खुद कच्चे तेल का उत्पादन नहीं करता। जो बाइडन का देश भी एक करोड़ बैरल से ज्यादा कच्चा तेल हर दिन निकालता है लेकिन इससे घरेलू जरूरत भी पूरी नहीं होती। फिर यूरोप और इसके नाटो वाले यारों को क्या ही मिलेगा। ऊपर से जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी जैसे देश हाड़ कंपाने वाली ठंड से बचने के लिए जो हीटर चलाते हैं उसका गैस रूस देता है। और रूस से यूरोप को जाने वाली गैस पाइपलाइन नॉर्ड का नॉब व्लादिमीर पुतिन ही घुमा सकते हैं।
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