रूस यूक्रेन युद्ध को एक साल हो गया है। देशों के बीच युद्ध अभी भी जारी है। अभी भी दोनों में से एक भी देश युद्ध को रोकने के लिए तैयार नहीं है। युद्ध के कारण सबसे ज़्यादा नुकसान यूक्रेन का हुआ है ,वहाँ की अर्थव्यवस्था बिलकुल ख़राब हो गयी है। यूक्रेन की मदद के लिए दुनियाभर के तमाम देश आगे आकर वित्तीय मदद कर रहे हैं। इसी बीच यूक्रेन को वित्तीय जरूरतें पूरा करने के लिए 15.6 अरब डॉलर का कर्ज देने पर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने सहमति जताई है।
IMF ने हाल ही में पाकिस्तान द्वारा उठाये गए आर्थिक क़दमों पर सफाई मांगी है।अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष(IMF) ने अब इस्लामाबाद को 1.1 डॉलर के ब्लैकआउट पैकेज देने से पहले पाकिस्तान से बाहरी वित्तीय सहायता मिलने का आश्वासन माँगा है।रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने पाकिस्तान के सामने कड़ी शर्त रखी है। IMF से समझौते के तहत पाकिस्तान या तो एक पूरक अनुदान के बराबर व्यय कम करने या उसी राशि के बराबर अतिरिक्त कर लगाने के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी तरफ,आईएमएफ ने रूस के साथ चल रहे सैन्य संघर्ष और ऋणों का भुगतान करने की अनिश्चितता के बावजूद, अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों के साथ संबद्ध यूक्रेन को 15.6 अरब डॉलर का वित्तपोषण कर दिया है।
कब तक चलेगी क़र्ज़ सहायता?
यूक्रेन के वित्त मंत्रालय ने बुधवार को आईएमएफ के साथ ऋण सहायता कार्यक्रम पर सहमति बनने की जानकारी देते हुए कहा कि इससे यूक्रेन को अपनी वृहद-वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के साथ युद्ध जीतने के बाद पुनर्निर्माण जरूरतें पूरा करने में मदद मिलेगी। आईएमएफ ने बयान में कहा कि उसका कर्ज सहायता कार्यक्रम चार साल तक चलेगा जिसमें शुरुआती 18 महीनों तक यूक्रेन के व्यापक बजट घाटे को पाटने पर जोर रहेगा। इसके अलावा नए नोट छापकर पेंशन, वेतन एवं बुनियादी सेवाओं से जुड़ी जरूरतें पूरी करने पर भी ध्यान दिया जाएगा।
यह भी पढ़ें: श्रीलंका-बांग्लादेश को मिल गई ‘संजीवनी’, हाथ मलता रह गया कंगाल पाकिस्तान, IMF ने खोला राज
इस कार्यक्रम की शेष अवधि में यूक्रेन को यूरोपीय संघ का सदस्य बनाने और युद्ध खत्म होने के बाद पुनर्निर्माण कार्यों पर विशेष बल दिया जाएगा। रियायती वित्तपोषण वाले इस सहायता कार्यक्रम को अभी आईएमएफ के निदेशक मंडल की मंजूरी मिलनी बाकी है। फरवरी, 2022 में यूक्रेन पर रूस का हमला होने के बाद इसका सैन्य खर्च काफी बढ़ गया है जबकि उसकी अर्थव्यवस्था का आकार पिछले साल करीब 30 प्रतिशत घट गया।