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भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ अपने रिश्तों में गर्माहट लाने की ज़रूरत

दिसंबर, 2021 में नई दिल्ली में भारत-मध्य एशिया संवाद की तीसरी बैठक के दौरान कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

अशोक सज्जनहार

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद बने कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान समेत मध्य एशियाई क्षेत्र के तमाम देश अपनी आज़ादी मिलने के बाद से काफ़ी हद तक शांतिपूर्ण और स्थिर रहे हैं।

रूस-यूक्रेन संघर्ष इन देशों के लिए गेम-चेंजर रहा है। कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण पूरी दुनिया खाद्य, ईंधन, उर्वरकों की कमी, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान, बढ़ते क़र्ज़ और मुद्रास्फीति की अन्य चुनौतियों का सामना कर रही है, उसके अलावा मध्य एशियाई देश खुद को संकट की स्थिति में पाते हैं। 1991 तक सोवियत संघ का अभिन्न अंग रहे इन देशों का सोवियत संघ के साथ उनकी बहुत क़रीबी साझेदारी और सुरक्षा संबंधों के कारण और भी अनिश्चित स्थिति रही थी और बाद में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के साथ और उनके मजबूत रहे और चीन के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक साझेदारी का विस्तार होता रहा है।

 

रूस

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस को मध्य एशिया क्षेत्र के सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखा गया है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप मध्य एशिया में अन्य बातों के साथ-साथ रूस के प्रभाव और बोलबाला में उल्लेखनीय गिरावट आयी है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष मध्य एशिया में रूस और चीन के बीच के सापेक्ष समीकरण को महत्वपूर्ण रूप से बदलने की कोशिश करता है। यह 2014 से रूस द्वारा क्रीमिया के विलय के साथ ही स्पष्ट होना शुरू हो गया था। पश्चिम द्वारा आगामी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप रूस तेज़ी से चीन के के साथ नज़दीक होता चला गया और रूस चीन के अधीनस्थ भागीदार के रूप में उभर कर सामने आया। 24 फ़रवरी, 2022 से यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के ‘विशेष सैन्य अभियान’ के बाद यह और भी स्पष्ट हो गया है।

यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों से मध्य एशियाई देश लगातार असहज होते जा रहे हैं।

 

चीन

चीन पिछले कई वर्षों में न केवल व्यापार और आर्थिक क्षेत्रों, बल्कि राजनीतिक, सैन्य और सुरक्षा मामलों में भी मध्य एशिया में तेज़ी से अपने पदचिह्न का विस्तार कर रहा है। यह बात पिछले दो दशकों में मध्य एशिया में कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से चीन तक असंख्य तेल और गैस पाइपलाइनों के साथ-साथ ताजिकिस्तान में हाल के वर्षों में एक सैन्य/पुलिस चौकी की स्थापना से स्पष्ट है। कजाकिस्तान में 2013 में शुरू की गई बेल्ट एंड रोड पहल ने चीन-मध्य एशिया की तेज़ी से बढ़ती साझेदारी को और गति प्रदान की है।

इस क्षेत्र में रूस के घटते क़द ने चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। यह चीन-किर्गिस्तान-उज्बेकिस्तान रेलवे लिंक की हालिया घोषणा से स्पष्ट था, जो रूस की आपत्तियों के कारण पिछले कई वर्षों से निष्क्रिय पड़ा हुआ था। साथ ही सितंबर, 2022 में कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा आर्थिक और वाणिज्यिक साझेदारी को और विस्तार देने के लिए कई दूरगामी समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इसने पहली चीन + मध्य एशिया (C+C5) विदेश मंत्रियों की बैठक शुरू की। जुलाई, 2020 में और इसे बहुत सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है। भारत के साथ इन देशों के सम्बन्ध को मज़बूती को कम करने के लिए चीन ने भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन से सिर्फ़ दो दिन पहले 25 जनवरी, 2022 को मध्य एशिया के नेताओं के साथ अपने पहले शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की।

18-19 मई, 2023 को मध्य एशिया और चीन के बीच पहले हुए इस ख़ास  शिखर सम्मेलन ने चीन के साथ इन देशों के सम्बन्धों को और बढ़ावा दिया है और साझेदारी के संस्थागतकरण को भी आगे बढ़ाया है। इस शिखर सम्मेलन के परिणामस्वरूप चौंका देने वाले 54 समझौते, 19 नए सहयोग तंत्र और मंच, और शीआन घोषणा सहित नौ बहुपक्षीय दस्तावेज़ सामने आये हैं। यह इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का एक मज़बूत प्रमाण है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, चीन और इस क्षेत्र के पाँच देशों के बीच वस्तु व्यापार की मात्रा तीन दशक पहले के 460 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 70 बिलियन डॉलर से अधिक हो गयी है,यानी कि 150 गुना अधिक और वहां इसका निवेश कुल 15 बिलियन डॉलर था। सहयोग और मध्य एशियाई विकास को प्रोत्साहित करने के लिए चीन ने घोषणा की है कि वह मध्य एशियाई देशों को कुल 26 बिलियन युआन (3.8 बिलियन डॉलर) की वित्तीय सहायता और अनुदान प्रदान करेगा। चीन ने अधिक खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की अपनी खोज में इस क्षेत्र के साथ गहरे संबंध की मांग की है।

 

अन्य देश

रूसी प्रभाव में गिरावट के कारण मध्य एशिया में खालीपन को महसूस करते हुए कई अन्य देश इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने के लिए सक्रिय रूप से पहुंच रहे हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण तुर्की हैं, जो ताजिकिस्तान को छोड़कर सभी के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और सभ्यतागत संबंध साझा करता है; ईरान भी है, जिसके जुलाई, 2023 में नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में एससीओ का सबसे नया सदस्य बनने की संभावना है; अमेरीका; ईयू, और अन्य की दिलचस्पी भी इस क्षेत्र में है।

 

भारत

मध्य एशिया की क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक संरचना की तेज़ी से बदलती गतिशीलता भारत को इन देशों के साथ अपनी साझेदारी को विविधतापूर्ण और गहरा करने का एक उज्ज्वल अवसर प्रदान करती है। मध्य एशियाई देश भारत के विस्तारित पड़ोस का एक हिस्सा हैं। भारत के इन देशों के साथ सदियों पुराने ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंध हैं। भौगोलिक निकटता और इन देशों के साथ कनेक्टिविटी की कमी के कारण भारत इस क्षेत्र के साथ अपने सदियों पुराने संबंधों का लाभ उठाने में सक्षम नहीं रहा है। जुलाई, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इन सभी पांच देशों की ऐतिहासिक यात्रा के साथ शुरू होने वाले पिछले नौ वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र के साथ अपने जुड़ाव में काफ़ी तेज़ी लायी है। हाल के महीनों और वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों की तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने 27 जनवरी, 2022 को वर्चुअल प्रारूप में मध्य एशिया+भारत शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इस बात पर सहमति बनी कि इस तरह के शिखर सम्मेलन हर दो साल में आयोजित किये जायेंगे।

भारत और मध्य एशिया के बीच अधिकांश क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों और स्थिति की काफी समानता है। इनमें से कुछ में अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता; कनेक्टिविटी को तेज़ी से बढ़ावा (आईएनएसटीसी और चाबहार); आतंकवाद विरोधी; जलवायु परिवर्तन; व्यापार और निवेश, सुरक्षा और रक्षा आदि हैं। भारत आईटी, डिजिटल भुगतान अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्टार्टअप, अंतरिक्ष उद्योग, कपड़ा, चमड़ा और जूते उद्योग, रत्न और आभूषण, पर्यटन, फार्मास्यूटिकल्स, काउंटर के क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकता है। मध्य एशियाई देशों के साथ आतंकवाद, कट्टरवाद विरोधी और भी बहुत कुछ किया जा सकता है। एक बार उपयुक्त कनेक्टिविटी स्थापित हो जाता है,तो उसके बाद, यह क्षेत्र यूरेनियम के अलावा तेल, गैस, पनबिजली आदि में भारत की ऊर्जा सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा कर सकता है, जिसे भारत पहले से ही कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से आयात कर रहा है। भारत और मध्य एशिया के लोगों के बीच सहानुभूति, गर्मजोशी और विश्वास है। जैसा कि इस क्षेत्र के कुछ अन्य पड़ोसियों के मामले में भी है, भारत की ओर से कोई भय, अविश्वास या ख़तरा महसूस नहीं किया गया है।

 

भारत को क्या करना चाहिए ?

इसके लिए कुछ सुझाव नीचे दिए गए हैं:

1.बढ़ती भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच मध्य एशिया रूस और चीन के अलावा अन्य साझेदारों की तलाश कर रहा है। भारत इसमें बिल्‍कुल फिट बैठता है, क्‍योंकि उसके साथ बढ़ी साझेदारी से मध्‍य एशिया को कोई ख़तरा महसूस नहीं होता है। हालांकि, भारत को सभी क्षेत्रों में इस क्षेत्र के साथ राजनीतिक, आधिकारिक, सुरक्षा, व्यवसाय, वैज्ञानिक, तकनीकी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सांस्कृतिक, थिंक टैंक और अन्य, दोनों द्विपक्षीय और साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर अपने सहयोग को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

2 पिछले साल 27 जनवरी को आयोजित वर्चुअल भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के बाद पहला विशेष भारत + मध्य एशिया शिखर सम्मेलन अगले साल जल्द से जल्द आयोजित किया जाना चाहिए। पर्याप्त तैयारी करने की आवश्यकता होगी. ताकि द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संबंधों को एक मज़बूत प्रोत्साहन प्रदान किया जा सके।

3 पिछले साल वर्चुअल समिट में भारत और मध्य एशिया के संबंधों को संस्थागत बनाने का फ़ैसला किया गया था। इसे जीवंत बनाने की ज़रूरत है। इसके बाद के शिखर सम्मेलन वैकल्पिक रूप से भारत और मध्य एशिया के देशों में से एक में आयोजित किए जा सकते हैं। भारत में 2024 शिखर सम्मेलन के बाद अगला शिखर सम्मेलन 2026 में या तो उज़्बेकिस्तान या कज़ाकिस्तान में निर्धारित किया जा सकता है।

4 2022 में वर्चुअल शिखर सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि शिखर सम्मेलन की बैठकों के लिए ज़मीनी कार्य तैयार करने के लिए विदेश मंत्रियों, वाणिज्य मंत्रियों, संस्कृति मंत्रियों और सुरक्षा परिषद के सचिवों की नियमित बैठकें आयोजित की जानी चाहिए। नये तंत्र की सहायता करने के लिए नई दिल्ली में एक भारत-मध्य एशिया सचिवालय भी स्थापित किया जाना था। ऐसा प्रतीत होता है कि अब तक केवल सुरक्षा परिषद के सचिवों के बीच दिसंबर, 2022 में बैठक हुई है। अन्य बैठकें भी अगले साल की शुरुआत में विशिष्ट रूप से शिखर सम्मेलन से पहले शीघ्रता से आयोजित की जानी चाहिए।

5 पिछले वर्ष शिखर सम्मेलन में कई अन्य निर्णय लिए गए, जैसे ‘भारत-मध्य एशिया संसदीय मंच’ का निर्माण; भारत द्वारा अनुदान सहायता के आधार पर मध्य एशियाई देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं (HICDPs) का कार्यान्वयन; मध्य एशियाई देशों में बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के लिए 2020 में भारत द्वारा घोषित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट का उपयोग, और भी बहुत कुछ। इन सभी फ़ैसलों पर कार्रवाई में तेज़ी लाये जाने की ज़रूरत है।

6 भारत को मध्य एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिए राजनीतिक, सुरक्षा, रणनीतिक और व्यापार से लेकर शैक्षणिक, संस्कृति, पर्यटन, युवा, महिला विकास, खेल और लोगों से लोगों के बीच संपर्क के क्षेत्रों में और अवसरों को चिह्नित करने की आवश्यकता है।

7 यद्यपि मध्य एशिया के सभी देशों पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है, उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान विशेष ध्यान देने योग्य हैं, उज्बेकिस्तान इसलिए, क्योंकि यह भारत के साथ साझेदारी बढ़ाने की अपनी इच्छा में मध्य एशियाई देशों में सबसे अधिक सक्रिय के रूप में उभरा है, और कजाकिस्तान इसलिए, क्योंकि यह भौगोलिक क्षेत्र में सबसे बड़ा देश, महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों से संपन्न है, और इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

8 मध्य एशिया के साथ जुड़ाव को मज़बूत और गहरा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, यूरोप और अन्य समान विचारधारा वाले जैसे देशों के साथ सहयोग करना भारत के लिए उपयोगी होगा। यह मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ भागीदार देशों के पारस्परिक लाभ और हक़ के लिए होगा।

9 मध्य एशिया में साझेदारी के उभरते अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए भारत को इस क्षेत्र के लिए एक विशेष दूत नियुक्त करना चाहिए, जो उचित स्तर पर इस क्षेत्र के संबंधित अधिकारियों तक पहुंच सके और भारत में निर्णय लेने में तेज़ी ला सके।

उपरोक्त पर सुझावों पर अमल करने से भारत और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक और महत्वपूर्ण संबंधों को एक प्रारंभिक, महत्वपूर्ण प्रोत्साहन हासिल हो सकेगा।