अंतर्राष्ट्रीय

राफेल खरीदने वालों की मची होड़! सालों पुराने विमान की कैसे बदली तकदीर? जानिए पूरी कहानी

Rafale Aircraft: फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान खरीदने वाले देशों की लाइन लगी हुई है। यही वजह है कि राफेल को बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन नई असेंबली लाइन शुरू करने जा रही है। दरअसल, पिछले साल अमेरिकी अधिकारियों ने ऐलान किया था कि इंडोनेशिया ने F-15 लड़ाकू विमान खरीदने की मंजूरी दे दी है उसी दिन इंडोनेशिया से खबर आई कि वह फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान को खरीद रहा है। मालूम हो यह राफेल 20 साल पुराना मल्टीरोल फाइटर जेट है। यह बड़ी संख्या में हथियारों के साथ उड़ान भरने में सक्षम है। इस विमान की बिक्री में हाल में ही जबरदस्त उछाल आया है। एशिया और यूरोप में मंडराते युद्ध के खतरें, रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध और अमेरिकी लड़ाकू विमानों की कीमतों ने राफेल की लोकप्रियता को बढ़ा दिया है। इस लड़ाकू विमान के एक के बार एक ऑर्डर ने हथियारों के व्यापार में फ्रांस को बड़ा खिलाड़ी बना दिया है।

2005 में फ्रांसीसी वायु सेना को मिला पहला राफेल

राफेल लड़ाकू विमान को फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने बनाया है। आज से 20 साल पहले जब इस विमान ने पहली उड़ान भरी तो इसे खरीदने वाला कोई नहीं था। सिर्फ, फ्रांसीसी वायु सेना और नौसेना ने राफेल का ऑर्डर दिया। फ्रांसीसी वायु सेना को राफेल विमानों की डिलीवरी अप्रैल 2005 में मिली। इसके बाद से 2014 तक राफेल को किसी भी देश ने नहीं पूछा। यह जबरदस्त लड़ाकू विमान सिर्फ फ्रांसीसी वायु सेना और नौसेना में मिशन को अंजाम देता रहा। राफेल को 12 मार्च 2007 को अपने पहले कॉम्बेट मिशन के लिए अफगानिस्तान में तैनात किया गया था।

दुनिया कैसे हुई राफेल की दीवानी

राफेल ने फ्रांसीसी वायु सेना और नौसेना में तैनाती के दौरान अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया में कई सफल हवाई हमलों को अंजाम दिया। इस दौरान राफेल की काबिलियत को पूरी दुनिया ने देखा। 19 मार्च 2011 को फ्रांसीसी राफेल ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1973 के समर्थन में ऑपरेशन हरमटन के दौरान लीबिया पर टोही उड़ान और स्ट्राइक मिशन का आगाज किया था। राफेल का प्रारंभिक लक्ष्य लीबिया के बेंगाजी के चारो और घेराबंदी कर रहे टैंकों और तोपों को नष्ट करना था। 24 मार्च 2011 को बताया गया कि राफेल ने रनवे पर खड़े लीबियाई वायु सेना के जी-2/गैलेब लाइट अटैक/ट्रेनर विमान को नष्ट कर दिया है। अपनी तैनाती के दौरान राफेल ने अपने जियोलोकेशन फीचर और विभिन्न गोला-बारूद के जरिए लीबियाई सेना के कई एयर डिफेंस सिस्टम को नष्ट कर दिया।

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कौन से देश राफेल को ऑपरेट कर रहे

वर्तमान में राफेल लड़ाकू विमानों को ऑपरेट करने वाले देशों में फ्रांस के अलावा भारत, मिस्र, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और ग्रीस शामिल हैं। जल्द ही इंडोनेशिया और कोलंबिया को भी राफेल लड़ाकू विमानों की डिलीवरी हो सकती है। राफेल को अपना पहला विदेशी आर्डर 2015 में मिला। इसी साल राफेल को एक और देश से राफेल का ऑर्डर मिला। राफेल का पहला विदेशी ग्राहक बनने वाला देश मिस्र था। मिस्र ने नवंबर 2014 में फ्रांस के साथ राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत शुरू की थी। फरवरी 2015 तक, दोनों देश 24 राफेल की खरीद को पूरा करने के लिए फ्रांस की निर्यात ऋण एजेंसी से ऋण पर बातचीत कर रहे थे।

मिस्र के बाद कतर ने खरीदा राफेल

जून 2014 में डसॉल्ट एविएशन ने दावाा किया कि वह कतर के साथ 72 लाफेल के लिए एक सौदा करने जा रहा है। हालांकि, 30 अप्रैल 2015 को शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ़्रांस्वा ओलांद के साथ घोषणा की कि कतर 12 और विमान खरीदने के विकल्प के साथ 24 राफेल का ऑर्डर देगा। कतर एमिरी वायु सेना ने अपने डसॉल्ट मिराज 2000 बेड़े को बदलने के लिए बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉर्नेट, बोइंग एफ-15ई, यूरोफाइटर टाइफून और लॉकहीड मार्टिन एफ-35 लाइटनिंग II के साथ राफेल का इवैल्यूवेशन शुरू किया। 4 मई को 2015 को कतर और फ्रांस के बीच 24 राफेल के लिए 7.02 बिलियन डॉलर की डील की। इसमें लंबू दूरी की क्रूज मिसाइलें, मिटिओर मिसाइलों के साथ 36 कतरी पायटलों और 100 टेक्निशियन की टीम की फ्रांस में ट्रेनिंग भी शामिल थी।

आईएन ब्यूरो

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