भारत विकासशील देशों द्वारा ग्लोबल साउथ के एक प्रमुख नेता के रूप में सम्मानित है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के ‘शांति सूत्र’ के कार्यान्वयन में भारत एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
कीव की पहल पर चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए एक ठोस समाधान खोजने के लिए सप्ताहांत में कोपेनहेगन में G-20 के वर्तमान अध्यक्ष, भारत के प्रतिनिधियों,ब्राजील और दक्षिण अफ़्रीका के साथ पश्चिमी देशों के राजनयिकों की एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस युद्ध ने फ़रवरी 2022 से अबतक दोनों देशों के हज़ारों लोगों की जान ले ली है।
एक जर्मन टीवी चैनल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए रूसी राज्य के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी TASS ने कहा कि डेनमार्क की राजधानी में 24 जून की बैठक “सख़्त गोपनीयता” में हुई और इस संघर्ष को हल करने के लिए आधिकारिक बातचीत यूक्रेन में जुलाई की शुरुआत में हो सकती है।
टीवी चैनल (एआरडी) ने कहा कि पश्चिम का लक्ष्य इन ब्रिक्स देशों का समर्थन हासिल करना था, जो अभी भी यूक्रेन के आसपास की स्थिति से तटस्थ बने हुए हैं।
यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन
(फ़ोटो: सौजन्य: Telegram/Andriy Yermak)
ऐसा माना जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन, जो पहले कोपेनहेगन की यात्रा करने वाले थे, उन्होंने ही वस्तुतः इसस बैठक में भाग लिया।
डेनमार्क की राजधानी में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) संजय वर्मा के माध्यम से भारत की भागीदारी हिरोशिमा में G-7 शिखर सम्मेलन के मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ बैठक के बाद हुई है। 20 मई को और ज़ेलेंस्की के प्रमुख सहयोगियों में से एक एंड्री यरमक ने इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को फ़ोन किया था।
कोपेनहेगन बैठक के बाद यरमक ने अपने टेलीग्राम चैनल पर लिखा कि ब्राजील, ग्रेट ब्रिटेन, डेनमार्क, यूरोपीय संघ, इटली, भारत, कनाडा, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, , तुर्की, यूक्रेन, फ्रांस,जापान और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक सलाहकारों के साथ प्रमुख शांति सिद्धांतों पर परामर्श आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा, यह बैठक हिरोशिमा में G-7 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन, सात देशों के समूह और ग्लोबल साउथ के नेताओं के बीच शुरू हुई बातचीत का ही एक सिलसिला है।
यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल में ज़ेलेंस्की के कार्यालय और विदेश मंत्रालय की एक टीम शामिल थी।
यरमक ने लिखा, “ग्लोबल साउथ के देशों की एक महत्वपूर्ण संख्या की भागीदारी दर्शाती है कि हमारे देशों के बीच संबंधों में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं और आपसी संबंधों में गुणात्मक रूप से नया स्तर आ रहा है। मैं अपने पश्चिमी सहयोगियों के समर्थन के लिए आभारी हूं।”
कीव एक ‘वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन’ आयोजित करने की भी योजना बना रहा है, जो 11-12 जुलाई को लिथुआनिया में नाटो शिखर सम्मेलन के बाद हो सकता है।
यरमक यूक्रेनी राष्ट्रपति के कार्यालय के प्रमुख हैं।उन्होंने कहा कि भाग लेने वाले देशों की सुरक्षा और राजनीतिक सलाहकार इस बात पर सहमत हुए कि परामर्श प्रारूप के काम को जारी रखने के लिए यह एक अच्छा मंच है और भविष्य में वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन आयोजित करके इसे और विकसित किया जा सकता है।
उन्होंने अपने टेलीग्राम चैनल पर लिखा, “मुझे उन साइटों के बारे में बताया गया, जो वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन के लिए संभावित स्थल बन सकती हैं। मैंने सबसे पहले यूक्रेन को अपने लिए सबसे वांछनीय विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया। वैसे, कई देशों ने पहले ही इस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्थल भी शामिल हैं।”
मार्च में डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने इस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने की पेशकश की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए भारत सहित कुछ देशों के प्रयासों की आवश्यकता होगी।
रासमुसेन ने कहा, “अगर यूक्रेन को लगता है कि ऐसी बैठक करने का समय आ गया है, तो यह शानदार होगा। और फिर डेनमार्क स्पष्ट रूप से इस बैठक की मेज़बानी करना चाहेगा… भारत, ब्राजील और चीन जैसे देशों की रुचि और भागीदारी बनाना आवश्यक है।”
दिलचस्प बात यह है कि कोपेनहेगन बैठक से ठीक एक सप्ताह पहले यरमक ने ‘वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन’ की तैयारियों पर चर्चा करने और रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत,यानी मई में हिरोशिमा में पीएम मोदी और यूक्रेनी राष्ट्रपति के बीच हुई चर्चाओं पर चर्चा करने के लिए एनएसए अजीत डोभाल को फोन किया, जो कि दोनों नेताओं के बीच पहली बैठक थी। ।
13 जून को टेलीफोन पर बातचीत को लेकर ज़ेलेंस्की के कार्यालय ने जारी एक बयान में कहा, “बातचीत का मुख्य विषय यूक्रेनी शांति सूत्र का कार्यान्वयन था, विशेष रूप से यूक्रेनी शांति योजना के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को मजबूत करना और भारत के इसके व्यक्तिगत बिंदुओं के कार्यान्वयन में शामिल होने की संभावना।” ।
यरमक ने इस आयोजन में भाग लेने के लिए विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देशों की व्यापक संभव श्रृंखला को शामिल करने की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया।
हिरोशिमा में जब ज़ेलेंस्की ने उन्हें वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी दी, तो पीएम मोदी ने एक बार फिर आगे का रास्ता खोजने के लिए बातचीत और कूटनीति के लिए भारत के स्पष्ट समर्थन से अवगत कराया और कहा कि स्थिति के समाधान के लिए भारत और वह व्यक्तिगत रूप से भी हर संभव प्रयास करेंगे।
President Zelensky: “As part of my visit to Japan and participation in the G7 Summit, I met with Prime Minister of India Narendra Modi. During the meeting I spoke about Ukraine's needs in humanitarian demining and mobile hospitals. I briefed Narendra Modi in detail on the… pic.twitter.com/Cbi6gbsFjK
— Dénes Törteli 🇪🇺🇭🇺🇺🇦 (@DenesTorteli) May 20, 2023
कैरेबियाई, अफ़्रीका और प्रशांत महासागर के देशों ने नयी दिल्ली के यह कहने के बाद भी भारत पर विश्वसनीय भागीदार के रूप में भरोसा करना जारी रखा है कि यूक्रेनी संघर्ष के सामने आने से पूरे ग्लोबल साउथ को भी क्षति पहुंची है।
हाल ही में पापुआ न्यू गिनी के पोर्ट मोरेस्बी में आयोजित फ़ोरम फ़ॉर इंडिया-पैसिफ़िक आइलैंड कोऑपरेशन (FIPIC) शिखर सम्मेलन में प्रशांत द्वीप के नेताओं ने ज़ोर देकर कहा कि वे “वैश्विक पावरप्ले के शिकार” हैं और उन्होंने पीएम मोदी से बड़े मंचों पर अपनी चिंताओं को बढ़ाने का आह्वान किया।
पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने कहा, “आप वह आवाज़ हैं, जो हमारे मुद्दों को सर्वोच्च स्तर पर पेश कर सकते हैं, क्योंकि उन्नत अर्थव्यवस्थायें ही अर्थव्यवस्था, वाणिज्य, व्यापार और भू-राजनीति से संबंधित मामलों पर चर्चा करती हैं।”
“हम चाहते हैं कि आप हमारी वकाललत करें। आप उन बैठकों में बैठते हैं और छोटे-छोटे उभरते देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अधिकारों के लिए लड़ना जारी रखते हैं।” मारापे ने ज़ोर देकर कहा कि वह प्रशांत क्षेत्र के अन्य “छोटे भाई और बहन देशों” के लिए बोल रहे हैं।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने और वास्तव में एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाने के भारत के वे प्रयास, जो विकासशील देशों की आकांक्षाओं के प्रति अधिक उत्तरदायी होंगे, आने वाले हफ़्तों में ही बढ़ेंगे क्योंकि यह सितंबर में पहली बार G-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।