एक तरफ जहां चीन और पाकिस्तान की मदद से तालिबान आतंकियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है तो वहीं दूसरी तरफ इंडिया-रूस और अमेरिका ने भावी संशय और संदेहों के खिलाफ रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार केंद्र में इंडिया है। मतलब यह कि अफगानिस्तान में आतंकियों की सरकार से सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को होसकता है तो वो भारत है। और आतंकियों की सरकार के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाता है तो उसमें इंडिया की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए मंगलवार को अमेरिकी शीर्ष खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ बिल बर्न्स और रूस के एनएसए निकोले पेत्रुशेव इंडिया पहुंचे। बिल बर्न्स से मुलाकात के बाद पेत्रुशेव से इंडिया के एनएसए अजित डोभाल ने लंबी रणनीतिक वार्ता की। हालांकि, इन तीनों अति महत्वपूर्ण अधिकारियों की मुलाकात के बारे में किसी को जानकारी नहीं है, लेकिन अमेरिका और रूस के इन दोनों बेहद अहम शख्सियत के भारत आने से मायने छिपे नहीं हैं।
अफगानिस्तान में पाकिस्तानी फौज
अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार से पहले माना जा रहा था कि रूस का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा लेकिन अंतरिम सरकार के ऐलान के बाद साफ हो गया कि अमेरिका और इंडिया ही नहीं बल्कि रूस को कट्टर दुश्मन मानने वाले दुर्दांत आतंकियों के हाथ में अफगानिस्तान सरकार की कमान पहुंच चुकी है। इसलिए रूस की चिंताएं बढ़ गई हैं। रूस के एनएसए के दिल्ली आने से पहले पिछले महीने की 24 तारीख को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और इंडिया के पीएम नरेंद्र मोदी के बीच फोन पर लंबी चर्चा हो चुकी है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआई के चीफ बिल बर्न्स और निकोले पेत्रुशेव की वार्ता के अलावा ब्रिक्स वर्चुअल समिट से एक दिन पहले अफगानिस्तान पर भी बातचीत होगी जहां मोदी, पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग होंगे।
क्या था अफगानिस्तान में तालिबान पार्ट-1
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की सक्रिएता और आतंकियों की सरकार के बाद इंडिया का रोल बेहद अहम हो गया है। सवाल यह है कि अफगानिस्तान में आतंकियों की पाकिस्तान प्रायोजित सरकार के साथ यूएन कैसा रवैया रखेगा। इस समय इंडिया उस समिति का चेयरमैन है जो तालिबान पर लगे प्रतिबंधों पर फैसला करेगा।