अंतर्राष्ट्रीय

China-रूस के कहने पर दुश्मनी भुलाकर क्यों एक हुए सऊदी अरब और ईरान, जानें इनसाइड स्टोरी

सऊदी अरब (Saudi Arab) इन दिनों दो घटनाओं को लेकर खूब सुर्खियां बटोर रहा है। पहली यह की सऊदी अरब हाल में ही शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हुआ है। तो दूसरा सऊदी अरब ने अपने कट्टर दुश्मन ईरान संग दोस्ती कर ली है। अब ऐसे में इन घटनाओं का पूरी दुनिया के ऊपर प्रभाव पड़ने की अधिक संभावना है। माना जा रहा है कि सऊदी के इन फैसलों से दूसरे खाड़ी देशों में भी चीन और रूस का प्रभाव बढ़ेगा। बीते दिनों सऊदी कैबिनेट ने अपने देश को एससीओ का सदस्य बनाने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी। इससे सऊदी अरब एससीओ का एक वार्ता भागीदार बन गया है। एससीओ एक आर्थिक और सुरक्षा संगठन है। इसमें रूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान पूर्ण सदस्य हैं। वहीं, एससीओ के वार्ता भागीदारों में आर्मीनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, मिस्र, कतर, श्रीलंका और तुर्की शामिल हैं।

सऊदी को मिली एससीओ में एंट्री

बता दें, जहां ईरान को पिछले साल सितंबर में एससीओ के पर्यवेक्षक से पूर्ण सदस्य का दर्जा दिया गया था। ऐसे में उसी ब्लॉक में सऊदी अरब का शामिल होना बड़ी बात मानी जा रही है। पिछले महीने चीन की मध्यस्थता में सऊदी अरब और ईरान ने आपसी दुश्मनी को भुलाकर राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने का फैसला किया। इसे दुनियाभर में चीन की बढ़ती साख के रूप में देखा गया। सऊदी अरब पूरी दुनिया में सुन्नी धर्म और कट्टर वहाबी विचारधारा का समर्थक देश है। वहीं, ईरान (Iran) शिया बहुल देश है, जो खुद को इस्लामिक देशों का नेता बनाना चाहता है। लेकिन, इस्लाम के सबसे प्रमुख धर्म स्थलों की अपने देश में मौजूदगी और तेल की शक्ति के कारण खाड़ी देशों में सऊदी अरब का प्रभाव ईरान के मुकाबले काफी ज्यादा है।

सऊदी की चीन से नजदीकी की वजह

सऊदी के राजनीतिक विशेषज्ञ और अरेबिया फाउंडेशन थिंक टैंक के पूर्व प्रमुख अली अल-शिहाबी ने कहा कि उनका देश पश्चिम के साथ अपने संबंधों को पूरा करने के लिए कई रणनीतिक साझेदारों को विकसित करने की एक पोर्टफोलियो रणनीति अपना रहा है। अली अल-शिहाबी सऊदी अरब के फ्यूचरिस्टिक नियोम सिटी प्रोजेक्ट के सलाहकार बोर्ड में काम करते हैं। उन्होंने कहा कि चीन और उसके नेतृत्व वाले बहुपक्षीय संगठन इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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चीन US की खाली जगह को भर रहा

शिहाबी ने कहा कि अमेरिका ने खाड़ी देशों को अकेले छोड़ दिया है। इस खाली जगह को भरने के लिए चीन आगे आया है। चीन फारस की खाड़ी के तेलों पर बहुत अधिक निर्भर है। ऐसे में खाड़ी में स्थिर यथास्थिति बनाए रखना चीन की भी जिम्मेदारी है। यही कारण है कि इस पूरे इलाके को स्थिर करने के लिए चीन काफी सक्रिय है और उसने सऊदी अरब और ईरान की दोस्ती कराई है। इससे चीन को सीधा फायदा है। ये दोनों देश तेल और गैस के सबसे बड़े उत्पादक होने के साथ खाड़ी देशों में दो अलग-अलग ध्रुवों का भी नेतृत्व करते हैं। ऐसे में चीन की पहुंच अब इन दोनों देशों में और गहरी हो गई है।

आईएन ब्यूरो

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