आर्थिक संकट के कारण सोने की श्रीलंका के हालात दिन पर दिन बदतर होते जा रहे हैं। आलम ये है कि अब देश गृहयुद्ध की चौखट पर आ खड़ा हुआ है। लोगों के बीच अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के समान को लेकर मारामारी हो रही है। खाद्य पद्धार्थों के लिए छीना-छपटी देखी जा रही है। वही पेट्रोल पंपों पर तो सेना की तैनात करनी पड़ रही है। सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल, देश का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है। इस कारण जरूरी चीजों का आयात नहीं हो पा रहा है। देश में अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियों से लेकर दवाओं तक की कमी है।
देश में 13-13 घंटे की बिजली कटौती है। सार्वजनिक परिवहन ठप हो चुका है, क्योंकि बसों को चलाने के लिए डीजल तक नहीं है। इन सब हालातों से निपटने के लिए श्रीलंका अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज मांगेगा। इसके साथ ही श्रीलंका ने एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) और वर्ल्ड बैंक से भी कर्ज लेने की तैयारी कर ली है। आईएमएफ से इस बारे में बात करने के लिए वित्तीय विशेषज्ञों की 3 मेंबर वाली सलाहकार समिति बनाई है। इस कमेटी में सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के पूर्व गवर्नर इंद्रजीत कुमारस्वामी को शामिल किया गया है। कमेटी से कर्ज संकट को दूर करने के उपाय सुझाने को भी कहा गया है।
इस बीच एशियाई डेवलपमेंट बैंक ने 2022 में श्रीलंका की आर्थिक वृद्धि में 2.5% के मामूली सुधार का अनुमान जताया है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका में आपातकाल के ऐलान के बाद पहली बार संसद का सत्र बुलाया, लेकिन इस सत्र में विपक्ष के साथ सरकार के कई गठबंधन सहयोगियों ने भी हिस्सा नहीं लिया। महिंद्रा राजपक्षे के नेतृत्व में सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन ने 2020 के आम चुनावों में 150 सीटों पर विजय हासिल की थी। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति सिरीसेना की अगुवाई में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के असंतुष्ट सांसद पाला बदलते हुए सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना गठबंधन में शामिल हो गए थे।
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे किसी भी परिस्थिति इस्तीफा नहीं देना चाहते है। सरकार ने आपातकाल लगाने के राजपक्षे के निर्णय का भी बचाव किया। इसे बाद में हटा लिया गया। मुख्य सरकारी सचेतक मंत्री जॉनसन फर्नांडो का कहना है कि सरकार इस समस्या का सामना करेगी और राष्ट्रपति के इस्तीफे का कोई कारण नहीं है क्योंकि उन्हें इस पद के लिए चुना गया था। श्रीलंका की संसद में कुछ 225 सदस्य हैं। ऐसे में किसी गठबंधन में या दल को बहुमत के लिए 113 सदस्यों का समर्थन चाहिए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन के कम से कम 41 सदस्यों ने समर्थन वापस लेने की ऐलान किया है। ऐसे में महिंदा राजपक्षे सरकार के पास 109 सदस्यों का समर्थन हासिल है। यह बहुमत से 4 कम है।