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अमेरिका के टारगेट पर था क्योटो लेकिन हनीमून की यादों ने बचा लिया- देखें इनसाइड स्टोरी

Henry L. Stimson Saved Kyoto: हिरोशिमा और नागासाकी में जो हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा है और भली-भांती जानती है कि परमाणु हमले का परिणाम क्या होता है। दुनिया ने पहली बार परमाणु हमला देखा, इसका परिणाम कितना भयानक होता है ये दोनों शहर बताते हैं। 6 अगस्त 1945 का दिन था जब अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु हम गिराया था। इससे काफी जन धन की हानि हुई थी। इसका प्रभाव आज भी देखने को मिलता है। हिरोशिमा जापान का सातवां सबसे बड़ा शहर है। 6 अगस्त को अमेरिका ने जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया तो उसके टारगेट लिस्ट में नागासाकी शहर नहीं था। अमेरिकी विमान पहले 9 अगस्त 1945 को कोकुरा शहर पर परमाणु बम गिराने जा रहे थे, लेकिन, छाए हुए बादल और हिरोशिमा धमाके बाद काले धुएं ने इस सहर के आसमान को घेर रखा था। ये धुआं और बादल ही कोकुरा के लिए रक्षक बने और अमेरिका ने सेकेंडरी टारगेट नाकासाकी पर फैटमैन बन गिराने का फैसला किया। लेकिन, एक और कहानी है कि, अमेरिका के टारगेट लिस्ट में क्योटो शहर (Henry L. Stimson Saved Kyoto) भी था लेकिन, इसपर अमेरिका के ही एक मंत्री ऐसे तन कर खड़े हो गए की सुपर पावर को अपने फैसले को बदलना पड़ा। जिसके बाद ये क्योटो शहर की संस्कृति बची रह गई। अगर क्योटो (Henry L. Stimson Saved Kyoto) पर अमेरिका ने परमाणु बम गिरा दिया होता तो आज उसकी धरोहर, उसकी संस्कृति हमे देखने को नहीं मिलती, साथ ही दोनों देशों के बीच आज जो मेलभाव है वो कभी देखने को नहीं मिलता। यह कहानी उनकी हनीमुन यादों से जुड़ी है।

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इसलिए क्योटो पर बम गिराना चाहता था अमेरिका
क्योटो को लेकर कहा जाता है कि, परमाणु वैज्ञानिक और सैन्य अधिकारी इस शहर को इसलिए निशना बनाना चाहते थे क्योंकि इस शहर में कई प्रमुख विश्वविद्यालय थे और कई बड़े उद्योग यहां से संचालित होते थे। इतना ही नहीं इस शहर में 2000 बौद्ध मंदिर और कई ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद थीं। जापान के लिए क्योटो की अहमियत को देखते हुए बैठकों में इसे पहला टारगेट तय किया गया। साल 1945 में हेनरी एल स्टिमसन अमेरिका के युद्ध मंत्री थे और युद्ध से जुड़े सभी फैसलों में उनकी भूमिका प्रमुख रहती थी। उन्हें के फैसले के चलते क्योट को टारगेट से हटाना पड़ा।

क्यो की सुंदरता और संस्कृति को तबाह होते नहीं देखना चाहते थे
कहा जाता है कि, 1920 के दशक में अमेरिका के युद्ध मंत्री हेनरी एल. स्टिमसन अपनी पत्नी के साथ हनीमून मनाने के लिए जापान के क्योटो शहर गए थे। जहां शहर के खूबसूरत नजारों ने उनके मन को मोह लिया और वह इसकी सुंदरता और संस्कृति को तबाह होते नहीं देखना चाहते थे। अमेरिका ने जब परमाणु हमले के लिए शहरों की लिस्ट बनाई तो स्टिमसन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के सामने क्योटो को इस लिस्ट से हटाने की मांग को लेकर अड़ गए।

इससलिए हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान झुकने के लिए तैयार नहीं था। जिसके देखते हुए अमेरिका ने उसपर अपने मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत तैयार दुनिया के पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने का फैसला किया। 27 अप्रैल 1945 को अमेरिका की टारगेट कमेटी की एक मीटिंग हुई। इसमें कुछ मानक तय किए गए जिनके आधार पर टारगेट का चुनाव किए गए। तय किया गया कि परमाणु हमले के लिए चुना जाने वाला शहर आकार में बड़ा होना चाहिए और इसकी आबादी भी अच्छी खासी होनी चाहिए। साथ है सैन्य प्रतिष्ठान मौजूद हों ताकि जापान को युद्ध में कमजोर किया जा सके। इसमे टोक्यो लिस्ट से बाहर था क्योंकि, यहां पर अमेरिकी वायुसेना ने पहले ही बमबारी कर बर्बाद कर दिया था। काफी विचार करने के बाद करीब 17 जापानी शहरों को चुना गया। टारगेट लिस्ट में हिरोशिमा टॉप पर था क्योंकि, अमेरिकी हमलों से इस शहर को अब तक सबसे कम नुकसान पहुंचा था।

क्योटो को बचान के लिए स्टिमसन अपनी बात पर अड़ गए थे
मैनहट्टन प्रोजेक्ट के प्रमउक जनरल लेजली ग्रोव्स ने साफ कर दिया कि टारगेट लिस्ट में पहले नंबर पर हिरोशिमा और दूसरे नंबर क्योटो और तीसरे नंबर पर योकोहोमा होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति के करीबी होने के चलते वह कई फैसलों को टालने और बदलने की भी क्षमता रखते थे। 30 मई 1945, अमेरिका में एक और मीटिंग हुई जिसमें स्टिमसन ने ग्रोव्स से साफ शब्दों में कहा कि, मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि क्योटो पर बम गिराया जाए। अब एक तरफ स्टिमसन थे और दूसरी तरफ तमाम सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक जो क्योटो को टारगेट लिस्ट से हटाने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि बात काफी आगे निकल चुकी थी। आखिर स्टिमसन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के सामने गुहार लगाई। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि मैंने राष्ट्रपति को सुझाव दिया कि जापान के लोग क्योटो के साथ भावनात्मक रूप से मजबूती से जुड़े हुए हैं और अगर इस शहर पर बम गिराया गया तो भविष्य में दोनों देशों के संबंध कभी सुधर नहीं पाएंगे और रूस इसका फायदा उठा सकता है। स्टिमसन अपनी डायरी में लिखते हैं कि, राष्ट्रपति मेरी बात से समहत थे।

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आखिर क्योटो को क्यों बचाना चाहते थे स्टिमसन
दरअसल, क्योटो शहर से अमेरिका के युद्ध मंत्री हेनरी एल. स्टिमसन की कुछ निजी यादें भी जुड़ी थीं। वो इस शहर से अपने उन पलों को बर्बाद नहीं होना देना चाहते थे जो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ हनीमून के दौरान बिताया था। अतंक में वही हुआ जो स्टिमसन चाहते थे, अमेरिका को अपने टारगेट से क्योटो को हटाना पड़ा। क्योटो को तो वो बचा लिए लेकिन, नागासाकी को नहीं बचा पाए। हिरोसीमा और नागासाकी में जो अंजाम हुआ यही वजह है कि आज दुनिया परमाणु युद्ध से डरती है।

आईएन ब्यूरो

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