हिंदूफ़ोबिया बहस के बीच कैलिफ़ोर्निया ने सिस्को के भारतीय इंजीनियरों के ख़िलाफ़ जातिगत भेदभाव का केस किया क्लोज़
कैलिफ़ोर्निया में जातीय संघर्ष (फ़ोटो: IANS)
एक अजीब-ओ-ग़रीब मोड़ में लेते हुए कैलिफ़ोर्निया नागरिक अधिकार विभाग (CRD) ने सिस्को के इंजीनियरों- सुंदर अय्यर और रमना कोम्पेला के ख़िलाफ़ ‘जॉन डो’ नामक एक भारतीय दलित सहयोगी के ख़िलाफ़ कथित जातिगत भेदभाव को लेकर दायर एक मामले को स्वेच्छा से बंद कर दिया।
हालांकि,विभाग ने कहा कि वह इस बड़ी टेक कंपनी के ख़िलाफ़ मुकदमेबाज़ी को जारी रखेगा। मई की शुरुआत में सिस्को और सीआरडी के बीच एक मध्यस्थता बैठक सुनिश्चित की गयी है।
जुलाई 2020 में जॉन डो (शिकायतकर्ता की पहचान की सुरक्षा के लिए एक काल्पनिक नाम) द्वारा दायर मामले में कहा गया है कि अय्यर और कोम्पेला ने डो को उनकी जाति के आधार पर भेदभाव और परेशान किया था, क्योंकि वह एक दलित है। इस मामले में कहा गया कि जातिगत भेदभाव के कारण डो को कम वेतन और अवसर मिलते थे और सिस्को के मानव संसाधन विभाग में उनकी शिकायतों को अनसुना कर दिया गया था।
A LONG THREAD: #BREAKING! California’s @CalDFEH has just dismissed the lawsuit against @Cisco, Sundar Iyer and Ramana Kompella. Without argument. Without a word of testimony. With prejudice. After three years of trial by publicity! Basically, “Oops! Never mind”. 1/n👏🏾👏🏾👏🏾 pic.twitter.com/J1b1Ki3ZK6
— CoHNA (Coalition of Hindus of North America) (@CoHNAOfficial) April 10, 2023
जैसे ही इस मामले को व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रचार मिला, अमेरिका के कई समूह- अम्बेडकर किंग स्टडी सर्कल, एंटी कास्ट डिस्क्रिमिनेशन एलायंस, बोस्टन स्टडी ग्रुप, अम्बेडकराइट बुद्धिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ टेक्सास, डॉ बी आर अम्बेडकर इंटरनेशनल मिशन सेंटर, अम्बेडकर एजुकेशनल एड सोसाइटी, श्री गुरु रविदास सभा कैलिफ़ोर्निया, अंतर्राष्ट्रीय बहुजन संगठन सीए, और हिंदू फ़ॉर ह्यूमन राइट्स मैदान में कूद पड़े थे।
कैलिफ़ॉर्निया द्वारा दायर किया गया यह मामला अमेरिका में जन्मे जाति-विरोधी कार्यकर्ता थेनमोझी साउंडराजन द्वारा लिखित एक रिपोर्ट – ‘संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति’ पर आधारित है। सुंदरराजन की रिपोर्ट के व्यापक प्रचार के बावजूद, सिस्को इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
कुछ हिंदू संगठनों- द कोलिशन ऑफ़ हिंदूज़ ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका (CoHNA) और हिंदू अमेरिकन फ़ाउंडेशन (HAF) ने अय्यर और कोम्पेला के ख़िलाफ़ मामले को कमज़ोर पाया।
अपनी वेबसाइट पर एक बयान में HAF ने कहा कि, लेकिन “हिंदू धर्म के बारे में झूठे दावों और भारतीय मूल के लोगों के ज़ेनोफोबिक चित्रण के साथ सिस्को मामले ने वैश्विक सुर्ख़ियां बटोरीं,और भारतीय और हिंदू अमेरिकी समुदायों में व्यापक आक्रोश पैदा किया।”
एचएएफ के कार्यकारी निदेशक सुहाग शुक्ला ने कहा: “दो भारतीय अमेरिकियों ने अंतहीन जांच के लगभग तीन साल के बुरे दौर को सहन किया, यह एक क्रूर ऑनलाइन विच हंट था, और सीआरडी द्वारा उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के बाद मीडिया में अपराध की धारणा का आरोप लगाते हुए कहा कि वे जाति के आधार पर भेदभाव में लिप्त हैं। हम रोमांचित हैं कि अय्यर और कोम्पेला को हमारी स्थिति के साथ सही ठहराया गया है कि राज्य को हिंदू और भारतीय अमेरिकियों को उनके धर्म या जातीयता के कारण ग़लत काम करने का कोई अधिकार नहीं है।”
CoHNA ने तो यहां तक कहा कि दो भारतीय इंजीनियरों के ख़िलाफ़ यह मामला ही “फ़र्ज़ी” है। सचाई यह है कि CoHNA ने अदालती फ़ाइलिंग और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी से दिलचस्प खुलासे किए हैं।
एक सार्वजनिक दस्तावेज़ में CoHNA कहता है: “अय्यर 20 से अधिक वर्षों से सार्वजनिक रूप से अधार्मिक बने हुए हैं, फिर भी CRD उन्हें एक धर्म और जाति से जोड़तक देखता है। अय्यर के विस्तारित परिवार में कम से कम दो ऐसे रिश्तेदार शामिल हैं, जो स्वयं को दलित के रूप में चिह्नित करते हैं।” यह इस बातच को साबित करता है कि अय्यर जाति और नस्ल और पूर्वाग्रह जैसे इस तरह के जुड़ावों को लेकर सबसे कम परेशान थे।
दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि अय्यर और डो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में एक साथ थे, जहां उनके लंबे समय तक संबंध रहे, जिसके कारण अय्यर ने डो को सिस्को में एक हाई-प्रोफ़ाइल प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए भर्ती किया।
मीडिया में सबसे दिलचस्प और सबसे कम रिपोर्ट किए गए तथ्यों में से एक सचाई यह है कि डो ने सिस्को के लिए अय्यर और कोम्पेला के साथ काम करके कई मिलियन डॉलर तक कमाये। इसके अलावा, अपनी टीम को प्रोत्साहित करने के लिए अय्यर ने डो सहित तमाम कर्मचारियों को अपनी इक्विटी के लाखों डॉलर दे दिए। CoHNA का कहना है कि डो समूह में सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों में से एक थे, फिर भी उन्होंने जातिगत भेदभाव का आरोप लगा दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा लगता है कि डो और मुट्ठी भर अति-उत्साही कार्यकर्ताओं ने अमेरिकी वकीलों को सिलिकॉन वैली में भारतीय तकनीकी-उद्यमियों को निशाने पर लेते हुए घसीट लिया है। कैलिफ़ॉर्निया द्वारा “ऐतिहासिक मामले” के रूप में खारिज किए जाने से ऐसा लगता है कि अमेरिका में इस मामले ने आधी सचाई और खुले तौर पर हिंदूफ़ोबिया को उजागर कर दिया है।