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तालिबान के रक्षामंत्री मुल्ला याकूब ने कहा कि वो अपने सैनिकों में ट्रेनिंग के लिए भारत भेजना चाहता है

अपने सैनिकों को भारत ट्रेनिंग के लिए भेजना चाहता है तालिबान

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा के बाद देश में मानवीय संकट गहरा गया है। भुखमरी और बीमारी का संकट पैदा हो गाया है। ऐसे में भारत लगातार अफगानिस्तान की मदद कर रहा है। इसके लिए इंडिया गेहूं, मेडिकल हेल्प और वैक्सीन की सहायता भेज रहा है। भारत सरकार द्वारा की जा रही इस मदद पर तालिबान ने हर बार आभार जताया है। साथ ही हाल ही में कहा कि, काबुल में भारत अपना एंबेसी खोल सकता है और इसकी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी तालिबान लेता है। अब तालिबान ने कहा है कि, वो अपने सैनिकों की ट्रेनिंग के लिए भारत भेजना चाहता है।

तालिबान सरकार में रक्षा मंत्री और संगठन के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे मुल्ला याकूब ने कहा कि तालिबान भारत के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है। उन्होंने अफगान सैन्य बलों को ट्रेनिंग के लिए दोबारा भारत भेजने की भी इच्छा जाहिर की है। एक भारतीय चैनल से बातचीत के दौरान मुल्ला याकूब से पूछा गया कि कई साल से अफगान सैनिकों को भारत में ट्रेनिंग दी जाती है। अगर आपको मौका दिया जाए तो क्या आप सैनिकों को दोबारा भारत भेजना चाहेंगे? याकूब ने जवाब दिया, हां, हमें इसमें कोई समस्या नहीं है। अफगान-भारत संबंध मजबूत हों और इसके लिए जमीन तैयार करें। इसमें कोई दिक्कत नहीं है।

इसके साथ ही पिछली सरकार में कई अफगान सैनिक, जिन्हें भारत में ट्रेनिंग दी गई, वो अभी भी इंडिया में ही हैं। इसपर सवाल किया गया कि, अगर वे वापस लौटते हैं तो क्या वो उन्हें सेना में दोबारा शामिल करेंगे। इसपर याकुब ने कहा कि, हमने इस संबंध में कई कदम उठाए हैं और विदेशों में मौजूद सभी अफगानों से लौटने का अनुरोध किया है। उनमें से कई लौट चुके हैं और अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। जो लोग यहां (भारत) रह गए हैं, हमें इसकी जानकारी है और हम उनसे लौटने का आह्वान करते हैं। किसी को न छोड़ना ही अफगान परंपरा है और हम इसके प्रति वचनबद्ध हैं।

इसके साथ ही भारत की ओर से भेजी गई सहायता की उन्होंने सराहना करते हुए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि, हम उम्मीद करते हैं कि भारत अफगानिस्तान के लोगों को अपनी सहायता जारी रखेगा। पाकिस्तान के साथ मौजूदा रक्षा संबंधों के सवाल पर याकूब ने कहा, मैंने पहले भी कहा है कि रक्षा संबंध तब शुरू किए जा सकते हैं जब राजनयिक और राजनीतिक संबंध स्थापित हों। हम सभी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों की उम्मीद करते हैं लेकिन अभी तक रक्षा संबंधों में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।