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Afghanistan को नहीं संभाल पा रहा तालिबान! बम धमाकों से निपटने में नाकाम

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Taliban in Afghanistan: तालिबानी कब्जा के बाद से अफगानिस्तान के लाखों लोग अपना सब कुछ छोड़कर दूसरे मुल्कों में पलायन कर गए। तालिबान (Taliban in Afghanistan) के क्रूर शरिया कानूनों के खौफ ने लोगों को मूल्क छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तालिबान कहता रहा कि वो अब पहले जैसा नहीं है, पूरी तरह से बदल चुका है। लेकिन, कुछ ही समय में तालिबान का असली रंग दिखने लगा और वो उसका वही 20 साल पुराना वाला क्रूर चेहरा नजर आने लगा। महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य, काम-काज से लेकर पढ़ाई तक पर पाबंदी, पुरुषों को दाढ़ी कटाने से लेकर पहनावे और म्यूजिक तक पर पाबंदियां लगा दिया। इन सब के अलावा एक और चीज देखने को मिली वो है तालिबान के बाद अफगान (Taliban in Afghanistan) में बम धमाके बढ़ गए हैं। शियाओं और गैर सुन्नी मुसलमानों पर हमले लगातार हो रहे हैं। जो आंकड़े सामने आए हैं उसे देखर लगता है कि, तालिबान के बस में अब कुछ नहीं है। सत्ता कंट्रोल उसके हाथों से खिसकता जा रहा है।

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बढ़ रहीं आतंकी वारदात, अगस्त में 366 की मौत
अफगान की सत्ता तालिबान के हाथों में आने के बाद मुल्क में हमले भी बढ़ गए हैं। कब और कहां ब्लास्ट हो जाए कुछ नहीं पता। इस वक्त तालिबान के लिए नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स और इस्लामिक स्टेट-खोरासन प्रॉविंस टेंशन बने हुए है। तालिबान लगातार इस बात से इंकार करता है कि आईएस का वहां कोई वजूद और खतरा नहीं है। लेकिन मस्जिदों, स्कूलों और कारों पर इस ग्रुप के हमले कुछ और ही कहानी कहते हैं। अगस्त महीने में 366 लोग आतंकी घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। यह जुलाई की तुलना में हुई 244 मौतों की तुलना में काफी ज्यादा थी। इससे पहले जून में 367 और मई में 391 लोग ऐसी ही घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके थे।

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तालिबान की क्रूरता अफगानिस्तान पर भारी
तालिबान के सामने एक ओर आतंकी हैं तो दूसरी ओर आर्थिक कमजोरी। कब्जा के बाद से ही अफगानिस्तान में मानवीय संकट गहराता चला गया। आलम यह हुआ कि दो जून की रोटी के लिए लोग अपने बच्चों तक को बेचने पर मजबूर हो गए। तालिबान अगर महिलाओं के हक की बात किया होता, उन्हें सम्मान दिया होता। पढ़ने और रोजगार के लिए खुली छूट देता। उनके खिलाफ प्रतिबंधों के बजाय उनको आजादी देता तो शायद आज अफगानिस्तान में उसका और लोगों का चेहरा कुछ और ही होता। शायद विदेश से उसे सहायता मिलना शुरू हो जाता। देश की रूकी हुई आर्थिक रफ्तार फिर से पटरी पर दौड़ पड़ती। लेकिन, तालिबान ने ये सब करने के बजाय अपनी क्रूरता की सारी हदें पार करता रहा और आज आलम यह है कि, मुल्क चलाने के लिए उसे तिकड़म लगाने पड़ रहा है।