कई मुद्दों को लेकर चीन और अमेरिका भी इस वक्त आमने-सामने हैं। ताइवान पर हमले के लिए चीन पूरी तरह से तैयार है लेकिन, अमेरिका ने चेतावनी दी है कि अगर वह हमला किया तो ताइवान की रक्षा अमेरिका करेगा। जिसपर चीन का कहना है कि बीच में जो भी आएगा अंजाम बुरा होगा। अब अमेरिका बनाम चीन की लड़ाई में नेपाल फंसते जा रहा है। नेफाल में ऐसा लग रहा है कि अब एक बार फिर सियासी तूफान देखने को मिल सकता है। नेपाल की सत्तारूढ़ शेर बहादुर देऊबा सरकार में साझीदार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के नेता पुष्प कमाल दहल प्रचंड ने चेतावनी दी है कि वह सरकार से अलग हो जाएंगे। उन्होंने ये अल्टीमेटम ऐसे समय में दी है जब कुछ घंटे बाद ही देऊबा सरकार अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) को लागू करने के लिए संसद में इस पेश करने जा रही है।
MCC के तहत अमेरिका सरकार नेपाल को 50 करोड़ डॉलर की मदद देना चाहती है लेकिन नेपाल का चीन समर्थक धड़ा इसके विरोध में है। सीपीएन माओवादी के संसद में नेता देव प्रसाद गुरुंग ने कहा है कि, अगर सरकार इसे लागू करने का प्रयास करती है तो यह सरकार के लिए समय है कि गठबंधन को तोड़ दिया जाए। नेपाल के मंत्रियों के बोल देखकर ऐसा लगता है कि चीन इन मंत्रियों से संपर्क में लगातार बना हुआ है और अमेरिका के इस मदद का विरोध कर अपना कब्जा जमाने की कोशिश में है। एमसीसी को लागू करने के लिए उसे संसद में पास कराया जाना जरूरी है। प्रचंड की पार्टी ने पीएम देऊबा से कहा है कि, वह इस अमेरिकी सहायता पर अपने सहयोगी दलों के साथ आम सहमति बनाए। इससे पहले एमेरिका ने एमसीसी को लेकर नेपाल को धमकी दी थी कि, नेपाल 28 फरवरी तक मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत प्रस्तावित अनुदान सहयाता समझौते की पुष्टि करे। यदि नेपाल 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता स्वीकार नहीं करता है तो वह उसके साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा और ऐसा मानेगा कि यह समझौता चीन की वजह से विफल हो गया। अमेरिका इस 50 करोड़ डॉलर की मदद से नेपाल में सड़कों की गुणवत्ता को सुधारा जाना है। इसके अलावा बिजली की उपलब्धता को बढ़ाना है औऱ नेपाल तथा भारत के बीच बिजली का व्यापार किया जाना है। लेकिन ड्रैगन को ये रास नहीं आ रहा है। यहां तक कि वो नेपाल की भी जमीनों पर कब्जा कर वहां गांव बसा रहा है लेकिन, उसके बाद भी नेपाल के मंत्रियों की आंख नहीं खूल रही है।
नेपाल औऱ अमेरिका ने 2017 में एमसीसी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन चीन समर्थन ओली सरकार के चलते ये जस का तस धरा रह गया। वहीं, बीते वर्ष सत्ता में आने के बाद शेर बहादुर देऊबा ने अमेरिका से कहा था कि, वह संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में ही एमसीसी को अपनी अनुमति दे देंगे। लेकिन, अब प्रंचड और उनके समर्थकों का कहना है कि यह अमेरिकी सहायता देश के संविधान को कमजोर करेगा जो उनकी हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्सा है। उनका यह भी कहना है कि अमेरिका नेपाल की जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ कर सकता है। लेकिन प्रचंड और उनके समर्थकों को ये नहीं नजर आ रहा है चीन लगातार नेपाल में अपना दायरा बढ़ा रहा है। उनकी जमीनों को हड़प रहा है। यहां तक हाल ही में नेपाल के एक धार्मीक जगह को हड़पने के बाद ड्रैगन ने यहां पर नेपाल के लोगों को ही आने पर पाबंदी लगा दी है।
बता दें कि, एमसीसी के तहत दुनियाभर में 30 देश भागीदार बने हैं और अब तक 13 अरब 50 करोड़ डॉलर की सहायता दी गई है। लेकिन चीन इस अमेरिकी सहायता का कड़ा विरोध कर रहा है। यहां तक चीन में कई जगहों पर इसे लेकर प्रदर्शन भी किया जा रहा है। वहीं, इस समझौते को चीन के दबाव में आने के कारण पिछले ही साल श्रीलंका ने भी खारिज कर दिया था। जिसके बाद अमेरिका ने अपनी प्रस्तावित 48 करोड़ डॉलर की सहायता को रद कर दिया था।