रूस की ओर से नकारात्मक ढंगसे ही सही मगर एक बार फिर संकेत मिले हैं कि यूक्रेन रशिया (Ukraine-Russia) जंग खत्म हो सकती है। बशर्ते कीव क्रेमलिन की मांगों को पूरा करता है तो! पुतिन जेलेंसकी के साथ बातचीत की टेबल पर बैठ सकते हैं, लेकिनयूक्रेन रशिया (Ukraine-Russia) जंग खत्म करने के लिए बातचीत से पहले जेलेंसकी के हाथ में हस्ताक्षरित ठोस एग्रीमेंट होना चाहिए। अगर कीव को लगता है कि सिर्फ दिखावे के लिए मीटिंग करनी है तो फिर बैठने और बातचीत का कोई फायदा नहीं। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा है कि यूक्रेन रशिया (Ukraine-Russia) जंग रोकने के लिए कीव के राष्ट्रपति जेलेंसकी अभी तक सीरियस नहीं हैं। उन्हेंं कॉमेडियन का चोला उतार कर देश के बड़े पॉलिटिकल लीडर की तरह व्यवहार करना चाहिए।
दरअसल, 24 फरवरी 2022 को मिलट्री ऑप्रेशन शुरू करने के तीसरे दिन ही क्रेमलिन की ओर से कहा गया था कि रूस ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है, अगर जेलेंसकी पुतिन की मांगों को स्वीकार करें तो जंग रोकने के लिए बातचीत की जा सकती है। उस समय जेलेंसकी ने क्रेमलिन की बातों को अनसुना कर दिया। इसके बाद विदेश मंत्री स्तर तक कई बैठकें हुईं, लेकिन इस सब बनतीजा रही। इसके बाद रूस ने जेलेंसकी से किसी भी तरह की वार्ता से इंकार कर दिया। तुर्की ने कई बार कोशिशें कीं। फ्रांस और इजराइल ने भी मास्को और कीव के बीच वार्ता के प्रयास किए।
जेलेंसकी ने भारत में अपने राजदूत के माध्यम से फिर सीधे पीएम मोदी से यूक्रेन रशिया (Ukraine-Russia) जंग रोकने की गुजारिश की थी। भारत मध्यस्थता के लिए तैयार भी था। भारत ने कूटनयिक स्तर पर कोशिशें भी कीं, लेकिन कीव की ओर से संकेत दिए गए कि पुतिन पहले अपनी सेनाओं के वापस बुलाएं तो जेलेंसकी क्रेमलिन की उचित मांगों पर विचार कर सकते हैं। जबकि मास्को का सीधे कहना था कि जेलेंसकी न केवल रूस की मांगों को स्वीकार करें बल्कि उसका एक लिखित बयान भी जारी करें तो पुतिन न केवल जेलेसंकी से बातचीत करेंगे बल्कि अपनी सेनाओं को वापस बुलाकर यूक्रेन को मानवीय सहायता और पुनर्निमाण में मदद करेंगे।
ऐसा बताया जाता है कि रूस के हमलों से परेशान होकर जेलेंसकी समझौते को तैयार भी हो गए थे लेकिन ऐन मौके पर ब्रिटेन और अमेरिका ने जेलेंसकी को रूस के साथ किसी भी समझौता करने पर नतीजे भुगतने की वॉर्निंग भी दे डाली थी।
दरअसल, यूक्रेन रशिया (Ukraine-Russia) जंग के शुरुआती दौर में अमेरिका और ब्रिटेन ने खुद जेलेंसकी को सलाह दी थी कि वो कीव छोड़कर किसी अन्य सुरक्षित देश से अपनी सरकार चलाएं और रूस के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध जारी रखें। अगर जेलेंसकी मान जाते तो युद्ध का मैदान केवल यूक्रेन के भीतर सीमित नहीं रहता। गुरिल्ला दस्तों को रूस के किसी भी हिस्से में भेजना आसान होता। जेलेंसकी ने खुले तौर पर कहा था कि जिन लोगों ने पहले रूस से भिड़ने और आखिरी दम तक साथ न छोड़ने की कसम खाई थी वही अब यूक्रेन छोड़कर जाने की सलाह दे रहे हैं। जेलेंसकी ने कहा था कि वो शहीद होना पसंद करेंगे लेकिन कीव छोड़कर नहीं जाएंगे।
जेलेंसकी के तेवरों के आगे अमेरिका और ब्रिटेन दोनों झुके और फिर घातक हथियारों की बेपनाह सप्लाई कीव को की जाने लगी। यूक्रेन की आर्मी को ब्रिटेन और अन्य देशों में अघोषित तौर स्पेशल ट्रेनिंग दी जाने लगी। लगभग साढ़े छह महीने बीतने के बाद पहली बार फिर रूस ने हालांकि नकारात्मक ढंग से ही सही मगर पुतिन और जेलेंसकी के बीच वार्ता की संभावनाओं को पैदा किया है। इसीके साथ रशिया 1 टीवी और इजबेतसिया अखबार के साथ साक्षात्कार के दौरान क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव यह भी दोहराया है कि यू्क्रेन में रूस (Ukraine-Russia) का ऑप्रेशन अपनी गति से जारी रहेगा। रूस अपने सभी लक्ष्य हासिल भी करेगा।
पेस्कोव ने यह भी दोहराया कि कीव ने मिंस्क एग्रीमेंट की अवहेलना की। मिंस्क एग्रीमेंट में कहा गया था कि डोनेस्क और लुगांक्स को यूक्रेनियन शासन के तहत ही विशेष दर्जा दिया जाएगा। लेकिन यूक्रेन ने आठ साल बीतने के बाद भी ऐसा नहीं किया। रूस ने यह भी कहा था कि यूक्रेन रूस और नाटो के बीच खुद को तटस्थ देश घोषित करे, साथ ही यह भी ऐलान करे कि वो पश्चिमी सैन्य संगठन नाटो का कभी सदस्य नहीं बनेगा।