रूस और यूक्रेन की बाच चल रही जांग का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। खासकर पश्चिमी देशों में इसका असर ज्यादा देखने को मिला है। लगभग हर चीजों के दामों में भारी वृद्धि आते जा रहा है। तेल के दाम तो लगातार रिकॉर्ड हाई पर पहुंचते जा रहे हैं। अब तो अमेरिका का भी हाल बुरा हुआ पड़ा है। अमेरिका में महंगाई बेकाबू होती नजर आ रही है। मुद्रास्फीति दर मई में 8.6 फीसदी तक पहुंच गई है। 1981 के बाद दुनिया की सबसे धनी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर पहली बार इतना पहुंची है। ऐसे में राष्ट्रपति जो बाइडन की चिंता बढ़ गई है।
महंगाई के नए आंकड़े सामने आने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि, अमेरिका के लोग चिंतित हैं और मैं इस बात को समझता हूं। उनके चिंतित होने का ठोस कारण है। (रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर) पुतिन टैक्स का जैसा असर खाद्य पदार्थों और गैस पर हुआ है, वैसा हमने इसके पहले कभी नहीं देखा। विश्लेषकों के मुताबिक बाइडन ने महंगाई का सारा दोष रूसी राष्ट्रपति पर डालने की कोशिश की। लेकिन ये बात अमेरिका में बहुत से लोगों के गले नहीं उतर रही है, क्योंकि इसी दौर में बड़ी कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है।
बदा दें कि, महंगाई की मार पूरी दुनिया झेल रही है। इसका शुरुआत कोरोना महामारी के दौरान सप्लाई चेन टूटने के बाद हुई। लेकिन, यूक्रेन का साथ देना पश्चिमी देशों को ज्यादा बरबाद कर गया। दरअसल, पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगा दिए इसी के चलते स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई है। पूर्वी यूरोप के देशों में इस समय महंगाई दर दो अंकों में है। जर्मनी और ब्रिटेन में भी यह चार दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर है। गरीब देशों में तो महंगाई के कारण खाद्य संकट पैदा होने के संकेत हैँ।
महंगाई के चलते अलग-अलग देशों के सेंट्रल बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, जिससे आर्थिक मंदी की आशंका पैदा हो रही है। ये आशंका अमेरिका में भी गहरा गई है। एक रिपोर्ट की माने तो फेडरल रिजर्व (अमेरिकी सेंट्रल बैंक) ब्याज दरों में और ज्यादा वृद्धि कर सकता है।