20फरवरी 2020के दोहा समझौते से अमेरिका द्वारा बोतल में बंद तालिबानी जिन्न को बाहर निकालने का मुहूर्त निश्चित किया गया। दोहा में दोनों पक्षों तालिबान एवं अमेरिका, के अपने-अपने एजेंडा थे। तालिबानी पक्ष शीघ्रातिशीघ्र काबुल पर अधिकृत नियंत्रण चाहता था। वहीं तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अफगानिस्तान से निज़ात पाना चाहते थे। अमेरिका के लिए दशकों से अफगानिस्तान नासूर बनता जा रहा था। आर्थिक भार के अतिरिक्त अमेरिका अमूल्य सैनिकों की क्षति का भी सामना कर रहा था। अमेरिकी जनमानस भी अफगान-समस्या में अमेरिका की भूमिका को 'पराई शादी में, अब्दुल्ला दीवाना' की तरह देख रह था।
दोहा समझौता थी बड़ी भूल
दो दशकों के पश्चात अमेरिका येन केन प्रकारेण अफगानिस्तान से निकलना चाहता था। पाकिस्तानी संरक्षण में तालिबान अमेरिका को परेशान करने का कोई अवसर चूकता नहीं था। ऐसे परिपेक्ष में दोहा समझौता दोनों पक्षों को सुलभ लगा। समझौते में अमेरिका ने अपने हितों की रक्षा हेतु भरसक प्रयास किए। तालिबान ने इसे एक अवसर पाया, और उन्होंने इसे लपक लिया। अमेरिका का अंध -प्रेम आश्चर्यजनक था, क्योंकि वायदा कौन कर रहा था, जिसके शब्दकोश में वायदा जैसा शब्द है ही नहीं। दोहा समझौते को 'अफगानिस्तान में शांति स्थापित हेतु समझौता' भी कहा गया । पहली बार कुख्यात आतंकवादियों को एक पक्ष माना गया। 15अगस्त 2021, जुम्मे के दिन 4पृष्ठीय इस समझौते के मूल-तत्व की नृशंस हत्या कर दी गई। तालिबान ने काबुल पर जबरन कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान पर नियंत्रण की घोषणा की । तत्पश्चात खून-खराबा, मारपीट, गैर-अफगान मूल के लोगों का पलायन शुरू हुआ।
दुनिया ने देखा तालिबान का तांडव
पूरा विश्व असहाय तालिबान के इस अमानवीय कृत्य को देख रहा था। दुखद यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए दोहे समझौते पर ऐसा हो रहा था। क्यों नहीं इसका क्रियान्वयन तयशुदा मूल रूप से किया गया ? अमेरिका जिसे विश्व नेता बनने का शौक है, जो अत्याधुनिक हथियारों, विख्यात इंटेलिजेंस एजेंसियों एवं थिंक टैंक से भरा हुआ है, उसने ऐसा क्यों होने दिया? क्यों नहीं चरणबद्ध तरीके से अपनी निकासी सुरक्षित की? कहने को तो समझौते के अनुसार अमेरिकी सेना ने काबुल छोड़ दिया किन्तु साथ में काबुल में छोड़ा अनिश्चितता, अनियंत्रित अमानवीय हिंसा का युग। आपाधापी और अनियंत्रित माहौल में सब अस्त-व्यस्त होने लगा। लगा जैसे बोतल से निकला जिन्न अनियंत्रित हो गया और उसने बोतल भी तोड़ दी या अपने पास छुपा ली।
अफगानिस्ता पर नियंत्रित जारी रखना जरुरी
भविष्य में दोहा समझौता अन्य आतंकवादी एवं हिंसक तत्वों द्वारा लोकतान्त्रिक सत्तारूढ़ सरकारों को हटाने का हथियार बन सकता है। विश्व शांति हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ के अतिरिक्त अन्य देशों को भी इस जिन्न को नियंत्रित करने के प्रयास जारी रखने होंगे। किसी सैन्य-समाधान के पूर्व हर कूटनीतिक मंच पर गर्मजोशी से अफ़ग़ान मुद्दे को उठाना होगा । आपसी विचार- विमर्श द्वारा अन्य देशों को इस विचारधारा में जोड़ना होगा। अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड पहले से अफगान समस्या पर नजर रख रहे हैं। वह भी पूरी तरह तालिबान के विरोध कर रहे हैं। ऐसे भू -राजनीतिक माहौल में थोड़े से प्रयास से आतंकवाद के विरूद्ध मोर्चा खोला जा सकता है। इस दिशा में भारत प्रयासरत है। भारत के अथक प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए।
शंघाई सहयोग संगठन की ताजिकिस्तान-सभा में भारत ने स्पष्टता से विश्व को इस दिशा में आगाह किया है। मुख्यतः महिलाओं के विरुद्ध तालिबानी अत्याचार भर्त्सनीय एवं चिंताजनक है। अगर अफगानिस्तान में अस्थिरता और कट्टरवाद बना रहा, तो विश्व में अन्य देशों में भी हिंसा के माध्यम से सत्ता पाने के प्रयास होंगे।
ड्रग्स, अवैध हथियारों और मानव तस्करी का अनियंत्रित प्रवाह भी बढ़ सकता है। तालिबान एवं उसके निकटतम सहयोगी पाकिस्तान दोनों पर अंकुश लगाना आवश्यक है। निकट भविष्य में इस क्षेत्र में शांति दूर-दूर तक नहीं दिखती, किंतु कूटनीतिक प्रयासों से शांति की ओर बढ़ा जा सकता है। इसके लिए पूरे विश्व को एक साथ एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। किसी प्रकार की आर्थिक सहायता का दुरुपयोग होने की संभावना पूरी है। अतः आर्थिक सहायता के स्थान पर अफ़ग़ानिस्तान को खाद्य सामग्री, दवाएं आदि दे कर मानवता की रक्षा करनी होगी। विश्व समुदाय को तालिबान को मानव अधिकारों के सम्मान करने के लिए विवश करना होगा।
लेखक: (डॉ) डी. के. पान्डेय,
गलगोटिया विवि में प्रोफसर हैं। ग्रुप कैप्टन(से.नि.) भारतीय वायु सेना