अंतर्राष्ट्रीय

पश्चिम समर्थित इस्लामी कट्टरपंथियों के ख़तरे के बावजूद बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र क्यों बना रहेगा

ढाका की सड़कों पर बांग्लादेश (Bangladesh) युद्ध अपराधों के मुकदमों के ख़िलाफ़ इस्लामाबाद के स्वरों के विरोध में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शनों का आयोजन करते हुए मैंने एक नारा दिया था,जिसे मैंने ख़ुद गढ़ा था- आमार माटी, आमार मां, पाकिस्तान होबे ना (मेरी भूमि, मेरी मां कभी न होगी पाकिस्तान)। हमारे मुक्ति संग्राम की अमर भावना का साथ देते हुए आम बंगाली ताल दे-देकर इस नारे को लहराने में हज़ारों लोग मेरे साथ शामिल होते। आज जब वैश्विक और साथ ही क्षेत्रीय हलकों में बांग्लादेश (Bangladesh) के भविष्य पर बहस फिर से शुरू हो रही है, मैं अपना वही विश्वास फिर दोहराता हूं कि इस्लामवादी विपक्ष की तमाम साज़िशों और गुप्त आतंकवादी आंदोलनों के बावजूद बांग्लादेश वैसा ही रहेगा, जैसा कि वह पैदा हुआ था। यानी एक ऐसे बंगाली राष्ट्र का जन्म,जिसके मूल्य उदारता और धर्मनिरपेक्षता है और जो हमारी समधर्मी संस्कृति में सन्निहित हैं, जो हमें एक ऐसी महान भाषा देता है, जिसे हम बोलते और लिखते हैं, सोचते हैं और प्यार करते हैं।

यह महज़ एक खोखली उम्मीद नहीं है, बल्कि बांग्लादेश की ज़मीनी हक़ीक़त पर आधारित है, जिसे कुछ इस्लामवादी रैलियों में कुछ हज़ार दाढ़ी वाले मौलवियों या उनके अनुयायियों को शामिल करने से नहीं रोका जा सकता। दरअसल यह डर कि बांग्लादेश अगला अफ़ग़ानिस्तान होगा, इसने पिछली बीएनपी-जमात गठबंधन सरकार (2001-06) और सैन्य समर्थित कार्यवाहक सरकार के दौरान अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान खींचा, इसने अमेरिका के उकसावे पर नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ यूनुस को शीर्ष पद पर स्थापित करने की कोशिश की। लेकिन, बांग्लादेश में एक अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति दिवंगत भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने महसूस किया कि बांग्लादेश की इस्लामवादी कट्टरता के ख़िलाफ़ लड़ाई “घरेलू धर्मनिरपेक्ष ताक़तों” द्वारा लड़ी जानी चाहिए, न कि अमेरिका से छोड़े गये लोगों द्वारा लड़ी जानी चाहिए। बांग्लादेश को फिर से लोकतंत्र के रास्ते पर लाने के लिए तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ हुए अपने चर्चित झगड़े में वह उसी बिंदु पर फिर से वापस चले गए।

बीएनपी-जमात ने सत्ता में आने के ठीक बाद 2001 में गौरनादी और अगोलचेरा में हिंदू महिलाओं पर अपने युवा कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया और उन्होंने उन महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया। बाद में इस तरह की घटनाओं को बांसखाली और कई अन्य स्थानों पर अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के एक व्यवस्थित प्रयास के रूप में दोहराया गया, ताकि वे अवामी लीग को वोट न दें या न दे सकें। यह एक प्रतिबद्ध अवामी लीग समर्थन आधार को ख़त्म करने के लिहाज़ से उन्हें देश छोड़कर भारत चले जाने के लिए मजबूर करने का एक बेशर्म प्रयास भी था। लेकिन, यह राज्य प्रायोजित आतंक तब अवामी लीग और समर्थक-मुक्ति बलों के लिए एक इशारा था,जिसके पूर्व वित्त मंत्री एसएमएस किबरिया और लेबर फ्रंट के बड़े नेता अहसानुल्लाह मास्टर जैसे वरिष्ठ नेताओं को राज्य समर्थित आतंकवादियों द्वारा मारे डाला गया था। इसकी परिणति 2004 में ढाका में शेख हसीना की रैली पर हुए नृशंस ग्रेनेड हमले में हुई, जिसमें उन्हें घेरने की कोशिश कर रहे पार्टी के कई नेता मारे गए थे। अंत में चटगांव बंदरगाह पर दस ट्रकों में हथियारों की ढुलाई की बात सामने आने से अपवित्र राज्य-आतंकवादी गठजोड़ पर से पर्दा उठ गया था।

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दिसंबर, 2008 से अवामी लीग की सत्ता में वापसी के साथ ही बांग्लादेश (Bangladesh) में न केवल समावेशी आर्थिक विकास के एक सुनहरे चरण की शुरुआत हो गयी है, बल्कि ग़रीबी उन्मूलन पर इसका भारी प्रभाव पड़ा है, बल्कि कट्टरपंथी ताक़तें (बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी जैसे दोनों अतिवादी इस्लामवादी दल) और साथ ही हूजी और जेएमबी जैसे आतंकवादी समूह को भी अपने वजूद की लड़ाई लड़नी पड़ी है और राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने की उनकी आशा धूमिल हो गयी है। जब कभी किसी हिंदू मंदिर या उनके परिवारों पर हमला किया गया है, उस समय सरकार ने इसके प्रभाव को रोकने और प्रभावित लोगों के लिए उचित पुनर्वास उपायों को प्रभावी बनाने की तत्काल कार्रवाई शुरू की दी है। बांग्लादेश के इस आतंकवाद विरोधी सफल अभियान ने हूजी और जेएमबी नेतृत्व के शीर्ष को समाप्त कर दिया है, जो कि अन्य मुस्लिम-बहुल देशों के विपरीत वाली परिघटना है, जहां आईएसआईएस और तालिबान (विभिन्न किस्मों) जैसे नए शातिर समूहों का प्रसार हुआ है।

जब सब कुछ नियंत्रण में लग रहा था और अवामी लीग ने रिकॉर्ड तीसरी बार सत्ता में वापसी की, तो अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिमी ब्लॉक का ज़ायक़ा बिगड़ने गया।उसने बांग्लादेश में मानवाधिकारों के मुद्दे के “घोर उल्लंघन” के लिए अवामी लीग सरकार को दोषी ठहराया। बांग्लादेश (Bangladesh) के सात सुरक्षा अधिकारियों के ख़िलाफ़ दिसंबर, 2021 के अमेरिकी प्रतिबंध स्पष्ट रूप से हमारे सुरक्षा तंत्र को गिराने के लिए तैयार किए गए थे और यह केवल इस्लामी इको सिस्टम (राजनीतिक में बीएनपी-जमात और परिदृश्य के चरम छोर पर हूजी-जेएमबी) को फिर से संगठित होने और वापस हमला करने में मदद कर सकता है। अगर देश को 2001-06 की अराजकता और रक्तपात की भयावह संभावना से बचाना है,तो अवामी लीग और मुक्ति-समर्थक ताक़तों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि राज्य की सत्ता पर वह अपनी पकड़ न खोये।लेकिन इतना तो तय है कि इस्लामी चरमपंथियों और उनके पश्चिमी समर्थकों के हिंसक मंसूबों के बावजूद बांग्लादेश कभी भी पाकिस्तान नहीं बन पाएगा। इसके पीछे के कारण हैं :

1. बांग्लादेश (Bangladesh) की आधी आबादी महिलाओं की है। कुल मतदाताओं में महिला मतदाताओं की संख्या 53 प्रतिशत है। सीमाओं के आर-पार बंगाली समाज में लिंग सशक्तिकरण की लंबी परंपरा के साथ यह स्वाभाविक ही है कि बांग्लादेश में हमारी बहनें तालिबानी शासन को कभी स्वीकार नहीं करेंगी। कपड़े के निर्माण (बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र) में लगे श्रमिकों में से सत्तर प्रतिशत ऐसी महिलायें हैं, जो अपने अधिकारों की जमकर रक्षा करती हैं, जिसका एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने एक सीखने के अनुभव के दौरान उनके साथ घनिष्ठता से घुलमिल गई, जब मुझे एक टीवी नाटक में एक कपड़ा कार्यकर्ता की भूमिका निभानी थी। शिक्षा मंत्री दीपू मोनी सहित हमारी महिलाओं ने “टीप” (बिंदी) का उपयोग करने के अपने अधिकार का जमकर बचाव किया है, जो कट्टरपंथियों को ग़ैर-इस्लामिक लगता है। एक महिला आर्ट गैलरी की मालकिन ने हिजाब पहनने से इनकार कर दिया और 2016 के होली आर्टिसन बेकरी आतंकी हमले के दौरान चरमपंथी गोलियों का शिकार हो गयीं। शीर्ष पर लिंगगत शक्ति (हमारी पीएम एक शक्तिशाली नेता हैं और उनकी कैबिनेट में शीर्ष महिला मंत्री थीं) और ज़मीनी स्तर पर इस्लामवादी कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ बांग्लादेश का सबसे बड़ा उभार है।

2. बांग्लादेश (Bangladesh) की 10 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी (जिनमें से ज़्यादातर हिंदू और बौद्ध हैं) के पास इस्लामवादी इको सिस्टम को वापस लाने का कोई कारण नहीं है और उन्हें अपनी रक्षा के लिए केवल अवामी लीग सेही उम्मीद है। मंदिरों पर हमलों और गड़बड़ी की कुछ घटनाओं के बावजूद अल्पसंख्यक सशक्तिकरण बांग्लादेश में जीवन का एक तथ्य है। सर्बोजोनिन दुर्गा पूजा की संख्या पिछले दशक में तेज़ी से बढ़ी है और प्रशासन में वरिष्ठ पदों आसीन अल्पसंख्यकों की संख्या भी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ी है।

3. महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अलावा, मुक्तिजोध (स्वतंत्रता सेनानी) और उनके परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं और वे इस्लामवादी इको सिस्टम द्वारा पेश की गयी चुनौती का बहादुरी से और बिना किसी समझौते के विरोध करेंगे। जिस तरह अवामी लीग ने 1960 के दशक में हमारे अधिकारों के लिए लड़ाई और 1970 के दशक में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की अगुवाई की थी, वैसे ही यह देश को एक विकसित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। सामाजिक शांति और धार्मिक सद्भाव बनाये रखना उच्च वर्ग की व्यर्थ सनक नहीं है, बल्कि विकास को बनाये रखने के लिए यह एक अच्छा निवेश भी है, जबकि विकास नौकरियों और साधन-संपन्नता को सुनिश्चित करता है, जो कि हमारे दिमाग़ को जिहादी पथ से दूर रखता है।

हमारी विदेश नीति सभी के साथ मित्रता की वकालत करती है, लेकिन भारत के साथ हमारे सम्बन्ध तो विशेष हैं और ये रिश्ते जन्म की पीड़ा के साथ पैदा हुए हैं। एक मां के तौर पर मुझे पता है कि मैं किस बारे में बात कर रही हूं। मुक्ति के एक बच्चे के रूप में (मैं 1971 में पांच वर्ष की थी और उस समय आग और ख़ून को स्पष्ट रूप से याद कर सकती हूं) मुझे इस बात का विश्वास है कि इस्लामवादी अधिग्रहण के ख़िलाफ़ तीन तरफ़ से भारत के साथ हमारा विशेष स्थान है और चौथी तरफ इसे रोकने वाला समुद्र एक चौथा बड़ा बांध है। अपने अवामी लीग के सहयोगियों की तरह मैं संकट की इस घड़ी में भारत पर भरोसा करने के लिए अभ्यस्त हूं। मैं उन्हें सिर्फ़ इतना भरोसा दिला सकती हूं कि हम बंगाली कभी भी पाकिस्तान नहीं बन पायेंगे, जैसा कि हम बंगालियों में से कुछ को कभी-कभार डर लगता है। बंगाली पहचान हमारी राष्ट्रीयता का मज़बूत आधार है और आगे भी रहेगी।

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(तराना हलीम एक पूर्व अभिनेत्री-नाटककार, एक प्रसिद्ध वकील और पूर्व मंत्री हैं। इस समय वह सत्तारूढ़ अवामी लीग की केंद्रीय कार्यकारी सदस्य हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं और यह लेख विशेष रूप से इंडिया नैरेटिव के लिए लिखा गया है।) मूल लेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:
Why Bangladesh will remain a secular nation despite threat from West-backed Islamic radicals

Tarana Halim

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