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रूस के मुद्दे पर UN में भारत की गैरहाजिरी, आखिर क्या है PM Modi की Strategy?

Courtesy Google

93 देशों ने मिलकर यूएनएचआरसी से रूस को बाहर रखने का फैसला सुना दिया। 7 अप्रैल को  रूस को रूस के समर्थन में 24 देश खुलकर आए और 58 देशों ने खुद को वोटिंग प्रक्रिया से अलग रखा। अगर आंकड़ों की बात करें तो दुनिया के 93 देशों ने माना कि बूचा में जो कुछ हुआ उसके लिए रूस पूरी तरह जिम्मेदार है। लेकिन 24 देशों ने इस बात पर मुहर लगाई कि रूस ने कुछ गलत नहीं किया। जबकि 58 देशों ने अलग अलग कारणों से अपने आपको वोटिंग प्रक्रिया से बाहर रखा, जिसमें भारत भी शामिल था। भारत ने वोटिंग से पहले भी अपनी राय स्पष्ट कर दी थी कि बूचा में जो कुछ हुआ किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

 

भारत समेत कौन से देश मतदान की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए-

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, कतर, इराक, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर, मलेशिया, ब्राजील

 

ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे है कि क्या गुट निरपेक्ष आंदोलन आज भी प्रासंगिक है, भारत की विदेश नीति किसी सुपर पावर यानी अमेरिका के दबाव में तो नहीं है। चलिए इन सवालों के जवाब हम आपको देते है। अगर आप ऊपर दिए गए देशों के नामों को देखें  तो भारत के सभी पड़ोसी मुल्कों ने खुद को मतदान की प्रक्रिया से दूर रखा। यानी यह संदेश देने की कोशिश की यूक्रेन में रूस जो कुछ कर रहा है उसे वो सही तो नहीं ठहराते हैं, लेकिन बिना किसी जांच किसी मुल्क को गलत मान लेना भी सही नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह है कि क्या भारत संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि वो किसी गुट का हिस्सा नहीं बन सकता।

अब आप इतिहास की ओर चले और दूसरे विश्वयुद्ध को याद करें, जब वैश्विक हालात तेजी से बदले तो दुनिया दो अलग अलग खेमों में बंट गई थी। एक खेमे की अगुवाई अमेरिका तो दूसरे खेमे की अगुवाई रूस कर रहा था। भारत को आजादी मिले बहुत वक्त नहीं बीते थे, भारत के नीतिय नियंताओं के सामने चुनौती थी कि उनका रुख क्या हो। लंबे विचार और विमर्श के बाक दुनिया के कुछ मुल्क आए जिन्होंने फैसला किया कि वो किसी गुट का हिस्सा नहीं बनेंगे और इस तरह से गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी थी। 90 के दशक में जब सोवियत संघ का बंटवारा हुआ तो दुनिया एक खेमे में सिमट गई और बहुत से मौकों पर लगा कि गुट निरपेक्ष आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।

लेकिन जिस तरह से रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने अपना रुख साफ किया है वो इस बात कि तरफ इशारा कर रहा है कि भले ही पश्चिमी मुल्क मानते हों कि गुट निरपेक्ष सिर्फ शब्दों में सुनने में अच्छा लगता है उसका कोई अस्तित्व ही नहीं वो सोच गलत साबित हो जाती है। रूस यूक्रेन संकट में अमेरिका जेलेंस्की के साथ खड़ा जरूर है। लेकिन खुल कर समर्थन करने से बच रहा है। लेकिन वो उन देशों को धमकाने की कोशिश कर रहा है कि जो परोक्ष तौर पर रूस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।