Rafale M vs MiG 29K: फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान खरीदने वाले देशों की लाइन लगी हुई है। वहीं आने वाली 13 और 14 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के दौरे पर होंगे। ऐसे में माना यह जा रहा है कि इस दौरे पर भारत और फ्रांस के बीच भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल एम फाइटर जेट्स की डील साइन होगी। क्योंकि रक्षा खरीद परिषद की तरफ से पिछले दिनों इसकी मंजूरी दी गई है। वहीं इन जेट्स के अलावा भारत के मझगांव डॉक्स लिमिटेड की तरफ से तीन अतिरिक्त स्कॉर्पियन क्लास की पनडुब्बी निर्माण का भी ऐलान होगा। फ्रांस से आने वाले राफेल, नौसेना के मिग-29के जेट्स जगह लेंगे। ये जेट्स पुराने पड़ चुके हैं और पिछले काफी सालों से इन्हें हटाने की कोशिशें जारी हैं।
जरूरतों को पूरा करने में विफल
राफेल के अलावा अमेरिका का हॉर्नेट जेट भी इस रेस में था। रक्षा विशेषज्ञों ने बताया कि रूस से भारतीय नौसेना को मिलने वाले मिग-29के अपने शुरुआती दिनों से ही उसकी जरूरतों को पूरा करने में असफल साबित हुए हैं। नौसेना के पास इकलौता यह फाइटर जेट है जो दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए है। रक्षा विशेषज्ञों की राय में जेट ऐसा होना चाहिए जो एयरक्राफ्ट कैरियर से अपने हर ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा कर सके। ऐसे में उसका मजबूत होना सबसे बड़ी जरूरत है। एयरक्राफ्ट कैरियर पर उसकी लैंडिंग के बाद अक्सर सेटिंग्स बदल जाती हैं और उन्हें फिर से सेट करना पड़ता है। ऐसे में एक नए जेट की सख्त जरूरत है।
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साल 2016 में आई कैग की रिपोर्ट में भी इस जेट पर सवाल उठाए गए थे। कैग में कहा गया था कि मिग-29 के को सिर्फ भारतीय नौसेना ही ऑपरेट कर रही है। इंजन, एयरफ्रेम और फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम में खामियों की वजह से ये जेट लंबे समय तक ऑपरेशन में नहीं रह सकते हैं। इस जेट की सर्विसबिलिटी भी 15.93 फीसदी से 37.63 फीसदी तक ही थी। भारत ने साल 2004 और 2010 में दो अलग-अलग ऑर्डर के तहत 10,000 करोड़ रुपए की लागत से रूस से 45 मिग-29के जेट्स और उपकरणों की डील की थी।
आखिरकार राफेल को ही क्यों चुना
यह जेट भारतीय नौसेना की वॉरशिप आईएनएस विक्रांत से ऑपरेट होगा। भारत से पहले राफेल एम को ग्रीस, इंडोनेशिया और यूएई की सेनाएं प्रयोग कर रही हैं। नौसेना ने साल 2022 में जेट का ट्रायल किया था और इसकी रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी थी। नौसेना का मानना है कि राफेल उसकी जरूरतों को कई ज्यादा बेहतरी से पूरा कर सकता है।