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क्या Russia का साथ छोड़ America से दोस्ती बढ़ाएगा भारत? जाने पूरा मामला

भारत और अमेरिका (America) के सम्बन्ध समय के साथ साथ अच्छे होते जा रहे हैं। ऐसे में यह भारत रूस की दोस्ती के खिलाफ देखा जा सकता है। ठीक उसी तरह रूस के सम्बन्ध चीन से अच्छे होते जा रहे हैं। उसको भी इन दो देशो भारत और रूस की दोस्ती के खिलाफ देखा जा रहा है। हालांकि, भारत  रूस ने स्पष्ट किया है कि किसी भी तीसरे देश के साथ संबंधों को भारत-रूस की दोस्ती से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। दोनों ही देश अपने ऐतिहासिक, चिरंजीवी और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का लगातार जिक्र करते रहे हैं। जब दो दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन किया, तब भी दोनों नेताओं के बीच आपसी संबंधों को बेहतर बनाने को लेकर बात हुई। पुतिन ने पीएम मोदी को रूस में वैगनर समूह के सशस्त्र विद्रोह और यूक्रेन के हालात की जानकारी दी, जबकि पीएम मोदी ने अमेरिका यात्रा को लेकर उपलब्धियों को बताया।लेकिन

भारत का वास्तव में रूस के साथ एक दीर्घकालिक संबंध

पिछले साल 10 अक्टूबर को कैनबरा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से पूछा गया था कि क्या क्या यूक्रेन के खिलाफ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सैन्य आक्रामकता को देखते हुए भारत हथियारों के लिए रूस पर अपनी निर्भरता कम करेगा। तब उन्होंने जवाब दिया था कि भारत का वास्तव में रूस के साथ एक दीर्घकालिक संबंध है। पूर्ववर्ती सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (यूएसएसआर) या उसके उत्तराधिकारी राज्य से खरीदे जाने वाले हथियारों की लंबी सूची है। वह सूची वास्तव में कई कारणों से बढ़ी। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा था कि पश्चिमी देशों ने भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की बल्कि उन्हें वास्तव में हमारे बगल में एक सैन्य तानाशाही पसंद आई। उन्होंने स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान के साथ शीत युद्ध के दौरान के संबंधों के लिए पश्चिमी देशों पर निशाना साधा था।

भारत को रूस से तेल का निर्यात लगातार जारी

जब से पुतिन ने अपने सैनिकों को 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन में “विशेष सैन्य अभियान” शुरू करने का आदेश दिया है, तब से भारत को पश्चिमी देशों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। भारत ने संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत और कूटनीति का आह्वान किया है, लेकिन रूस के खिलाफ निंदा से परहेज किया है। भारत ने निंदा के बजाय पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद रियायती कीमत का लाभ उठाते हुए रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया है। वर्तमान में रूस भारत का सबसे बड़ा ऊर्जा निर्यातक देश बन गया है। हालांकि, दोनों देशों में इसके पेमेंट को लेकर विवाद है। इसके बावजूद भारत को रूस से तेल का निर्यात लगातार जारी है। जयशंकर ने कैनबरा में जो कुछ कहा, वह पश्चिमी देशों की आलोचना के जवाब में दिया गया तर्क था। हालांकि, पश्चिमी देशों को अपनी गलती का जल्द ही अहसास हुआ और कुछ हद तक उन्होंने इसे लेकर काम करना भी शुरू कर दिया है।

America से भी भारत के अच्छे सम्बन्ध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका (America) की राजकीय यात्रा के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ कई उच्चस्तरीय बैठकें हुईं। इसने भारत-अमेरिका संबंधों को एक नई गति प्रदान की है, जिसे 2008 में ऐतिहासिक नागरिक परमाणु सहयोग समझौते ने शुरू किया था। इस समझौते ने शीत युद्ध की अमेरिकी (America) नीति को समाप्त कर भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुंच को सुनिश्चित किया। बाइडन ने भारत से रेगुलेटरी प्रतिबंध को हटाने के साथ उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों को साझा करने के अपने वादे को पूरा करना शुरू कर दिया है। अमेरिका के जनरल एटॉमिक्स ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि नई दिल्ली न केवल भारत में सशस्त्र ड्रोनों को असेंबल करेगी, बल्कि देश में एक वैश्विक रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल सुविधा भी स्थापित करेगी। अमेरिकी जीई एयरोस्पेस ने भारतीय वायु सेना के लिए भारत में F414 फाइटर जेट इंजन के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन के लिए बेंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ एक समझौता किया।

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अमेरिका (America) और भारत रक्षा उद्योगों को नीतिगत दिशा प्रदान करने और उन्नत डिफेंस सिस्टम के एक साथ उत्पादन के साथ-साथ रिसर्च, टेस्टिंग और नए प्रोजेक्ट्स पर साथ काम करने का वादा किया। इसके अलावा दोनों देश नए रक्षा औद्योगिक सुरक्षा रोडमैप पर सहमत हुए। अमेरिका (America) स्पष्ट रूप से भारत को रूस से दूर करने के लिए सुधार कर रहा है। लेकिन बाइडन प्रशासन को पता होना चाहिए कि यह जीरो सम का खेल नहीं है, जिसमें एक व्यक्ति का लाभ दूसरे के नुकसान के बराबर होता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि नई-नई रक्षा तकनीक देकर अमेरिका चाहकर भी भारत को रूस से दूर नहीं कर सकता है।

समय के साथ मज़बूत हुए भारत रूस सम्बन्ध

भारत और रूस गहरे रिश्ते साझा करते हैं, जो 1950 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ और नव स्वतंत्र भारत को भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन जैसी सरकारी कंपनियों की स्थापना में मदद करके अपने उद्योग और अर्थव्यवस्था के निर्माण में समर्थन देने के साथ शुरू हुआ था। रूस ने भारत को देश की परमाणु और अंतरिक्ष क्षमताओं को शुरू से बनाने में भी मदद की और तब भी अपना समर्थन जारी रखा जब पश्चिम ने भारत के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए थे। अगस्त 1971 में शांति, मित्रता और सहयोग की ऐतिहासिक भारत-सोवियत संधि पर हस्ताक्षर किए गए और यूएसएसआर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहा, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ। सोवियत संघ ने 1960 के दशक की शुरुआत में ही मिग-21 लड़ाकू विमानों के साथ भारत में सैन्य प्रौद्योगिकियों को हस्तांतरण करना शुरू कर दिया था।

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वर्षों से भारत और रूस के बीच बॉयर सेलर रिलेशनशिप, ज्वाइंट रिसर्च, डिजाइन डेवलपमेंट और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में सगयोग की नई इबादत लिखी गई है। चाहे वह ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों के संयुक्त उत्पादन के लिए हो या टी-90 टैंकों के लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के लिए हो। भारत का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य, परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत, कई गाइडेड मिसाइल विध्वंसक और नया-नया खरीदा गया एस-400 मिसाइल सिस्टम भी रूस के साथ भारत के रक्षा सहयोग को दर्शाता है। दिसंबर 2021 में जब मोदी और पुतिन नई दिल्ली में मिले, तो दोनों देशों ने भारत में 6,01,427 रूसी एके-203 राइफलें बनाने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।