सऊदी अरब (Saudi Arab) ने अपना दबदबा बनाने के लिए हमेशा मुस्लिम देशों की मदद करी है। उसने बिना शर्तों के हमेशा भरपूर राशि में मदद करी है। अब सऊदी अरब (Saudi Arab) ने ऐलान किया है कि वह अपनी नीति में क्रांतिकारी बदलाव कर रहा है। सऊदी अरब मिस्र को अपना रणनीतिक सहयोगी मानता था और अरबों डॉलर की सहायता अब तक दी है। अब मिस्र और पाकिस्तान (Pakistan) दोनों ही बेहद गंभीर आर्थिक संकट में घिर गए हैं लेकिन सऊदी अरब (Saudi Arab )दोनों ही कंगाल देशों से दूरी बना रहा है। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान लगातार अब कड़ी शर्तें लगा रहे हैं और वह सब्सिडी को खत्म करने तथा सरकारी कंपनियों को प्राइवेट हाथों में देने की मांग कर रहे हैं।
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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसकी बड़ी वजह तेल से होने वाली सऊदी अरब की कमाई में गिरावट आई है। दरअसल, दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश सऊदी अरब साल 2022 में 28 अरब डॉलर के बजट सरप्लस में था और इसकी वजह यह थी कि यूक्रेन युद्ध के बाद तेल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई। इस कमाई के बाद भी सऊदी अरब मिस्र, पाकिस्तान और लेबनान जैसे कर्ज मांगने वाले देशों के साथ सख्ती बरत रहा है। सऊदी अरब अभी भी विदेश में पैसा भेज रहा है लेकिन उसका उद्देश्य अब लाभ के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेश है। इसके अलावा अपने देश में इलेक्ट्रिक वाहन जैसे उद्योगों को गति देना है।
Saudi Arab ने बढ़ाई पाकिस्तान की टेंशन
इससे तुर्की में सऊदी का प्रभाव बढ़ गया है जो उसका धुर विरोधी हुआ करता है। मोहम्मद बिन सलमान अब सऊदी फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं और देश में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। सऊदी के इस बदलाव से पाकिस्तान जैसे देशों की मुश्किलें बढ़ गई हैं और उसे आईएमएफ से लोन तक नहीं मिल पा रहा है। आईएमएफ ने अब सऊदी और यूएई से लोन देने से पहले गारंटी मांग ली है। पाकिस्तान डिफॉल्ट होने की कगार पर है और अब सऊदी प्रिंस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके भाई नवाज शरीफ को उमरा के बहाने बुलाया है।