बॉलीवुड के जाने माने निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन लोग उन्हें आज भी याद करते हैं। यश चोपड़ा ने छोटे से कमरे से शुरुआत की थी और फिर जो मुकाम हासिल किया, उसे देख लोग हैरान रह गए। यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। वो फिल्ममेकर्स के लिस्ट में सबसे टॉप पर थे। उन्होंने अपने करियर में 6 राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड्स और 8 फिल्मफेयर अवार्ड्स अपने नाम किया। भारत सरकार ने साल 2001 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड और साल 2005 में पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया।
यश चोपड़ा सिनेमा के मशहूर फिल्ममेकर बीआर चोपड़ा के भाई थे। जब विभाजन हुआ तब यश को अपने भाई के पास मुंबई आना पड़ा। उस समय तक फिल्म उद्योग में पहले से कई फिल्म पत्रकार और फिर फिल्मकार स्थापित हो चुके थे। बीआर चोपड़ा ने भी कई शानदार फिल्मों का निर्देशन किया था और अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। यश चोपड़ा के पिता को उनका फिल्मी लाइन में जाना पसंद नहीं था। वो चाहते थे कि यश चोपड़ा इंजीनियर बनें लेकिन किस्मत ने उन्हें फिल्ममेकर बना दिया। यश चोपड़ा ने शुरुआत में इंद्रजीत सिंह जौहर और बड़े भाई बी. आर. चोपड़ा के अस्सिटेंट डायरेक्टर बनकर काम किया।
यश चोपड़ा ने साल 1959 में आई फिल्म 'धूल का फूल' से बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया। बाद में, उन्होंने साल 1961 में आई फिल्म 'धर्मपुत्र' को डायरेक्ट किया। साल 1965 में आई फिल्म 'वक्त' से उन्हें अलग पहचान मिली। फिल्म को ऑडियंस के साथ-साथ क्रिटिक्स ने भी खूब सराहा। फिल्म में बलराज साहनी, सुनील दत्त, साधना और शशि कपूर जैसे बड़े स्टार थे। यश चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वजयंती माला ने उनके हुनर को पहले ही पहचान लिया था और करियर बनाने में उनकी मदद की। इसके बाद वो बॉलीवुड में चमके। उनके निधन के एक साल बाद भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था। इस टिकट पर उनकी सबसे सुपरहिट फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की झलक के साथ कैमरा पकड़े हुए उनकी तस्वीर है।