बॉलीवुड के 'डिस्को डांसर' मिथुन चक्रवर्ती ने बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एंट्री कर ली हैं। दरअसल, बीजेपी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया। जिसमें मिथुन चक्रवर्ती को जगह दी गई। इस खबर को सुन मिथुन काफी खुश हैं। वहीं उनके फैंस उन्हें बधाई दे रहे हैं। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने बॉलीवुड करियर में खूब धमाल मचाया, लेकिन राजनीति सफर की बात करें तो उनका ये सफर काफी उतार-चढ़ावों से भरा रहा। 16 जून 1950 को कोलकाता में जन्में मिथुन चक्रवर्ती का असली नाम गौरांग चक्रवर्ती हैं। लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बनाने के लिए इस नाम का इस्तेमाल नहीं किया।
मिथुन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के सदस्य रह चुके हैं। 60 के दशक में स्थापित हुए नक्सली आंदोलन में मिथुन काफी सक्रिय थे। जिसके चलते उनको अर्बन नक्सल कहा जाता था। उस वक्त उनके करीबी दोस्त नक्सली नेता रवि राजन थे, जो उनको मिथुन 'भा' कहकर बुलाते थे। 'भा' का मतलब सबसे बड़ा रक्षक होता है।
मिथुन दा ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था- 'फिल्म इंडस्ट्री में और इसके बाहर के लोग कलकत्ता में नक्सली आंदोलन के साथ मेरी भागीदारी और नक्सलियों के नेता चारू मजूमदार के साथ मेरे करीबी संबंधों के बारे में जानते थे। मेरे परिवार में त्रासदी होने के बाद मैंने आंदोलन छोड़ दिया था, लेकिन नक्सली होने का लेबल मेरे साथ लगा रहा चाहे मैं जहां भी गया। पुणे की एफटीआईआई हो या फिर बॉम्बे।' मिथुन ने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ बंगाली फिल्मों में भी काम किया। इस दौरान उनका मिलना-जुलना कई राजनीति नेताओं से होता था। वो सीपीआईएफ के नेता सुभास चक्रवर्ती के करीबी कहे जाने लगे थे।
साल 1986 में कलकत्ता के साल्ट लेक स्टेडियम में बाढ़ पीड़ितों के लिए फंड जुटाने के लिए मिथुन ने एक शो किया था। मिथुन के कहने पर बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु भी शरीक हुए थे। मिथुन ज्योति बसु को अंकल कहते थे। इसके बाद जब भी सीपीआईएफ सरकार के दौरान फंड जुटाने के लिए कार्यक्रम की जरूरत हुई, मिथुन ने बिना कोई पैसा लिए लाइव परफॉर्मेंस दी। साल 2000 में ज्योति बसु के बाद बुद्धदेब भट्टाचार्जी के बंगाल के मुख्यमंत्री बने तो मिथुन का सरकार से कनेक्शन कमजोर होने लगा। जिसका असर पार्टी पर दिखने लगा और इसी का फायदा उठाते हुए ममता बनर्जी सूबे की सीएम बन गईं।
साल 2014 में ममता बनर्जी ने मिथुन को राजनीति में आने का न्योता दिया और उन्हें राज्यसभा सदस्य के तौर पर संसद में भेज दिया गया, लेकिन शारदा चिटफंड घोटाले में नाम आने के बाद मिथुन को राज्यसभा से इस्तीफा देना पड़ा। करीब दो साल वो सांसद रहे। इसके बाद राजनीति को लेकर मिथुन तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। मिथुन और भागवत के मुलाकात को लेकर कयास लगाए गए कि वो बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, जो बाद में सच साबित हुए। अब बीजेपी मिथुन पर भरोसा जता रही हैं। तभी उन्हें बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया हैं।