नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा को समर्पित होता हैं। देश भर में इस त्योहार की धूम होती हैं। खासकर बंगाल में नवरात्रि के आखिरी दिन दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है और इसी दिन दशहरे के अवसर पर बंगाली महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। इसे 'सिंदूर खेला' की रस्म कहते हैं। बंगाली महिलाओं के लिए सिंदूर खेला एक बड़ी और विशेष रस्म हैं। चलिए आपको बताते हैं कि सिंदूर खेला की रस्म दशहरे के दिन ही क्यों मनाई जाती है।
मान्यता है कि दशहरे के दिन मां दुर्गा की धरती से विदाई होती है और इस उपलक्ष्य में सुहागने महिलाएं उन्हें सिंदूर अर्पित कर आशीर्वाद लेती हैं। सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं। फिर मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है। इस दिन बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को खुश करने के लिए वहां पारंपरिक धुनुची नृत्य करती हैं। इसके पीछे एक धार्मिक महत्व भी है।
कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में मां दुर्गा के विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था। तभी से लोगों में इस रस्म को लेकर काफी मान्यता है और हर साल पूरी धूमधाम से इस दिन का मनाया जाता है। मां दुर्गा की मायके से विदाई होती हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 9 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं और 10वें दिन यानि दशहरे वाले दिन मायके से विदा लेती हैं। इन 10 दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 10वें दिन मां अपने घर वापस चली जाती हैं।