जंग के बीच रूस पर पश्चिमी देशों ने कड़े से कड़े प्रतिबंध लगा दिया है जिसके बाद इसका असर रूस पर देखने को मिल रहा है। करीब दो दर्जन से ज्यादा विदेशी कंपनियों ने रूस के बाजार से खुद के हाथ वापस खींच लिए हैं। इनमें बड़ी रिटेल चेन्स से लेकर दवा कंपनियां तक शामिल हैं। इस बीच भारत में रूस के राजदूत डेनिस आलिपोव ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारत की दवा कंपनियां पश्चिमी दवा उत्पादकों की जगह ले सकती हैं।
रूसी राजदूत ने रोसिया 24 न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत दुनियाभर की फार्मेसी का बाजार है और जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कि किसी भी असल दवा से कम नहीं हैं। अलिपोव ने स्पूतनिक एजेंसी से कहा कि रूसी बाजार से पश्चिमी कंपनियों का निकलना भारतीय कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकता है। खासकर फार्मा इंडस्ट्री में।
हता दे कि, अेमरिका और यूरोपीय संघ से जुड़े देशों ने पुतिन सरकार और उनके बैंकों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसके चलते रूस से पश्चिमी देशों की अधिकतर कंपनियों ने हाथ खींच लिए हैं। फूड चेन मैक्डोनाल्ड से लेकर वीजा और मास्टरकार्ड जैसी पेमेंट गेटवे कंपनियां भी रूस में अपनी सेवाएं बंद कर चुकी हैं। इसके अलावा अभी कई और संस्थान भी रूस छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। ऐसे में कई अहम क्षेत्रों में रूस की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। रूस अपने नुकसान को कम करने के लिए भारत को सस्ते दाम पर तेल मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया है। कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि, भारतीय तेल कंपनियों ने अकेले मार्च में ही रूस से सामान्य क्षमता के मुकाबले चार गुना ज्यादा तेल खरीद लिया है। बढ़ती तेल खरीद के भुगतान के लिए दोनों देश की सरकारें रुपये में पेमेंट की तरकीब निकालने में भी जुटी हैं।