शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। भारत की आजादी की बात जब भी होगी लोगों के जुबा पर भगत सिंह का नाम पहले होगा। आज ही के दिन 23 मार्च साल 1931 में भागत सिंह संग रूजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगत सिंह का पुश्तैनी घर आज भी पाकिस्तान में है।
भगत सिंह का पुश्तैनी मकान आज भी पाकिस्ता में मौजूद है जहां उनका जन्म हुआ था। यहा उन्होंने अपना बचपन बिताया था। ये हवेली पंजाब प्रांत के खटकड़कलां गांव में स्थित है। पुश्तैनी घर खटकड़कलां गांव फगवाड़ा-रोपड़ नेशनल हाईवे पर उपमंडल बंगा से तीन किलोमीटर दूर है। पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग ने घर की मरम्मत का काम किया है और इसकी देखरेख भी की जाती है। जब देश का बंटवारा हुआ तो इनकी मां विद्यापती और पिता किशन सिंह यहीं रहने लगे थे। किशन सिंह का यहीं निधन हो गया था और भगत सिंह की मां ने साल 1975 में अंतिम सांस ली।
इस घर को बाद में म्यूजियम के तौर पर बना दिया गया। घर में पुरानी चारपाई और एक पलंग है। एक कमरे में लकड़ी से बनी दो आलमारी हैं, जबकि खेती किसानी से जुड़ी कुछ सामान भी यहां देखने को मिल जाएगा। दूसरे कमरे में खाने वाली मेज और कुछ बर्तन रखे हुए हैं। उनके घर को हेरिटेज साइट के तौर पर घोषित किया गया है। इसे संरक्षित करके कुछ साल पहले ही पर्यटकों के देखने के लिए खोला गया है। भगत सिंग मेमोरियल फाउंडेशन संगठन कई साल से पाकिस्तान में भगत सिंह से जुड़ी यदों को संजोने का काम कर रहा है। ऐसा भी कहा जाता है कि भगत सिंह के दादा ने करीब 124 साल पहले यहां एक आम का पेड़ लगाया था, जो आज भी मौजूद है।