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रूस के खिलाफ बोलने के लिए दबाव, यूक्रेन के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा भारत, कहा- अमेरिका तुम अपनी देखो, हमें पता है क्या करना है!

यूक्रेन के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा भारत

यूक्रेन पर जब से रूस ने हमला बोला है तब से ही अमेरिका और नाटो दुनिया के देशों को इकट्ठा कर रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का दबाव बना रहे हैं। पश्चिमी देशों ने तो रूस पर एक के बाक एक कड़े प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन, अब ये दुनिया के बाकी देशों से भी चाहते हैं कि वो रूस से रिस्ता तोड़ लें। भारत से भी अमेरिका और नाटो यही चाहते हैं कि वो रूस के खिलाफ बोलें। इसके लिए भारत पर दबाव भी बनाया जा रहा है। लेकिन, भारत को अच्छे से पता है कि, उसे क्या करना है। अब एक बार फिर से यूएनजीए में यूक्रेन के प्रस्ताव पर भारत अनुपस्थित रहा।

यूक्रेन और इसके सहयोगियों ने रूस के हमले के चलते देश में बनी मानवीय संकट की स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में एक प्रस्ताव पेश किया। भारत यहां अनुपस्थित रहा। 193 सदस्यों वाली महासभा ने यूक्रेन पर अपने 11वें विशेष आपात सत्र के दौरान इस प्रस्ताव को अनुमति दे दी। प्रस्ताव के समर्थन में 140 और विरोध में पांच वोट पड़े। 38 सदस्य मतदान से दूर रहे। UN में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि, भारत ने प्रस्ताव से परहेज किया क्योंकि, अब हमें शत्रुता की समाप्ति और तत्काल मानवीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। उन्होंंने कहा कि, महासभा में आज पेश किया गया मसौदा प्रस्ताव इन चुनौतियों पर हमारे अपेक्षित फोकस को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करता है,, इसलिए हम इस प्रस्ताव से दूर रहे।

वहीं, आज पेश हुए मसौदा प्रस्ताव में यूक्रेन के खिलाफ रूस के हमले को तुरंत समाप्त करने की मांग की गई है। इसके अलावा नागरिकों के खिलाफ सभी हमलों को रोकने की अपील भी की गई है। संघर्ष वाले इलाकों में फंसे सभी नागरिकों को सुरक्षित नकालने की व्यवस्था के लिए भी कहा गया है। महासभा ने यूक्रेन में मानवीय संकट के लिए रूस को जिम्मेदार ठहराने वाला यह प्रस्ताव मंजूर किया।

बता दें कि, इससे पहले बुधवार को संयुक्त भारत समेत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 12 सदस्य यूक्रेन में मानवीय संकट पर रूस की ओर से पेश किए गए एक प्रस्ताव से भी अनुपस्थित रहे थे। यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया था क्योंकि, इसे केवल दो वोट मिले थे जबति पारित होने के लिए कम से कम नौट वोट की आवश्यकता थी। इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल चीन और रूस ने मतदान किया था।