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Chaitra Navratri: शंख के रंग के समान है माता महागौरी का तेज, वैवाहिक जीवन में खुशियां भरने के लिए इस विधि से करें पूजन

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चैत्र नवरात्रि के पावन दिन चल रहे हैं। इन नौ दिनों में माता रानी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। आज नवरात्र का आंठवां दिन है और आज अष्टमी तिथि को माता महागौरी की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि ये तिथि शुभ फल प्राप्ति हेतु काफी ज्यादा लाभ दायक है। मान्यता है कि मां महागौरी की पूजा के साथ उनका पाठ करने से शादी में आने वाली हर तरह की दिक्कतें दूर हो जाती हैं और वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां नष्ट हो जाती हैं। कुंवारी कन्याओं की भी महागौरी देवी हैं। इनकी आराधना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इनका वर्ण गौर है।

 

नवरात्रि आठवां दिन शुभ-मुहूर्त

अष्टमी तिथि शुक्रवार की रात 11बजकर 6मिनट से आरंभ हो चुकी है, जो आज पूरी रात तक रहेगी।

 

मां महागौरी का स्वरूप-

इनका ऊपरी दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रहता है और निचले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू जबकि नीचे वाला हाथ शांत मुद्रा में है।

 

मां माहागौरी की पूजा विधि

अष्टमी के दिन स्नान कर साफ़ कपड़े पहनें। उसके बाद दुर्गा अष्टमी व्रत करने और मां महागौरी की पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थान पर मां महागौरी या दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर दें। यदि आपने कलश स्थापना किया है, तो वहीं बैठकर पूजा करें। मां महागौरी को सफेद और पीले फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। नारियल का भोग लगाएं। कहा जाता है कि ऐसा करने से देवी महागौरी प्रसन्न होती हैं। नारियल का भोग लगाने से संतान संबंधी समस्या दूर होती हैं। अंत में मां महागौरी की आरती करें।

 

ऐसे हुआ था माता का गौर वर्ण

देवीशास्त्र के अनुसार भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तप किया। इस तप से देवी का पूरा शरीर काला पड़ गया। भगवान शंकर ने गंगाजल छिड़का तो देवी गौर वर्ण की हो गयीं। श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार असुरों को आसक्त करने के लिए देवी गौर वर्ण में आयीं। चंड-मुंड ने देवी को देखा तो जाकर शुम्भ से बोला कि महाराज! हमने हिमालय में एक अत्यन्त मनोहारी स्त्री को देखा है जो अपनी कान्ति से हिमालय को प्रकाशित कर रही है। ऐसा उत्तम रूप किसी ने नहीं देखा होगा। आपके पास समस्त निधियां हैं। यह स्त्री रत्न आप क्यों नहीं अपने अधिकार में ले लेते? शुम्भ ने सुग्रीम को दूत बना कर देवी के पास भेजा। देवी बोलीं कि मैंने प्रण किया है कि जो मुझे रण में पराजित कर देगा, वही मेरा वरण करेगा। कालान्तर में असुरों का देवी के साथ युद्ध हुआ। धूम्रलोचन, रक्तबीज, चंड-मुंड और शुम्भ- निशुम्भ सभी काल की गर्त में समा गए। संग्राम में देवी अनेकानेक स्वरूपों के साथ प्रगट हुईं और फिर महागौरी (महादुर्गा) के रूप में एकाकार हो गयीं।

 

मां महागौरी का प्रिय भोग और पुष्प

अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल या नारियल से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है। मां का प्रिय पुष्प रात की रानी है। इनका राहु ग्रह पर आधिपत्य है, यही कारण है कि राहुदोष से मुक्ति पाने के लिए मां महागौरी की पूजा की जाती है।

 

मंत्र

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम।

पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्।।

 

ध्यान

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।