आज नवरात्रि का समापन हो जाएगा। नवरात्रि का समापन के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं, तो कुछ लोग नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। 2 साल से लेकर 11 साल की कन्याओं के पूजन का विधान है। मान्यता है कि कन्या पूजन के दिन अलग-अलग रूप की कन्याएं देवी के अलग-अलग स्वरूप को दर्शाती हैं। आइए जानते हैं इश बार की कन्यापूजन की तिथि, शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में।
कन्या पूजन शुभ मुहूर्त
नवमी के दिन कन्या पूजन- सुबह 6 बजे से दोपहर 03 बजकर 15 मिनट तक।
ज्योतिष अनुसार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक है। सुकर्मा योग दिन में 11 बजकर 25 मिनट से 11 बजकर 58 मिनट तक है। दिन का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है। इन शुभ मुहूर्त के अनुसार ही अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है।
कन्या पूजन विधि
महानवमी पर आप मां दुर्गा की पूजा करें। फिर कन्याओं को भोजन पर आमंत्रित करें। आदरपूर्वक उनको आसन पर बैठाएं। फिर साफ जल से उनके पांव धौएं, उनकी फूल, अक्षत् आदि से पूजा करें। इसके बाद घर पर बने पकवान भोजन के लिए दें। इस दिन हलवा, चना और पूड़ी बनाते हैं। मां दुर्गा स्वरूप कन्याओं को भोजन कराने के बाद दक्षिणा दें और खुशी खुशी उनको विदा करें, ताकि अगले साल फिर आपके घर मातारानी का आगमन हो।
कन्या पूजन में उपहार
मां दुर्गा का प्रिय रंग लाल माना जाता है और लाल रंग को पूजा-पाठ में बेहद शुभ भी मानते हैं। जब कंजक बैठाई जाती है तो लाल रंग के वस्त्र या माता की चुनरी भेंट में कन्याओं को देना अच्छा मानते हैं।
दक्षिणा का भी कन्यापूजन में खास स्थान है। माना जाता है कि दक्षिणा देने से स्वयं मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। कंजक के शगुन के रूप में कन्याओं को 11, 21, 51 या 101 रुपए की शुभ राशि दी जाती है।
नवरात्रि में मां दुर्गा के साज-श्रृंगार की विशेष मान्यता है। मां दुर्गा का पूजा में सौलह श्रृंगार किया जाता है। जब घर में कंजक कराई जाती है तो कन्याओं को भी उपहार में सौलह श्रृंगार में से कोई भी एक चीज दिए जाने को शुभ माना जाता है। उपहार में चूड़ियां, बालियां या काजल जैसी चीजें दी जा सकती हैं।
कन्यापूजन में कन्याओं को फल देना अच्छा माना जाता है। फल में केले या सेब दिए जा सकते हैं। मां दुर्गा की पसंद का ध्यान रखते हुए कंजक में फल देने की मान्यता है।
इन बातों का रखें ख्याल
कन्या पूजन करते समय ध्यान रखें कि कन्याओं की उम्र 2 वर्ष से कम और 10 वर्ष से ज्यादा ना हो।
इस दौरान सभी कन्याओं को पूर्व की ओर मुख करके बैठाएं।
कन्याओं के साथ एक लड़के को अवश्य बैठाएं क्योंकि लड़का भैरव बाबा का रूप माना जाता है।
बनने वाले प्रसाद में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल न करें,
कन्या पूजन के दौरान सभी कन्याओं के पैर धोएं। उन्हें आसन पर बिठाएं और उन्हें टीका लगाएं। इसके बाद उनके पैस छूकर आशीर्वाद लें।