पाकिस्तान वो मुल्क है जो भारत के हर काम में अड़ंगे लगाता है। जम्मी-कश्मीर में आतंक को लाकर दहशत फैलाना उसी की देन है। अब जब भारतीय सेना इन पाकिस्तानी आतंकियों को खोज-खोज कर मार रही है तो पाकिस्तान के कलेजे पर सांप लेट रहा है। उससे रहा नहीं जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में आने वाले दिनों में दुनिया तरक्कि देखेगी लेकिन, पाकिस्तान की आंखों से ये तरक्कि अभी से नहीं देखा जा रहा है। ये वही पाकिस्तान है जो ग्वादर में चीन के लिए अपने आप को बेच दिया है और अपने ही लोगों की आवाजें उसकी कानों तक नहीं पहुंच पा रही है। वो बेसुरा हो गया है। ग्वादार के लोग अपने हक के लिए आवाज उठा रहे हैं तो पाकिस्तान की सरकार और आर्मी मिलकर उन्हें ये करने से रोक रही है, ताकि चीन के तलवे चाट सके। बलूचिस्तान के लोग आज अपनी हक मांग कर रहे हैं जो पाकिस्तान को नहीं दिखती। पीओके में लोगों की हालत बदतर होती जा रही है। लेकिन, राजनीति के नाम पर पाकिस्तान के पंख फड़फड़ा उठते हैं। पाकिस्तना अब जो चाल चल रहा है वो उसे भारी पड़ने वाला है। पीओके में चुनाव के पीछे पाकिस्तान की बड़ी साजिश है। इसके साथ वो आजाद कश्मीर का प्रोपेगैंडा चला रहा है। ये सब करने से पहले पाकिस्तान को अपने यहां के लोगों के हालत देख लेना चाहिए।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष सरदार तनवीर इलायस को सोमवार को पीओके का प्रधानमंत्री चुन लिया गया है। हाल ही में सत्ता से बेदखल होने वाले इमरान खान ने ही इलियास का नाम आगे किया था। इससे पहले सरदार अब्दुल खय्याम नियाजी को पार्टी में विद्रोह के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (PML-N) की मिलीजुली सरकार में इस समय शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने चौधरी यासिन को पीओके के प्रधानमंत्री पद के लिए उतारा था। पीओके की असेंबली में 700 प्रत्याशियों में से 53 सदस्य चुने गए हैं। इसके लिए 20 लाख मतदाताओं ने वोट दिए।
पाकिस्तान Pok में फेडरल इलेक्शन कराता है। यहां एक सुप्रीम कोर्ट और एक हाई कोर्ट भी है। अब सवाल यह है कि, अगर Pok में यह सब है और इसपर पाकिस्तान का कब्जा बताया जाता है तो आखिर ये संस्थान अलग क्यों हैं। बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में जब सीजफायर लाइन बनी तब इसका 65 फीसदी क्षेत्र भारत के पास रहा और 35 फीसदी पाकिस्तान में चला गया। इसी को Pok नाम से जाना गया। 1949 कराची समझौते के दौरान पीओके के नाताओं ने उत्तरी इलाकों को पाकिस्तान को सौंप दिया और 1963 आते-आते पाकिस्तान ने लद्दाख के बड़े क्षेत्र को चीन को सौंप दिया। भारत हमेशा पीओके में होने वाले चुनावों को खारिज किया है। भारत का कहना है कि इसके जरिए पाकिस्तान मानवाधिकारों के उल्लंघन और गैरकानूनी कब्जे को दबाने की कोशिश करता है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान का इस क्षेत्र पर कोई अधिकारी नहीं है और इसे खाली कर देना चाहिए।