कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों के चक्कर में आज भी मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी किसी नर्क से कम नहीं है। दुनिया इतनी तेजी से विकास कर रही है लेकिन, मुस्लिम समाज की सोच महिलाओं को लेकर आज भी वहीं की वहीं है। अरे यहां तो अगर किसी महिला का रेप हो जाता है तो, उसे चार पुरुष गवाह पेश करने होते हैं। ऐसा नहीं करने पर उल्टा पीड़िता को ही सजा सुना दी जाती है। इस सोच को बदलने के लिए मुस्लिम महिलाओं को अंदर ही अंदर अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी। एक बार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना उनका अधूरा काम है। महिला अधिकार कार्यकर्ता और कानून की छात्रा ज़ेबा जोरिया तक का कहना है कि, मुस्लिम महिलाओं की हालत में अब भी कुछ खास सुधार नहीं आया है। उनका कहना है कि, धर्म को शादी की उम्र तय नहीं करना चाहिए, इसके लिए साइंस पर भरोसा करना चाहिए। युवावस्था के तुरंत बाद शादी करा दी जाती है। इस्लाम में जवानी के बाद शादी की इजाजत दी गई है। उन्हें अपने आपको निखारने का मौका नहीं मिल पाता। बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए और समाज को जागरूक करना चाहिए।