यूक्रेन पर जब रूस ने हमला बोला था तो पश्चिमी देशों ने इसका जमकर विरोध किया। यहां तक कि रूस के खिलाफ अमेरिका ने कड़े से कड़े प्रतिबंध लगा दिया। नाटो रूस को तोड़ना चाहते थे जिसके चलते लेकिन, ऐसा लगता है कि रूस पर लगे इन प्रतिबंधों की कीमत सबसे ज्यादा पश्चिमी देशों को ही चूकानी पड़ रही है। रूसी गैस और तेल पर ज्यादा निर्भर रहने वाले इन पश्चिमी देशों में इस वक्त महंगाई अपने चरम पर है। लेकिन, ये बात विश्व मीडिया में छुपाई जा रही है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी कि दुनिया के चौथे सबसे बड़े अर्थव्यवस्था देश जर्मनी में रूस की गैस सप्लाई रुकने के चलते भारी संकट आ गया है। यहां के कई उद्योग बंद हो गए। जर्मनी अकेला नहीं है जहां पर भारी अर्थिक सकंट आता नजर आ रहा है। इसके साथ ही अब कई और पश्चिमी देशों में इसका असर देखने को मिल रहा है।
रूस पर प्रतिबंध का असर इटनी के साथ पूरी यूरोप की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है। रूस से मिलने वाले कच्चे तेल पर काफी हद तक निर्भर पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्से, जर्मनी, इटली एवं तुर्की के लोगों के लिए चीजें पहले से अधिक महंगी हो गई हैं। डॉलर के मुकाबले 20 वर्ष में पहली बार यूरो में 12 फीसदी की गिरावट देखी गई है। एक यूरो एक डॉलर पर पहुंच गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उत्पन्न ऊर्जा संकट को इसका प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इसकी वजह से यूरोपीय देशों में आर्थिक मंदी का खतरा उत्पन्न हो गया है।
रूस ने नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के रखरखाव की बात कहकर इटली को गैस आपूर्ति में कटौती कर दी, जिसके चलते यहां पर गैस का भारी संकट आ गया है। यूरोप के अन्य देशों में भी हालात बिगड़ रहे हैं। खाद्यान्न संकट और गैस, एवं पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति में कमी की वजह से यह समस्या सामने आई है। बिगड़ती आर्थिक और ऊर्जा संकट की स्थिति से निपटने के लिए इटली आपातकालीन कदम उठाने को मजबूर है। यूरोजोन में महंगाई की दर 8.6 है। जर्मनी को 191 के बाद पहली बार व्यापार में भारी घाटा हुआ है। इसके चलते तेल की कीमतों में काफी इजाफा हो गया है। सप्लाई चेन की मुश्किलों की वजह से आयात की लागत बढ़ गई है।
उधर हंगरी में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं। जिसके चलते हंगरी की सरकार ने ऊर्जा के क्षेत्र में आपातकाल स्थिति की घोषणा की है। हंगरी प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से ये जानकारी दी गई है। हंगरी ने ऊर्जा संसाधनों और जलाऊ लकड़ी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। पीएमओ के अनुसार, लंबे समय से चल रहे युद्ध और ब्रुसेल्स के प्रतिबंधों ने पूरे यूरोप में ऊर्जा की कीमतों में नाटकीय रूप से वृद्धि की है। अमेरिका और नाटो ने जब रूस पर प्रतिबंध लगाया था तो उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि, इसका असर उनपर ही पड़ने लगेगा और स्थिति इतनी गंभीर हो जाएगी संभल नहीं पाएगी। खैर अभी युद्ध खत्म होता नहीं नजर आ रहा है ऐसे में महंगाई आने वाले दिनों में काफी ऊपर भागती नजर आ सकती है।